बीजेपी के बारे में कहा जाता है कि हार हो या जीत, पार्टी और उसके नेता-कार्यकर्ता अपने अगले मिशन पर जुट जाते हैं. जीत में तो ऐसा जरूर होता होगा लेकिन हार मिलने पर आपसी कलह का 'वायरस' इस पार्टी को भी संक्रमित करता है. चुनावों में ममता बनर्जी के हाथों बीजेपी का 'खेला' हो गया तो केरल और तमिलनाडु में भी शिकस्त का सामना करना पड़ा. उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव से लेकर विभिन्न राज्यों में उपचुनाव में बीजेपी अपने 'टर्फ' पर हारती दिखी. अब पार्टी में बंगाल से मध्य प्रदेश तक आंतरिक कलह की खबरें आने लगी हैं.
बंगाल: तथागत रॉय ने राज्य नेतृत्व को जमकर फटकार
294 सीटों वाले बंगाल विधानसभा चुनाव में '200 पार' का सपना देखने वाली बीजेपी के 77 सीटों पर सिमट जाने के बाद पार्टी की राज्य यूनिट पर सवाल उठना शुरू हो गया है.
पूर्व त्रिपुरा-मेघालय के गवर्नर तथा 2002 से 2006 तक बीजेपी बंगाल के अध्यक्ष तथागत रॉय ने बंगाल में पार्टी की हार के बाद 6 मई को बंगाल बीजेपी के शीर्ष नेताओं- कैलाश विजयवर्गीय, दिलीप घोष, शिव प्रकाश और अरविंद मेनन, जिन्हें उन्होंने KDSA कहा-को बिना राजनैतिक दृष्टि से घटिया, उदासीन और भाड़े का समूह कहा,जिनमें विश्लेषण क्षमता और बंगाली संवेदनशीलता की समझ नहीं है.
ट्वीट करके उन्होंने कहा कि इन नेताओं ने हमारे माननीय प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को इस कीचड़ में घसीटा है और पूरी दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी का नाम मिट्टी में मिला दिया है .तथागत रॉय के अनुसार जो भी TMC के 'रद्दी' नेता चुनाव से पहले पाला बदलकर बीजेपी में आए थे वह वापस सत्ताधारी पार्टी में लौट जाएंगे और अपने साथ बीजेपी के पुराने कार्यकर्ता को भी लेते जाएंगे, क्योंकि वे तब तक नहीं रुकेंगे जब तक पार्टी के राज्य यूनिट में कोई सुधार नहीं होगा.
इससे पहले तथागत रॉय ने मंगलवार को भी ट्वीट करते हुए फिल्मों तथा टीवी के एक्टरों को टिकट देने के लिए कैलाश विजयवर्गीय तथा दिलीप घोष की जमकर आलोचना की थी.
उन्होंने कहा कि बीजेपी चुनाव मैनेजमेंट टीम द्वारा उन फिल्मी टीवी एक्टरों को टिकट दिया गया जिनका राजनीति से कोई मतलब भी नहीं था. इसमें उन्होंने पार्नो मित्रा (जो बड़नगर से हारीं) ,श्रावंती चटर्जी (बेहाला पश्चिम से हारीं) और पायल सरकार (बेहाला पूर्व से हारीं) का नाम लेते हुए उन्हें 'राजनैतिक रूप से मूर्ख' कहा.
बंगाल बीजेपी:अपनों ने अपनों को मारा?
चुनाव बाद हिंसा में बीजेपी और टीएमसी के कई कार्यकर्ता मारे गए. बीजेपी ने टीएमसी पर आरोप लगाया लेकिन एक गौर करने वाला पलटवार टीएमसी ने लगाया. पार्टी ने कहा कि दरअसल ये बीजेपी के पुराने कार्यकर्ताओं और नए आए लोगों के बीच का झगड़ा है. आरोप अपनी जगह है लेकिन तथागत रॉय के ट्विटर वॉर का निचोड़ भी यही है. ओल्ड बनाम न्यू.
तथागत जो दावा कर रहे हैं कि सत्ता के लिए बीजेपी में आए लोग अब भाग जाएंगे, उसपर सियासी पंडित नजर जरूर रखेंगे कि अब टीएमसी से बीजेपी वाले बाबू मोशाय बने सुवेंदु क्या करते हैं. ममता की पिछली सरकार में ताकतवर मंत्री और अब महज एक विधायक? क्या उन्हें ये स्थिति हजम होगी.
वैसे नए बनाए पुराने की उलझन तो चुनाव पूर्व ही शुरू हो गई थी. 1984 में RSS प्रचारक से शुरुआत करके बीजेपी में आने वाले बंगाल बीजेपी के अध्यक्ष दिलीप घोष या मुश्किल से चार-पांच महीने पहले से बीजेपी में आए सुवेंदु अधिकारी? यह सवाल बंगाल विधानसभा चुनाव के वक्त बंगाल से लेकर दिल्ली के राजनैतिक गलियारों को सरगर्म करता रहा .इस सवाल का जवाब ना दे पाना भी बीजेपी को भारी पड़ा शायद.
तथागत रॉय का यह प्रश्न वाजिब भी है कि क्या TMC से सत्ता की लालच में बीजेपी में आए नेता वापस TMC में लौटेंगे और अगर लौटेंगे भी तो क्या अपने साथ बीजेपी कार्यकर्ताओं को भी लेकर लौटेंगे .कोबरा बनकर आए मिथुन दा अब यही कुंडली मारे रहेंगे या कहीं सरक जाएंगे ?ऐसे तमाम लोगों पर होगी नजर.
मध्यप्रदेश में भी कलह
मध्य प्रदेश के दमोह विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार अजय टंडन के हाथों बीजेपी उम्मीदवार राहुल लोधी की हार के बाद बीजेपी ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते पूर्व विधायक जयंत मलैया को कारण बताओ नोटिस जारी किया है और उन्हें 10 दिनों के अंदर जवाब देने को कहा है. इसके साथ साथ पार्टी ने उनके बेटे सिद्धार्थ मलैया को मिलाकर दमोह के 5 मंडल अध्यक्षों को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया है.
बीते विधानसभा चुनाव में राहुल लोधी ने कांग्रेस के टिकट पर दिग्गज नेता जयंत मलैया को हरा दिया था. फिर पार्टी बदल कर भाजपा में आए राहुल लोधी को ही भाजपा ने उपचुनाव में अपना उम्मीदवार बना दिया था .जयंत मलैया के नाराज होने और अब पार्टी विरोधी गतिविधियों की कलह हार के बाद सामने आ रही है
असम में जीत पर भी असमंजस
संपन्न विधानसभा चुनाव में असम का प्रदर्शन बीजेपी के लिए संतोषप्रद रहा जहां उसके गठबंधन ने 126 सीटों में से 76 पर जीत दर्ज की .इसके बावजूद मुख्यमंत्री के नाम पर असमंजस की स्थिति बनी हुई है .एक तरफ पिछले मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल हैं तो दूसरी तरफ 2015 में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए हिमंत बिस्वा सरमा हैं, जो पिछले सरकार में वित्त, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं PWD मंत्री थे. अब नौबत ये है कि केंद्रीय नेतृत्व को फैसला करने के लिए दोनों को दिल्ली बुलाना पड़ा है.
यूपी पंचायत चुनाव में हार और अपनों की मार
यूपी पंचायत चुनाव में भी बीजेपी की बुरी गत हुई. पार्टी सीएम के गढ़ पूर्वांचल में परफॉर्म नहीं कर पाई और अयोध्या, काशी, मथुरा में हारी. इस बार पर पार्टी के बड़े नेता सुब्रमणियन स्वामी ने कहा कि विधानसभा चुनाव के हिसाब से देखें तो हमारी पार्टी 357 सीटों में से महज 67 सीटें जीत पाई.
जाहिर है सत्ता का लड्डू मिल रहा हो तो सब मिल बैठकर राजी खुशी खाते हैं. लेकिन हार मिलते ही आपस में प्रहार शुरू हो जाता है. ऊपर बताए गए तमाम उदाहरण बताते हैं कि इस बीमारी का संक्रमण बीजेपी को भी हो रहा है.
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