ADVERTISEMENTREMOVE AD

BMC चुनाव को लेकर अमित शाह की पुकार और उद्धव ठाकरे की चुनौतियां चार

BMC Election 2022: अमित शाह का 150 से अधिक सीटें जीतने का संकल्प BJP-शिवसेना कार्यकर्ताओं पर कितना असर डाल रहा?

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मुंबई महानगर पालिका चुनाव के लिए बिगुल फूंक दिया है. शाह कहते हैं कि बीजेपी 150 से ज्यादा सीटें जीतेगी. पहले वाली एकीकृत शिवसेना की किसी समय मुंबई महानगरपालिका पर जबरदस्त पकड़ थी लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना की नीति में बदलाव आया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

2017 के मुंबई महानगर पालिका चुनाव में शिवसेना ने बीजेपी के साथ गठबंधन नहीं किया था. दोनों दलों ने स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ा था जिसका फायदा भारतीय जनता पार्टी को ज्यादा हुआ और शिवसेना नुकसान में रही. 227 सीट में शिवसेना को 84 सीटें और बीजेपी ने 82 सीटों पर कब्जा किया. मजबूरन शिवसेना को बीजेपी से हाथ मिलाना पड़ा, जिसके बाद किशोरी पेडणेकर मुंबई की महापौर बनीं.

ऐसी आशंका है कि पिछले 2 महीने में जो राजनीतिक गतिविधियां हुई हैं उन्हें देखते हुए इस बार उद्धव को ज्यादा नुकसान उठाना पड़ सकता है. अमित शाह ने बीजेपी के लिए टारगेट फिक्स कर दिया है. 150 सीटों से ज्यादा जीतने का मतलब वह सभी सीटों पर चुनाव लड़ सकती है.

पिछले चुनाव में कांग्रेस को 31 सीटों पर संतोष करना पड़ा था जबकि राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) को 7 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. चुनावी गठजोड़ क्या होगा यह भी स्पष्ट नहीं है जबकि जिस महा विकास आघाडी में शिवसेना (उद्धव) कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी शामिल हैं वह भी असमंजस में ही है. शिवसेना ने संभाजी ब्रिगेड के साथ चुनावी गठबंधन की घोषणा की है. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार ने कहा था कि गठबंधन के बारे में उनकी पार्टी विचार कर रही है और इस बारे में कोई अंतिम फैसला भी नहीं हुआ है.

0

आंतरिक संघर्ष के बीच फंसी कांग्रेस?

कांग्रेस में आंतरिक संघर्ष चल रहा है. अशोक चव्हाण और पृथ्वीराज चव्हाण राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके हैं और दोनों फिलहाल असंतुष्टों की पंक्ति में खड़े हैं. लोग तो यह कयास लगा रहे हैं कि अशोक चव्हाण बीजेपी में जा सकते हैं जबकि पृथ्वीराज चव्हाण लगातार सवाल कर आलाकमान की नाक में दम किए हुए हैं. हो सकता है कि वे गुलाम नबी आजाद के साथ चले जाएं लेकिन इससे प्रदेश की राजनीति प्रभावित होने की पूरी- पूरी संभावना है.

कांग्रेस के पास किसी भी चुनाव के लिए, चाहे वह बीएमसी चुनाव हो या विधानसभा, कोई स्पष्ट नीति नहीं है. नेता और कार्यकर्ता दोनों भ्रमित हैं और कौन किस तरफ जाने वाला है यह किसी को मालूम नहीं है. इन हालातों में महाविकास आघाडी मनपा चुनाव में बीजेपी को कोई बड़ी चुनौती दे पाएगी ऐसा फिलहाल तो नहीं लगता है.

अमित शाह की खुली चुनौती और 150 से अधिक सीटें जीतने का संकल्प बीजेपी और शिवसेना कार्यकर्ताओं पर किस तरह का असर डाल सकता है इसका भी अंदाज लगाया जा रहा है. बीजेपी कार्यकर्ताओं में काफी उत्साह नजर आ रहा है.

हालांकि यह सच है कि शिवसेना के असंतुष्ट नेता एकनाथ शिंदे के साथ मिलकर जब बीजेपी ने सरकार बनाई थी तो उस वक्त बीजेपी में थोड़ी निराशा थी क्योंकि आखिरी समय तक यह लग रहा था कि देवेंद्र फडणवीस ही मुख्यमंत्री बनेंगे क्योंकि विधानसभा में संख्या बल बीजेपी के पास ही ज्यादा था लेकिन दिल्ली से संकेत मिलने के बाद फडणवीस बैकफुट पर आ गए और उन्होंने उपमुख्यमंत्री पद स्वीकार कर लिया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कुछ दिनों में ही बीजेपी कार्यकर्ताओं की समझ में आ गया कि असली कामकाज कौन देख रहा है. विभागों के बंटवारे के समय भी नजर आ गया कि किस पार्टी का पलड़ा भारी है. इसके बाद से पूरे महाराष्ट्र में बीजेपी कार्यकर्ताओं में उत्साह है और उनकी तैयारी अच्छी खासी नजर आ रही है. मुंबई मनपा में पिछली बार 82 सीटें पाने के बाद उनका मनोबल पहले ही बढ़ा हुआ था और हाल की घटनाओं ने ऐसा लगता है कि उनमें नया जोश भर दिया है.

इसके विपरीत शिवसेना ठाकरे गुट के कार्यकर्ता थोड़े हतोत्साहित नजर आ रहे हैं, क्योंकि उनकी दशा और दिशा दोनों ही स्पष्ट नहीं है. राज्य की सत्ता हाथ से जाने की निराशा ठाकरे परिवार पर स्पष्ट दिखाई देती है. उद्धव ठाकरे बागी विधायकों को गद्दार भी कहते हैं और उन्हें सबक सिखाने की बात कहने के बावजूद यह भी कहते हैं कि वे पार्टी में लौट आए. यह दोनों विरोधाभासी बातें वे एक साथ कहते हैं.

शिवसेना के लिए 4 बड़ी चुनौतियां कौन सी हैं?

1- पिछले 2 महीनों में काफी कुछ कहा-सुना गया है. जो खाई पहले आसानी से पाटी जा सकती थी वह वक्त के साथ चौड़ी होने के साथ-साथ गहरी भी होती दिख रही है. इस लड़ाई के कारण शिवसेना कार्यकर्ताओं का मनोबल काफी गिरा हुआ है. सत्ता अपने आप में एक अलग ऊर्जा और उत्साह देती है, लेकिन जब सत्ता न रहे और नेताओं के मतभेद खुलेआम हो तो कार्यकर्ता का भ्रमित और शंकित होना स्वभाविक होता है. विभिन्न मुद्दों पर दोनों गुट सुप्रीम कोर्ट में लड़ रहे हैं और अदालत के फैसले की प्रतीक्षा कर रहे हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

2- मुंबई बीएमसी में भ्रष्टाचार का मुद्दा भी चुनाव में शिवसेना के पीछे रहेगा. कोविड-19 के दौरान बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के आरोप शिवसेना पर लगाए गए थे. शिवसेना के पास उद्धव ठाकरे के अलावा कोई दूसरा बड़ा नेता नहीं है. उनके मुख्य सलाहकार और प्रवक्ता संजय राऊत इस समय हिरासत में है. आदित्य ठाकरे को लोग गंभीरता से नहीं लेते हैं. नेतृत्व के मुद्दे पर ही शिवसेना के कई बागी विधायकों ने टिप्पणियां की हैं कि वे किस तरह आदित्य ठाकरे को न चाहते हुए भी अपना बॉस मानते थे. कुल मिलाकर शिवसेना को मुंबई बीएमसी चुनाव में काफी नुकसान होने की आशंका दिखाई देती है.

3- संगठनात्मक दृष्टिकोण से भाजपा काफी मजबूत दिखाई देती है, जबकि शिवसेना के पास संगठनात्मक तौर पर ऐसा ग्राउंड लेवल का ढांचा नहीं है. बागी विधायकों के कारण शिवसेना संगठन को काफी झटका लगा है. जमीनी स्तर के कार्यकर्ता अपने एरिया के नेताओं के साथ अपने आपको ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं. राज्य स्तर पर इस फूट का नुकसान ठाकरे गुट को उठाना पड़ सकता है. जब नीति और लक्ष्य स्पष्ट हो तो कार्यकर्ता ज्यादा लगन से काम करते हैं और बीजेपी को इसका फायदा मिलने की उम्मीद है.

4- इसमें कोई शक नहीं है कि बीजेपी 2014 से ही शिवसेना को एक तरह से ढो रही थी. भाजपा के साथ शिवसेना सरकार में तो थी लेकिन उनका रवैया सकारात्मक या सहयोगात्मक नहीं दिखा. शिवसेना के मंत्री यह कहते फिरते थे कि हम अपनी जेब में इस्तीफा लेकर घूमते हैं और जब भी उद्धव ठाकरे आदेश देंगे, वे मंत्रिमंडल से बाहर हो जाएंगे. 2019 में जो हुआ वह तो खुलेआम हुआ. बीजेपी के प्रदेश नेताओं का जोर चलता तो वे शिवसेना के इस बोझ को उतार कर कभी का फेंक देते.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

इस बार अमित शाह ने कार्यकर्ताओं को स्पष्ट संदेश दिया है कि शिवसेना ने जो विश्वासघात किया है उसकी सजा देते हुए उन्हें जमीन सुंघा दे. शाह ने 2014 के चुनाव का जिक्र करते हुए कहा कि उस समय उद्धव ठाकरे ने सिर्फ 2 सीटों के लिए बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ दिया था. शाह इस बात से भी दुखी है कि शिवसेना ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नाम पर जनता से वोट मांगे और बाद में विश्वासघात किया.

अमित शाह ने कार्यकर्ताओं को एक और महत्वपूर्ण संदेश यह दिया कि बीजेपी महाराष्ट्र में हिंदुत्व विरोधी राजनीति को खत्म करना चाहती है. शाह ने स्पष्ट संकेत तो नहीं दिया लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बावजूद धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर हटाने का मुद्दा, हनुमान चालीसा पठन करने वाली सांसद नवनीत राणा और उनके पति पर की गयी कार्रवाई, औरंगजेब की कब्र पर छोटे ओवैसी का सजदा करना और ऐसी कई घटनाएं है जिनके बारे में शिवसेना का रुख बीजेपी को पसंद नहीं था.

शिवसेना स्वयं को कट्टर हिंदूवादी पार्टी कहती है लेकिन इन मामलों में जो उसने रवैया अपनाया था वह बीजेपी को खटकता रहा. कट्टर हिंदूवाद के समर्थक होने का अपना पुराना राग छोड़कर शिवसेना का सॉफ्ट हिंदुत्ववादी होना बीजेपी के लिए अच्छी बात साबित हो सकती है. बीजेपी महंगाई या और ऐसे ही मुद्दों को गौण मानती है और हिंदुत्व ही उसका असली मुद्दा है. बीएमसी चुनाव या और कोई भी चुनाव हो, बीजेपी शिवसेना इसी कमजोरी का फायदा उठाना चाहती है.

(विष्णु गजानन पांडे महाराष्ट्र की सियासत पर लंबे समय से नजर रखते आए हैं. वे लोकमत पत्र समूह में रेजिडेंट एडिटर रह चुके हैं. आलेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं और उनसे क्विंट का सहमत होना जरूरी नहीं है)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें