नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (NCP) प्रमुख शरद पवार ने शनिवार को आरोप लगाया कि केंद्र ने पोल खुलने के डर से भीमा कोरेगांव हिंसा मामले की जांच NIA को सौंप दी है. पवार ने ये भी कहा, अन्याय के खिलाफ बोलना नक्सलवाद नहीं था.
शरद पवार ने कहा, "मुझे लगता है कि सरकार को डर है कि उनकी पोल खुल सकती है. इसलिए भीमा कोरेगांव हिंसा की जांच का मामला एनआईए को ट्रांसफर करने का फैसला लिया गया है."
पवार ने कुछ दिन पहले इस मामले में एसआईटी से जांच के लिए राज्य के गृह विभाग को पत्र लिखा था और पुलिस के खिलाफ जांच के लिए भी कहा था. इसके अलावा जांच अधिकारियों के तौर-तरीकों पर भी सवाल उठाया गया. पत्र में इस बात का भी जिक्र किया गया था कि एल्गर परिषद मामले में कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी गलत और बदले की भावना से प्रेरित थी. शरद पवार ने की गई कार्रवाई में रिटायर्ड जज से जांच की मांग की थी.
बता दें, 1 जनवरी 2018 को पुणे के भीमा कोरेगांव कोरेगाव में दो गुटों में हिंसक झड़प हुई थी. पुणे पुलिस ने इस मामले की तफ्तीश की और 9 एक्टिविस्ट को गिरफ्तार किया. पवार का आरोप ये है कि तत्कालीन फडणवीस सरकार की कार्रवाई बदले की भावना से की गई थी.
क्या है पूरा मामला ?
31 दिसंबर 2017 को पुणे में एल्गार परिषद का आयोजन किया गया था. 250 साल पहले दलितों और मराठाओं के बीच हुए युद्ध में दलितों की जीत का जश्न मनाने के लिए हर साल दलित यहां जमा होते हैं. इस कार्यक्रम में कुछ भड़काऊ भाषण देने का आरोप है.
इसी के अगले दिन हिंसा हुई थी. सरकार का आरोप था कि कार्यक्रम आयोजित करने वालों के माओवादियों से संबंध हैं. इस बिनाह पर पुलिस ने सुधीर धवले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, महेश राउत, सोम सेन,अरुण परेरा समेत 9 लोगो को गिरफ्तार किया था, जिन्हें आज भी जमानत नहीं मिल सकी है.
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