छतीसगढ़ सरकार की योजनाओं के तहत सुदूर इलाकों में स्थित 4 नक्सल प्रभावित गांवों तक बिजली पहुंच गई है. सुदूर इलाकों में बिजली पहुंचने के साथ ही छत्तीसगढ़ में स्व सहायता समूह के जरिए रोजगार से जुड़ने वाली महिलाओं की संख्या भी बढ़ी है.
आजीविका गतिविधियों से जुड़ रही महिलाएं
बता दें कि प्रदेश के जशपुर विकासखंड के बालाछापर गौठान में रूरल इंडस्ट्रियल पार्क (रीपा) स्थापित कर ग्रामीणों और स्व-सहायता समूहों को ग्रामीण परिवेश के अनुकूल छोटे-छोटे व्यवसायों से जोड़ा गया है. इस रीपा गौठान में जहां गोबर से जैविक खाद बनाने के साथ ही विभिन्न गतिविधियां संचालित की जा रही हैं वहीं सामुदायिक बाड़ी, मोटर ड्राइविंग यूनिट, मुर्गी-बकरी पालन, तेल प्रसंस्करण यूनिट, आटा मिल, पॉपकोन मशीन, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, मेडिकल वेस्ट डिस्पोज सहित अन्य गतिविधियों के माध्यम से भी रोजगार उपलब्ध कराया जा रहा है. गौठान से जुड़ी समूह की सभी महिलाओं द्वारा मल्टी एक्टिविटी के माध्यम से अब तक कुल 8 लाख 7 हजार 264 रूपए की आय अर्जित की गई है.
इसके अलावा गोधन न्याय योजना के माध्यम से गौठान में पशुपालकों व किसानों से 2 रुपए प्रति किलो की दर से गोबर खरीदी की जा रही है. बालाछापर गौठान में गोधन न्याय योजना के तहत अब तक 811.35 क्विंटल गोबर की खरीदी की गई है.
जैविक खाद निर्माण से जुड़ी कमल स्व सहायता समूह की महिलाओं ने बताया कि, 'अब तक उनके द्वारा 115.80 क्विंटल जैविक खाद का उत्पादन एवं 113.10 क्विंटल खाद का विक्रय किया गया है. जिससे उन्हें लगभग 43 हजार की आय हुई है.'
इसी प्रकार गौठान में मेडिकल वेस्ट निपटान हेतु महिलाओं को प्रशिक्षण प्रदान करने के साथ ही इंसीनरेटर मशीन स्थापित किया गया है. इस कार्य से जुड़ी राधारानी समूह की महिलाओं द्वारा जिला चिकित्सालय से निकलने वाले बायो मेडिकल कचरे का निपटान व डिस्पोज कर 4 लाख 20 हजार एवं स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के कार्य से 55 हजार की आमदनी प्राप्त की है. साथ ही राधारानी समूह की महिलाओं को पशुपालन विभाग द्वारा मुर्गी पालन के लिए कड़कनाथ, देशी मुर्गी व बायलर मुर्गी के चूजें भी प्रदान किए गए हैं. महिलाओं को मुर्गियों के उचित रखरखाव एवं बीमारियों से बचाव हेतु आवश्यक प्रशिक्षण भी प्रदान किया गया. महिला समूह द्वारा चूजों का नियमित देखभाल एवं समय से दाना-पानी खिलाने से चूजों का अच्छा विकास हुआ है.
महिलाओं ने बताया कि, 'उन्हें अब तक 450 नग मुर्गियों के विक्रय से 45 हजार की आय हुई है. साथ ही अभी उनके पास गौठान में कई नग चूजे, एवं कड़कनाथ, देशी सहित अन्य मुर्गी विक्रय के लिए उपलब्ध है. विकसित होने पर इनका स्थानीय बाजार में विक्रय किया जाएगा.'
वहीं गौठान में मोटर ड्राइविंग प्रशिक्षण यूनिट का संचालन कर रही लक्ष्मी समूह को अब तक 1 लाख 41 हजार एवं पॉपकॉर्न उत्पादन से 8 हजार की आय हुई है. गोठान में तेल मिल का संचालन कर रही सखी स्व-सहायता समूह की महिलाओं द्वारा तेल पेराई, तेल व खरी के विक्रय कर 56 हजार 500 एवं आटा मिल से 12 हजार रुपए की आमदनी अर्जित कर चुकी है. इसके अलावा सामुदायिक बाड़ी विकास का कार्य कर रही सहेली समूह को लगभग 47 हजार की आमदनी हुई है. उनके द्वारा गौठान में सामुदायिक बाड़ी विकसित कर लौकी, करेला भिंडी, बरबट्टी, टमाटर जैसी ताजी हरी सब्जियों का उत्पादन किया जा रहा है.
गौठान में कार्यरत सभी समूह की महिलाओं का कहना है कि, गौठान में संचालित आजीविका गतिविधियों के माध्यम से उन्हें रोजगार मिला है. जिससे वे अपने परिवार को आर्थिक मजबूती प्रदान करने में योगदान दे रही है. उन्होंने कहा कि, प्रशासन द्वारा महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए विशेष रूप से कार्य किया जा रहा है. जिसका उन्हें सीधा लाभ मिल रहा है.
औषधीय प्रजातियों के कृषिकरण से होगा दोगुना से भी अधिक लाभ
राज्य में आदिवासी, स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधि पादप बोर्ड द्वारा संचालित विभिन्न योजनांतर्गत औषधीय प्रजातियों के कृषिकरण कार्य को विशेष रूप से बढ़ावा दिया जा रहा है. इसके तहत वर्तमान में राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में जलवायु के अनुकूल प्रजातियों का चयन कर लगभग 1000 एकड़ से अधिक रकबा में औषधीय प्रजातियों का कृषिकरण कार्य किया जा रहा है.
सीएम भूपेश बघेल की मंशा के अनुरूप और वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री मोहम्मद अकबर के मार्गदर्शन से राज्य में पायलट परियोजना अंतर्गत लेवेंडर की खेती के लिए छत्तीसगढ़ के उत्तरी भाग में अम्बिकापुर, मैनपाट, जशपुर और रोजमेरी मध्य क्षेत्र बस्तर तथा मोनाड्रा सिट्रोडोरा का कृषिकरण कार्य को बढ़ावा देने चिन्हांकित किया गया है. औषधीय एवं सुगंधित प्रजातियों के कृषिकरण कार्य से किसानों को परंपरागत खेती से दोगुना या इससे भी अधिक लाभ प्राप्त होता है.
औषधीय पादप बोर्ड के मुख्य कार्यपालन अधिकारी जे.ए.सी. राव ने बताया कि, नेशनल एरोमा मिशन योजना अंतर्गत राज्य में छत्तीसगढ़ आदिवासी, स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं पादप बोर्ड के सहयोग द्वारा औषधीय एवं सुगंधित पादपों का कृषिकरण कार्य जारी है. इस मिशन के तहत लेमनग्रास, सीकेपी-25 (नींबू घास) का कृषिकरण किया जा रहा है.
इस योजना के तहत मुख्य रूप से कृषक समूह और किसानों को कृषिकरण की तकनीकी जानकारी, रोपण सामग्री की उपलब्धता तथा आश्वन मशीन उपलब्ध कराने जैसे हर तरह की मदद दी जा रही है.
बता दें कि वर्तमान में छत्तीसगढ़ राज्य में 02 समूहों द्वारा कार्य किया जा रहा है, जिसमें पहला जिला महासमुंद अंतर्गत ग्राम-चुरकी, देवरी, खेमड़ा, डोंगरगांव, मोहदा व अन्य स्थानों पर कृषिकरण प्रारंभ कर आश्वन यंत्र के माध्यम से तेल को निकाला जा रहा है. साथ ही आश्वन यंत्र भी स्थापित किया गया है.
छत्तीसगढ़ आदिवासी, स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधि पादप बोर्ड द्वारा विपणन कार्य हेतु पूर्व में भी योजनाबद्ध तरीके से उत्पादों को विक्रय करने हेतु विभिन्न संस्थानों से करारनामा किया गया है, जिससे कृषकों को अपने उत्पादों को विक्रय करने में कोई परेशानी न हो. साथ ही आइ.आई.आई.एम. जम्मू से तकनीकी विशेषज्ञ डॉ. राजेन्द्र बावरिया एवं राजेन्द्र गोचर के द्वारा वर्ष भर क्षेत्र में भ्रमण कर कृषकों को कृषिकरण की तकनीकी जानकारी तथा क्षमता विकास हेतु प्रशिक्षण दिया जा रहा है. जिससे कृषकों द्वारा कृषिकरण में होने वाली कठिनाईयों का समाधान होगा.
नदी-नालों के पुनर्जीवन से बदलने लगी किसानों की तकदीर
जल संरक्षण का व्यापक स्तर पर फायदा पर्यावरण, जैवविविधता के साथ किसानों और आम नागरिकों को मिल सकता है. इसी सोच के साथ राज्य सरकार ने प्रदेश में नरवा संरक्षण की पहल की है. नदी, नालों के पुनर्जीवन से जहां जल संरक्षण और भू-जल स्तर में वृद्धि हुई है, वहीं नरवा में बने जल संरक्षण संरचनाओं से किसानों की सिंचाई सुविधा में भी काफी बढ़ोत्तरी देखी गईं है.
बता दें कि प्रदेश के सुदूर दक्षिण कोण्डागांव वनमंडल द्वारा बोटी कनेरा उप परिक्षेत्र में किये गये चियोर बहार नरवा विकास कार्य ने क्षेत्र के किसानों की खुशहाली और समृद्धि के द्वार खोल दिये हैं.
कैम्पा मद की वार्षिक कार्ययोजना 2021-22 के तहत वनाच्छादित क्षेत्र से निकलने वाले चियोर बहार नाला में नरवा उपचार किया गया है. हालांकि इसमें वन प्रबन्धन समिति के माध्यम से काकड़गांव के ग्रामीणों ने भी सक्रिय सहभागिता की. नाले के पुनर्जीवन के लिए किए गए योजनाबद्ध कार्यों का लाभ गांव के किसानों को मिला और उन्होंने सिंचाई सुविधा के विस्तार का लाभ लेकर अपनी तकदीर बदल दी है.
वहीं किसान सोमीराम नरवा में बनाए जल संरक्षण संरचना के पास स्थित अपने 2 हेक्टेयर कृषि भूमि पर अब खरीफ में उड़द और रबी में मक्का सहित साग-सब्जी की पैदावार ले रहे हैं.
सोमीराम सिंचाई साधन सुलभ होने से खुश होकर बताते हैं कि, पहले वे खेती के लिए बारिश पर निर्भर थे और केवल मक्का की खेती कर पाते थे. लेकिन नरवा सिंचाई सुविधा मिलने से अब अपने खेत में 3 हार्सपॉवर का विद्युत पंप लगवा लिया है.
सोमीराम सिंचाई सुविधा बढ़ने से रबी फसल में मक्का के अतिरिक्त भिन्डी, बैंगन, कद्दू, ग्वारफल्ली जैसी साग-सब्जी भी लगा रहे हैं. इससे उनकी आय बढ़ी है और वे क्षेत्र के अन्य किसानों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन गये हैं. अब गांव के किसान महेश और फगनू के साथ ही करीब 10 किसानों द्वारा रबी में मक्का एवं सब्जी की खेती की जा रही है.
वहीं नरवा में बनी जल संरचनाओं में वन प्रबन्धन समिति द्वारा ग्रामीणों के सहयोग से मछलीपालन भी शुरू किया गया है जिससे ग्रामीणों को अतिरिक्त आय का जरिया मिल गया है.
वन प्रबन्धन समिति काकड़गांव के अध्यक्ष विजय नाग ने बताया कि चियोर बहार नरवा विकास कार्यों ने क्षेत्र में हरियाली के साथ किसानों और ग्रामीणों के जीवन में भी खुशहाली ला दी है.
डीएफओ आरके जांगड़े ने बताया कि, चियोर बहार नाला-2 में 2 करोड़ 45 लाख रुपए की लागत से कुल 40,919 जलसंरक्षण और जल संवर्धन संरचनाओं का निर्माण कराया गया है. इससे नाले के 7 किलोमीटर परिधि क्षेत्र में 1100 हेक्टयर जल संग्रहण क्षेत्रफल को मद्देनजर रखते हुए 298 लूज बोल्डर चेकडेम, 143 ब्रशवुड चेकडेम, 11 गेैबियन संरचना, 35680 कन्टूर ट्रैंच के साथ ही 9 डाइक, तालाब गहरीकरण, परकोलेशन टैंक निर्मित किए गये हैं. जिससे नाले में निर्मित जल संरक्षण संरचनाओं में उपलब्ध पानी का उपयोग सिंचाई के लिए किया जा रहा है. इसके साथ ही इस नाले में निर्मित 15 मीटर लम्बी एवं 60 मीटर ऊंची कांक्रीट डाईक में लगभग 1800 क्यूबिक मीटर जल संग्रहित है.
बिजली की रौशनी से जगमगाया सुदूर वनांचल का नक्सल प्रभावित गांव
छत्तीसगढ़ सरकार की प्रयास से सुकमा जिले के सुदूर वनांचल के नक्सल प्रभावित चार गांव बिजली की रोशनी से जगमग हो उठा है. इन पांच गांवों में रहने वाले 653 परिवारों के घर रोशन हो उठे हैं. यह पांच गांव सिलगेर, कोलईगुड़ा, कमारगुड़ा, नागलगुण्डा, और करीगुण्डम है, जो अब तक विद्युत सुविधा से वंचित था.
वहीं इन गांवों में बिजली पहुंचने से ग्रामीण बेहद खुश है. उनका वर्षों का सपना साकार हो गया है.
छत्तीसगढ़ सरकार की बिजली बिल हाफ योजना, मुख्यमंत्री अधोसंरचना विकास योजना, मुख्यमंत्री मजराटोला विद्युतीकरण योजना, मुख्यमंत्री शहरी विद्युतीकरण योजना से विद्युत अधोसंरचना को नया आधार मिलने के साथ ही उपभोक्ताओं को बिजली बिल में छूट से राहत मिली है.
बता दें कि सुकमा जिले का कोलईगुड़ा, कमारगुड़ा, नागलगुण्डा, और करीगुण्डम गांव नक्सल प्रभावित रहा है, एक समय था, जब इन गांवों में पहुंचना मुश्किल था, जिसके कारण गांव और गांवों के लोग शासकीय योजनाओं और कार्यक्रमों के लाभ से भी वंचित थे.
छत्तीसगढ़ सरकार की विकास, विश्वास और सुरक्षा की नीति के चलते पूरे बस्तर अंचल में बदलाव की बयार बहने लगी है. वहां के वातावरण और जनजीवन में सकारात्मक बदलाव दिखाई देने लगा है. इसके साथ ही विकास एवं निर्माण कार्याें में शासकीय मिशनरी के साथ-साथ आम जनता की भागीदारी बढ़ी है, जिसके चलते बस्तर का हर इलाका तेजी से विकास की मुख्य धारा से जुड़कर तरक्की की राह चल पड़ा है.
कार्यपालन अभियंता, सीएसपीडीसीएल सुकमा ने बताया कि, 'मुख्यमंत्री मजराटोला विद्युतीकरण योजना के तहत कोलईगुड़ा के 82 परिवारों, करीगुण्डम के 160, कमारगुड़ा के 120, नागलगुण्डा के 81 औ सिलगेर के 210 घरों में विद्युत लाईन कनेक्शन किया गया है जिससे ग्रामीणों में उत्साह है.'
उद्योग मंत्री कवासी लखमा के प्रयासों से सुकमा के साथ-साथ बस्तर अंचल के सभी इलाकों में बुनियादी सुविधाओं की पहुंच संभव हुई है. स्वास्थ्य, सड़क, शिक्षा, पेयजल, विद्युत विकास के कार्य तेजी से कराए जा रहे हैं. सड़कविहीन क्षेत्रों को मुख्य सड़कों से जोड़ा जा रहा है. इससे शासकीय योजनाओं एवं कार्यक्रमों का लाभ आमलोगों तक पहुंचाने में आसानी होने लगी है.
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