जब आप गोवा के भीड़भाड़ वाले समुद्री तटों से दूर दक्षिणी गोवा में प्रवेश करते हैं, तो वहां के ऊंचे-ऊंचे गिरजाघर आपका स्वागत करते हैं. राज्य की कुल आबादी 28 फीसदी कैथोलिक है, जो दक्षिणी गोवा में रहता है.
यहां की 40 विधानसभाओं में से 10 पर कैथोलिक समुदाय का बोलबाला है. ऐसे में संभव है कि बीजेपी कैथोलिक मतदाताओं को नजरअंदाज कर हिंदू मतदाताओं के वोट का ध्रुविकरण कर सकती है. लेकिन इस बार बीजेपी के लिए चौतरफा लड़ाई है और उत्तरी गोवा में पूर्व तीन सहयोगियों आरएसएस, महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी (एमजीपी) और शिवसेना का गठबंधन परेशान भी कर सकता है.
कैथोलिक समुदाय के साथ बीजेपी का रिश्ता
हालांकि इस गठबंधन के भीतर भी कई मुश्किलें चल रही हैं और इनका एजेंडा यहां के स्कूलों में मराठी भाषा को पढ़ाई का माध्यम बनाना है जो कि बहुत ही मुश्किल है. लेकिन इसके बावजूद यह गठबंधन उनके वोट शेयर को नुकसान पहुंचाने की ताकत रखता है और गोवा के छोटे-छोटे विधानसभा क्षेत्रों में कुछ सौ वोटों का अंतर भी जीत को हार में बदल सकता है.
ऐसे में अगर बीजेपी को यहां जीत दर्ज करनी है तो उसे कैथोलिक समुदाय की जरूरत पड़ेगी. साल 2012 में मनोहर पर्रिकर ने बीजेपी के लिए यह काम किया था. वह अपनी पार्टी और रोमन कैथोलिक समुदाय के बीच एक तालमेल बिठाने में कामयाब रहे थे. कैथोलिक जो आमतौर पर कांग्रेस के लिए वोट करते आए थे उन्हें पर्रिकर में 'विकास समर्थक' व्यक्ति के रूप में एक विकल्प दिखा था. लेकिन गोवा में बीजेपी का अच्छा वक्त तब खत्म हो गया जब नरेंद्र मोदी सरकार ने केंद्र में सत्ता संभाली.
बीजेपी के केंद्र में आते ही हिंदुत्तववादी आवाजों ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया और इधर गिरिजाघरों की चिंताएं बढ़ने लगी.
इसका पहला प्रमाण तब देखने को मिला जब तेलिगांव के चर्च के पादरी फादर मारिआनो कॉनसीको ने कांग्रेस का खुलेआम समर्थन किया. उन्होंने क्रिसमस के मौके पर खुलेआम लोगों से कांग्रेस के निष्कासित नेता बाबुश मॉन्साराते की पत्नी जेनिफर मॉन्साराते के समर्थन में वोट डालने की अपील की. उन्होंने वफादार लोगों से कांग्रेस को दोबारा से एक बड़ी जीत के साथ वापस लाने की अपील की.
चर्च लोगों का मतदान पर 'मार्गदर्शन' करता है
हर चर्च का एक राजनीतिक रुझान होता है यह एक ऐसा राज है जो सभी को पता है. कॉनसीको के सबके सामने कांग्रेस की तरफदारी करने के बाद आर्कबिशप-पैटरियाक फिलिप नेरी फेराओं ने एक सार्वजनिक समारोह में इस बात को फिर से दोहराया कि गोवा में मौजूद चर्च लोगों को मतदान के बारे में मार्गदर्शित करेंगे.
हालांकि चर्च में लोगों को जो 'दिशा निर्देश' दिए जाते हैं उसमें किसी भी प्रत्याशी या राजनीतिक पार्टी का नाम नहीं लिया जाता. काफी कुछ लोगों की समझ पर छोड़ दिया जाता है. लेकिन कई स्थानीय गिरिजाघरों में कुछ पादरी ऐसे भी होते हैं जो पार्टी का नाम नहीं लेते लेकिन प्रत्याशियों का खुलेआम समर्थन करते हैं.
ऐसे में राजनीतिक दल इन पादरियों से मिलकर इन्हें अपनी तरफ करने की कोशिश करते हैं. मनोहर पर्रिकर और नितिन गडकरी जो कि गोवा बीजेपी के प्रमुख भी हैं, उन्होंने जब फादर जेफेरीनो डिसूजा से पणजी के एक फाइव स्टार होटल में क्रिसमस से पहले मुलाकात की, तो कई लोगों को यह बात पसंद नहीं आई थी. लेकिन डिसूजा ने इस मीटिंग के बारे में कहा था कि उन्होंने इस दौरान 'केंद्र सरकार से जुड़े कुछ मुद्दों पर बात की थी.'
क्या गोवा में आप एक कैथोलिक पार्टी है?
आम आदमी पार्टी पर यह आरोप लगे हैं कि वह गोवा में एक कैथोलिक पार्टी है. हालांकि उसने पूरे राज्य में उम्मीदवार खड़े किए हैं लेकिन उसका अधिक ध्यान कैथोलिक इलाकों पर है.
पार्टी ने मुख्यमंत्री पद के लिए जो उम्मीदवार खड़ा किया है वह एक कैथोलिक है. यहां तक कि अरविंद केजरीवाल ने कैथोलिक समुदाय को खुश करने के लिए सेंट जॉन के उत्सव में हिस्सा लिया और साथ ही फूलों का मुकुट भी पहना.
ऐसे में जब बीजेपी नेताओं ने एक पादरी से मुलाकात की तो आप ने तुरंत इस पर प्रतिक्रिया दी. पार्टी के प्रवक्ता डॉ. ऑस्कर रेबेलो ने सवाल उठाए कि क्यों डिसूजा ने छिपकर बीजेपी के साथ मीटिंग की.
धार्मिक गुरुओं को नेताओं से मिलते वक्त प्रोटोकॉल का ध्यान रखना चाहिए.
आप पंजाब में सिख उग्रवादियों और गोवा में कैथोलिक समाज से काफी नजदीक है. इसके बावजूद पार्टी का कहना है कि वह एक सेक्युलर पार्टी है.
यह सही नहीं है. गोवा में हमने 23 हिंदू उम्मीदवार उतारे हैं और खुद अरविंद केजरीवाल ने उत्तरी गोवा में चार रैलियां की हैं. धर्म के आधार पर सोचना आप की नीतियों के खिलाफ है.ऐल्विस गोम्स, आप के गोवा मुख्यमंत्री उम्मीदवार
कैथोलिक समुदाय में भी होती है जाति व्यवस्था
इस बारे में कोई बात नहीं करता लेकिन गोवा में कैथोलिक समुदाय के बीच भी जाति व्यवस्था होती है. जिस तरह से महाराष्ट्र में कुछ बौद्ध धर्म के अनुयायी रहते हैं जो पहले हिंदू थे लेकिन बाद में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया. जब वह शादी करते हैं तो वो यह जरूर देखते हैं कि सामने वाला किस हिंदू समुदाय या जाति का है. वैसे ही गोवा में रहने वाले कैथोलिक भी अपने हिंदू वंशजों से भलि भांति परिचित हैं.
हिंदुओं की ही तरह गोवा में रहने वाले कैथोलिक समुदाय में तीन स्तरीय जाति प्रणाली होती है. ब्राह्मण (पूर्व सारस्वत), चरोदास (पूर्व क्षत्रिय) और शूद्र (पूर्व पिछड़ी जाति). उनके नाम या रंग से उनके बारे में पता नहीं चलता न ही वो इसका दिखावा करते हैं और न ही ऐसी कोई संस्था होती है जो उनकी जाति पर आधारित हो, लेकिन इसके बावजूद उन्हें पता होता है कि कौन क्या है.
गोवा में हिंदू सारस्वतों के खिलाफ अन्य लोगों में एक गुस्सा सा है क्योंकि उनकी संख्या तो काफी कम है लेकिन वह राज्य की अर्थव्यवस्था और धर्म को नियंत्रित करते हैं. ऐसी ही हालत सारस्वत समुदाय की है जिन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया है. आम आदमी पार्टी ने ऐल्विस गोम्स को अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार चुनकर बहुत ही समझदारी का काम किया है. वह एक चरोदास ईसाई हैं, ऐसे में वह शूद्र समुदाय के बीच ज्यादा पसंद किए जाएंगे.
आगे क्या?
दक्षिणी गोवा में कैथोलिक समुदाय के वोट कांग्रेस और आप के बीच बंटने वाले हैं. उत्तरी गोवा में हिंदुओं पर अपनी पकड़ खोने के बाद कांग्रेस को भी दक्षिणी गोवा से ही उम्मीद है क्योंकि वहां कुछ मुस्लिम समुदाय के लोग भी रहते हैं जो उसके हक में वोट दे सकते हैं.
आप प्रत्याशी यहां घर-घर जाकर लोगों को रिझाने की कोशिश कर रहे हैं. वहीं भाजपा ने यहां के 127 अंग्रेजी माध्यम स्कूल जो कि चर्च की देखरेख में चलते हैं उन्हें सरकारी मदद दी है. भाजपा ने यहां आरएसएस की जगह चर्च को तवज्जो दी है और ऐसे में पार्टी को यहां से मिलने वाले हिंदू-मराठी वोटों का कुछ नुकसान जरूर होगा.
अगर भाजपा अपनी सरकार बचाए रखना चाहती है तो कैथोलिक उसके लिए जरूरी है, वहीं अगर कांग्रेस यहां कुछ करना चाहती है तो बिना इस समुदाय के वो मुमकिन नहीं है और दूसरी तरफ आप अगर यहां अपनी पैठ बनाना चाहती है तो वह कैथोलिक समुदाय के जरिए ही मुमकिन है.
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