15 जुलाई 2001. दोपहर का वक्त. जगह गाजीपुर. मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) के काफिले पर एक 47 से ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई गईं. इतनी गोलियां चलीं कि काफिले की कारों में छेद ही छेद दिख रहे थे. मुख्तार तो बच गए लेकिन उनके दो बॉडीगार्ड मारे गए. बृजेश का भी एक गुर्गा मारा गया. 11 लोग जख्मी हुए. मुख्तार अंसारी ने बृजेश सिंह, त्रिभुवन सिंह समेत 20 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया. तबकी राजनाथ सिंह सरकार ने बृजेश सिंह (Brijesh Singh) पर 5 लाख रुपए का इनाम घोषित किया था. इसी मामले में अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बृजेश सिंह को बेल दे दी है.
लेकिन मुख्तार से बृजेश सिंह की क्या दुश्मनी थी? आखिर पढ़ाई में अव्वल रहने वाला बृजेश सिंह कैसे जुर्म की दुनिया का नामी सरगना बना, जिस पर अंडर वर्ल्ड डॉन दाऊद से भी संबंध होने के आरोप लगे. आज सियासत में इसी बृजेश सिंह की कहानी जो अपराध और राजनीति दोनों में रसूख रखता है.
कहानी शुरू होती है 27 अगस्त 1984 को....वाराणसी के धरहरा गांव के रहने वाले बृजेश सिंह ने अपराध कि दुनिया में तब कदम रखा जब, 27 अगस्त 1984 को उसके पिता रविंद्र सिंह की हत्या कर दी गई. रविंद्र सिंह की हत्या उनके सियासी विरोधी रहे हरिहर सिंह और पांचू सिंह पर लगा. उस समय बृजेश सिंह अच्छे नंबरों से 12वीं की परीक्षा पास कर वाराणसी में B.Sc की पढ़ाई कर रहा था. पिता की मौत के बाद बृजेश सिंह ने घर छोड़ दिया और सालभर के भीतर ही अपने पिता के हत्यारे हरि सिंह की हत्या कर दी. उसके खिलाफ 1985 में पहली बार हत्या का केस दर्ज हुआ. लेकिन, वह पुलिस की पहुंच से दूर ही रहा. इस बीच उसे अभी भी अपने पिता के और हत्यारों की तलाश थी.
सिकरौरा हत्याकांड
9 अप्रैल 1986 को चंदौली का सिकरौरा गांव गोलियों से दहल उठा था. ग्रामप्रधान रामचंद्र यादव समेत 7 लोगों की हत्या कर दी गई थी. बाद में पता चला कि बृजेश सिंह ने अपने पिता की हत्या में शामिल रहे सभी पांच लोगों को एक साथ गोलियों से भून डाला था. इस वारदात में सोते समय चार बच्चों की भी हत्या की गई थी. हत्यारों ने रामचंद्र यादव की पत्नी हीरावती को इसलिए जिंदा छोड़ दिया था, ताकि वह इस नरसंहार की दास्तान दूसरों को सुना सके और लोगों के दिलों में उनका खौफ पैदा हो सके.
पूर्व विधायक प्रभुनारायण सिंह ने उस मंजर को याद करते कहा था कि
सुबह के समय अचानक गोलियां चलने की आवाज आई. उस दौरान वे कुछ दूरी पर स्थित अपनी खेत में काम करा रहे थे. चीखपुकार सुनकर वे रामचन्द्र यादव की घर की ओर भागे तो देखा कि साइकिल सवार कुछ लोग भाग रहे थे. घर तक पहुंचे तो पता चला कि बृजेश सिंह और उसके साथियों ने नरसंहार को अंजाम दिया है.
वरिष्ठ पत्रकार त्रिभुवन सिंह ने BBC को बताया था कि इसी हत्याकांड के बाद पहली बार बृजेश सिंह को जेल भेजा गया था, जहां उसकी मुलाकात गाजीपुर के पुराने हिस्ट्रीशीटर त्रिभुवन सिंह से हुई थी.
यहां से बृजेश और त्रिभुवन सिंह ने स्क्रैप और बालू की ठेकेदारी करने वाले साहिब सिंह का साथ पकड़ा. दोनों साहिब सिंह के लिए काम करने लगे. साहब सिंह को सरकारी ठेके दिलवाने लगे. यहीं बृजेश सिंह का टकराव पूर्वांचल के दूसरे माफिया मुख्तार अंसारी से शुरू हुआ. मुख्तार अंसारी, साहब सिंह के विरोधी मकनू सिंह के लिए काम कर रहा था. सरकारी ठेकों में वर्चस्व को लेकर मकनू सिंह और साहिब सिंह के बीच चली अदावत बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी के बीच भी शुरू हो गई. हालात ऐसे बिगड़े कि मुख्तार और बृजेश ने अपने सरपरस्तों से खुद को अलग कर अपना दबदबा कायम करना शुरू किया.
दाऊद से संबंध
इस बीच मुंबई में दाउद इब्राहिम के बहनोई इस्माइल पारकर की अरुण गवली गैंग के शूटरों ने हत्या कर दी. दाऊद के इशारे पर बृजेश सिंह और सुभाष ठाकुर ने फिल्मी अंदाज में मुंबई के सबसे बड़े शूटआउट को अंजाम दिया. 12 सितंबर 1992 को इस्माइल पारकर की गोली मारकर हुई. हत्या में अरुण गवली गैंग का शूटर शैलेश हलदंकर भी घायल हुआ. शैलेश हलदंकर मुंबई के जेजे हॉस्पिटल के वार्ड नंबर 18 में भर्ती था.
बृजेश सिंह और सुभाष ठाकुर डॉक्टर के भेष में गए और शैलेश हलदंकर की अस्पताल में गोलियों से भूनकर हत्या कर दी. इस घटना में वार्ड की पहरेदारी कर रहे मुंबई पुलिस के दो हवलदार भी मारे गए थे. जेजे अस्पताल शूट-आउट में पहली बार एके 47 का इस्तेमाल कर 500 से ज्यादा गोलियां चलाई गई थीं. घटना के बाद बृजेश पर टाडा के तहत लंबा मुकदमा चला और सितंबर 2008 में उसे सबूतों की कमी के वजह से छोड़ दिया गया. इस मामले ने बृजेश को पूर्वांचल के एक गैंगस्टर से पूरे देश में एक बड़े डॉन के तौर पर स्थापित कर दिया. लेकिन, इधर मुख्तार अंसारी का भी कद धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था. 15 जुलाई 2001 को बृजेश सिंह ने उसरी चट्टी पर मुख्तार अंसारी पर हमला किया और फरार हो गया.
यूपी एसटीएफ के शुरुआती सदस्य रहे पूर्व IPS राजेश कुमार ने क्विंट से बातचीत में बताया कि
इसके बाद से ही मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह के बीच लड़ाई गहरा गई. ये उसके आदमी मारते थे. वो इसके आदमी मारते थे. ये मुख्तार के सामने वीक पड़ गया या इसके दिमाग में कुछ दूसरा फितूर आ गया. ये वहां से चला गया भुवनेश्वर. भुवनेश्वर में ये किसी दूसरे नाम पर रहने लगा. वहां उसने कोयला, गिट्टी, रेत समेत कई तरह के कारोबार में हाथ आजमाया और खूब पैसे कमाए. फिर एक शिपयार्ड के लाइसेंस के चक्कर में दिल्ली आने-जाने लगा.
साल 2008 में एक बड़े ही नाटकीय तरीके से दिल्ली की स्पेशल पुलिस सेल ने बृजेश सिंह को उड़ीसा के भुवनेश्वर से गिरफ्तार कर लिया.
पूर्व IPS राजेश कुमार बताते हैं. STF पर ये आरोप बार-बार लगते रहे कि साहब ये सबका पीछा करते हैं, ये बृजेश सिंह का पीछा क्यों नहीं करते हैं. जबकि, बृजेश पर उस समय सबसे बड़ा इनाम था. जिस समय श्रीप्रकाश शुक्ला को हम लोगों ने मारा था. उस समय श्रीप्रकाश पर 2 लाख रुपए का इनाम था, जबकि बृजेश पर 2.5 लाख रुपए का इनाम था. त्रिभुवन सिंह और ये उस समय के सबसे ज्यादा इनाम वाले अपराधी थे उत्तर प्रदेश के.
जब श्रीप्रकाश शुक्ला का एनकाउंटर हुआ था उस समय भी शुक्ला, बृजभूषण शरण सिंह के यहां से बृजश सिंह से मिलकर लौटा था. वहां, भी STF ने इसका पीछा किया. उस समय का काम किया था पुलिस अधिकारी अरविंद चतुर्वेदी ने जो STF में था. उसके डिटेल जो वहां भुवनेश्वर के बिजनेस के थे वो सब इकट्ठा हो गए थे. ऑलमोस्ट वहां तक STF पहुंच गई. इस बात की जानकारी इसको भी हो गई थी. अगर इसकी घेराबंदी हुई होती तो ये मारा ही जाता. कोई दूसरा चारा नहीं था. तो इसने मैन्युप्लेट करके दिल्ली पुलिस को सरेंडर दिया.
बृजेश सिंह की गिरफ्तारी के बाद उसके परिवार ने भी राजनीतिक वजूद को बढ़ाना शुरू कर दिया. उसके बड़े भाई उदयनाथ सिंह दो बार MLC रहे. खुद बृजेश सिंह भी एक बार बीजेपी से MLC रहा और अभी हाल ही में उसकी पत्नी अन्नपूर्णा सिंह फिर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर MLC बनी हैं. भतीजा सुशील सिंह तीसरी बार चंदौली से विधायक बना है.
बृजेश सिंह का कारोबार संभालने वाले एक करीबी ने BBC को बताया था कि वो हाई प्रोफ़ाइल होकर भी लो-प्रोफाइल रहते हैं और मीडिया से बात नहीं करते हैं, इसलिए धीरे-धीरे उन पर लगे सारे मुकदमे हटते जा रहे हैं. आगे हमारी कोशिश यही है कि बाकी के बचे मामलों में भी अदालत का निर्णय हमारे पक्ष में आएगा.
बृजेश सिंह और सुशील की राजनीतिक और व्यावसायिक रणनीति के बारे में बता करते हुए उसने बताया कि बचपन में इंसान भावनाओं के आधार पर संबंध बनाता है लेकिन राजनीति में सिर्फ़ मतलब के लिए रिश्ते बनाए जाते हैं.
अभी दोनों चाचा-भतीजा एक दूसरे की मजबूरी हैं इसलिए साथ हैं. लेकिन जेल से बाहर आने के बाद भैया भी सांसद का चुनाव लड़ना चाहेंगे क्योंकि दिल्ली जाकर संसद में बैठेंगे तभी तो पूर्वांचल पर कब्जा मजबूत होगा और हमारा व्यापार बढ़ेगा.
जमीन के अंदर जो भी चीजें हैं-जैसे रेत, गिट्टी और कोयला- जब तक इन पर हमारा कब्ज़ा नहीं होगा तो व्यापार में फायदा कैसे होगा? इसके लिए राजनीतिक ताकत की भी जरूरत है. बृजेश के करीबी का बयान क्या पूर्वांचल के लिए खतरे की घंटी है?
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