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ओपन डिबेट चाहते हैं अमरिंदर और केजरीवाल, Twitter पर ही भिड़े

क्या भारत की राजनीति‍ में खुली बहस की परंपरा शुरू होगी या सिर्फ अपने अपने मंच से तू-तू मैं-मैं का खेल चलता रहेगा?

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चुनाव से पहले अपने-अपने मंच से तो हर कोई अपने विरोधी पर हमला बोलता है, लेकिन देश में कोई बड़ा नेता लोगों के सामने ओपन डिबेट पसंद नहीं करता.

लेकिन शायद इस बार लोगों को सियासतदानों के बीच खुली बहस देखने को मिल जाए. दरअसल, पंजाब चुनाव को देखते हुए कांग्रेस के नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह ने दिल्‍ली सीएम अरविंद केजरीवाल को ट्वीट कर खुली बहस के लिए चैलेंज कर दिया. साथ ही केजरीवाल ने भी इस चुनौती को स्‍वीकार करने में देर नहीं लगाई.

यह सारा मामला तब शुरू हुआ, जब अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर अमरिंदर सिंह को कहा, "सर, पंजाब में लोग यह कह रहे हैं कि मजीठिया के ड्रग्स का पैसा आप अपने चुनावी प्रचार के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं, क्या यह सही है? आप ने मजीठिया को 3 साल पहले सीबीआई से बचाया था."

उसी के जवाब में अमरिंदर सिंह ने खुली बहस के लिए अरविंद केजरीवाल को चुनौती दे दी.

अपने ट्वीट में अमरिंदर सिंह ने कहा, "अब जब आप ने अपना मुंह खोल दिया है, तो हमेशा की तरह पीछे मत हटना. साहस दिखाएं और खुली बहस के लिए आएं और समय, स्थान व मंच चुनें.''

मजे की बात यह है कि अरविंद केजरीवाल ने इस चैलेंज को स्वीकार करते हुए कहा, "मैं आपका चैलेंज स्‍वीकार करता हूं, मैं चार नामों का सुझाव देता हूं- एचएस फुल्का, जरनैल सिंह, भगवंत या गुरप्रीत. स्‍पीकर, दिन, समय, जगह आप चुन लें.

मामला यहां नहीं थमा. कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जवाबी हमला करते हुए कहा कि पंजाबी सामने से बात करते हैं, वह छुपा नहीं करते. क्या आपने यह स्वीकार कर लिया है कि आप मुझसे खुली बहस में सामना नहीं कर सकते.

अब केजरीवाल कहां चूकने वाले थे. उन्होंने खुद अमरिंदर सिंह से बहस न करने की बात करते हुए कहा, ''आपसे तो हमारी पंजाब टीम बहस करेगी. मैं किसी भी समय कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी से खुली बहस के लिए तैयार हूं.''

अब अरविंद केजरीवाल तो खुद को राष्ट्रीय स्तर का नेता मानते हैं, तो भला वो कैसे राज्य स्तर के नेता से बहस करते? उन्होंने अपनी पार्टी के बाकी लोगों से बहस के लिए कहा.

इसी का फायदा उठाते हुए अमरिंदर सिंह ने तल्‍ख शब्‍दों में कहा, “आप हमेशा सब पर सिर्फ इल्जाम लगाते हैं, खुद को आम आदमी कहते हैं, लेकिन सिर्फ प्रधानमंत्री और किसी पार्टी के अध्यक्ष से ही बहस करना चाहते हैं?”

अब देखना यह है कि क्या देश की राजनीति‍ में खुली बहस की परंपरा शुरू होगी या हमेशा की तरह सिर्फ अपने-अपने मंच से 'तू-तू मैं-मैं' का खेल चलता रहेगा?

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