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कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव और राजस्थान संकट, गहलोत-पायलट-गांधी परिवार सबकी दुविधा?

अशोक गहलोत की सोनिया गांधी से मुलाकात, राहुल से मिले सचिन पायलट: क्या राजस्थान की सियासी डील हो गयी है?

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कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव (Congress President Election) ने कांग्रेस शासित सबसे बड़े राज्य- राजस्थान में सियासी संकट खड़ा कर दिया है. यह बुधवार, 21 सितंबर की घटनाक्रम से स्पष्ट भी होता है.

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से उनके 10 जनपथ स्थित आवास पर करीब दो घंटे तक मुलाकात की. कथित तौर पर इस बैठक में कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल और कोषाध्यक्ष पवन कुमार बंसल भी मौजूद थे.

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दूसरी तरफ इस बीच राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम और राज्य की राजनीति में उनके वर्तमान प्रतिद्वंद्वी, सचिन पायलट, केरल के एर्नाकुलम जिले में ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान राहुल गांधी के साथ मौजूद थे.

अशोक गहलोत और सचिन पायलट दोनों ही गुरुवार, 22 सितंबर को ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में एकसाथ शिरकत कर रहे होंगे. सवाल है कि क्या इसका मतलब यह निकाला जाए कि राजस्थान का डील फाइनल हो गया है?

कांग्रेस के लिए राजस्थान के सियासी संकट का कारण यह है कि अशोक गहलोत राजस्थान में अपना उत्तराधिकार सचिन पायलट के हाथों में सौंपने के पक्ष में नहीं है.

इससे पहले अशोक गहलोत ने कहा कि वह राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालने के लिए मनाने की एक और कोशिश करेंगे. पहले ही पार्टी की कई राज्य और क्षेत्रीय इकाइयों ने प्रस्ताव पारित कर राहुल गांधी को एक बार फिर से पार्टी प्रमुख बनने के लिए कहा है.

कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव की रेस में गहलोत के संभावित प्रतिद्वंदी और तिरुवनंतपुरम से तीन बार के सांसद शशि थरूर ने भी कहा है कि अगर राहुल गांधी अध्यक्ष पद स्वीकार करने को तैयार हों तो वो चुनाव में भाग नहीं लेंगे.

हालांकि, अगर इसके बाद भी राहुल गांधी राजी नहीं हैं, तो अशोक गहलोत को अपना नामांकन दाखिल करना होगा, जिससे यह गहलोत बनाम थरूर की चुनावी लड़ाई बन जाएगी. गहलोत के पास गांधी परिवार और पार्टी के एक बड़े तबके का समर्थन है, ऐसी स्थित में उनकी जीत कमोबेश निश्चित है. इसने राजस्थान में उनके उत्तराधिकारी के सवाल को पार्टी के लिए एक बड़ा मुद्दा बना दिया है.

गहलोत गुट की क्या मांग है?

मंगलवार की देर रात गहलोत ने राजस्थान के सभी कांग्रेस विधायकों के साथ बैठक की और उनसे कहा कि वे एक बार फिर राहुल गांधी को मनाने की कोशिश करेंगे लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ तो वह अध्यक्ष पद के लिए अपना नामांकन दाखिल करेंगे.

नामांकन दाखिल करने की स्थिती में अशोक गहलोत ने विधायकों को दिल्ली भी आमंत्रित किया है.

विधायकों के साथ बैठक और उनको दिल्ली का निमंत्रण, दोनों ही गहलोत का शक्ति प्रदर्शन हैं. यह पार्टी नेतृत्व को यह बताने का तरीका है कि उन्हें राज्य के अधिकांश विधायकों का समर्थन प्राप्त है.

यही वह महत्वपूर्ण फैक्टर है जिसने 2018 में कांग्रेस के चुनाव जीतने और 2020 में पायलट के कथित बगावत के दौरान भी पायलट की चुनौती को दूर करने में उनकी मदद की है.

राजस्थान सरकार में गहलोत के समर्थकों के साथ-साथ विधायकों का कहना है कि वे पायलट के नीचे काम नहीं करना चाहते. उनमें से कुछ का तर्क है कि उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति के नेतृत्व को स्वीकार नहीं करना जिसने कथित तौर पर पार्टी के खिलाफ विद्रोह किया था.

राजस्थान सरकार में मंत्री अशोक चंदना द्वारा पायलट पर हालिया हमला भी दिखाता है कि उनका समर्थन कम है. जबकि गहलोत के वफादार अशोक चंदना पायलट की तरह ही गुर्जर जाति से आते हैं.
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गहलोत ने अपनी ओर से स्पष्ट किया है कि वह गुजरात चुनाव होने तक राजस्थान में पावर ट्रांसफर नहीं करना चाहते हैं- चाहे वह सचिन पायलट हों या ऐसा कोई उम्मीदवार ही जिसके नाम पर आम सहमति हो. अशोक गहलोत गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के वरिष्ठ पर्यवेक्षक (सीनियर ऑब्जर्बर) हैं.

हालांकि, गहलोत गुट निम्न प्रस्तावों को आलाकमान के सामने रखने की कोशिश कर रहा है:

  1. गहलोत को पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद भी कुछ और समय के लिए CM बने रहने दिया जाए.

  2. गहलोत की पसंद के व्यक्ति को CM बनाया जाए. जो नाम सुझाया गया है वह विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी का है.

  3. राजस्थान के CM बने रहते हुए गहलोत को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जाएगा.

  4. बीच के एक फॉर्मूले पर भी विचार किया जा रहा है जिसके अनुसार सीपी जोशी या गहलोत को स्वीकार्य कोई अन्य नेता CM बने और पायलट को डिप्टी CM बनाया जाए और उन्हें गृह मंत्रालय का प्रभार भी दिया जाए.

सीपी जोशी के बारे में ये अटकलें दिलचस्प हैं क्योंकि उन्हें 2008 में राहुल गांधी का समर्थन प्राप्त था, लेकिन वे CM नहीं बन सके क्योंकि वे अपनी ही सीट 1 वोट से हार गए थे. जयपुर के सिविल लाइंस में स्थित सीपी जोशी के बंगले नंबर 49 पर पिछले एक सप्ताह में चहल पहल बढ़ गयी है और वहां कई बैठके हो रही हैं.

एक और नाम, जिसकी चर्चा चल रही है वह रघु शर्मा का है

गहलोत और उनके समर्थक अच्छी तरह से जानते हैं कि अगर पायलट के अलावा कोई और अभी के लिए सीएम बनता है, तो गहलोत के पास 2028 में एक बार फिर सीएम बनने का मौका होगा. उस समय तक उनका कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में कार्यकाल भी समाप्त हो जाएगा.

हालांकि अगर अभी पायलट मुख्यमंत्री बनते हैं तो ऐसा करना मुश्किल होगा, क्योंकि वह राज्य में पार्टी का मुख्य चेहरा बन सकते हैं.

 मीडिया से बात करते हुए, पायलट ने कहा है कि एक व्यक्ति पार्टी में दो पदों पर नहीं रह सकता है. मतलब वो स्पष्ट रूप से संकेत दे रहे हैं कि अगर गहलोत को कांग्रेस अध्यक्ष बनना है राजस्थान के मुख्यमंत्री के रूप में पद छोड़ना होगा.

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गहलोत, पायलट और गांधी परिवार सभी एक दुविधा में क्यों हैं?

कांग्रेस के इस राजस्थान संकट में एक दिलचस्प पहलू यह है कि इसमें शामिल सभी लोग किसी न किसी तरह की दुविधा में हैं. गहलोत भले ही पार्टी अध्यक्ष बन जाएं, वह निस्संदेह राजस्थान की सत्ता में बने रहना चाहते हैं, चाहे वह CM बने रहें या ऐसा कोई CM बने जो उनको स्वीकार्य हो.

हालांकि अगर ऐसा होता है तो कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर गहलोत के लिए पहली चुनौती सचिन पायलट की बगावत से निपटने की होगी. यदि पायलट कांग्रेस छोड़ते हैं, तो यह गहलोत के लिए उनके अध्यक्षीय कार्यकाल की शुरुआत में ही मुश्किल पैदा करेगा.

दूसरी स्थिति में अगर पायलट सीएम बन भी जाते हैं, तो भी दोनों में से किसी के लिए भी यह आसान नहीं होगा. एक तरफ पायलट को पार्टी प्रमुख के रूप में गहलोत और राजस्थान में उनके वफादार विधायकों के विरोध का सामना करना पड़ेगा. दूसरी तरफ गहलोत भी मुश्किल स्थिति में होंगे क्योंकि तब पार्टी अध्यक्ष ही अपने एक CM के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व कर रहा होगा.

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी के लिए भी यह आसान विकल्प नहीं है. पहले ही गहलोत को पार्टी अध्यक्ष बनने के लिए मनाने के लिए सोनिया गांधी ने बहुत मेहनत की है. गहलोत ने अपनी अनिच्छा के बावजूद सोनिया गांधी की मांग मान ली है. यही कारण है कि सोनिया गांधी पर कुछ दबाव होगा कि वह कम से कम उत्तराधिकारी के लिए उनकी पसंद को स्वीकार करे.

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दूसरी तरफ यह कहा जाता है कि राहुल गांधी ने 2018 के चुनावों से पहले पायलट को CM की कुर्सी देने का वादा किया था. लेकिन इसके बावजूद जब गहलोत को चुना गया, तो कथित तौर पर राहुल गांधी ने पायलट से अपना वादा दोहराया था और उन्हें धैर्य रखने के लिए कहा था.

यानी अब समय है कि राहुल गांधी अपने वादे को पूरा करें. हालांकि वो गहलोत के खिलाफ भी जाने से पहले सोचेंगे क्योंकि गहलोत ने कांग्रेस अध्यक्ष बनने के लिए सहमति देकर उन्हें अध्यक्ष बनने के दबाव से बचा लिया है

सचिन पायलट के पास भी बहुत अधिक विकल्प नहीं हैं. उनके पास इतने विधायकों का समर्थन नहीं हैं कि अगर उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाता है तो वे राजस्थान सरकार गिरा सकते हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने यही काम मध्य प्रदेश में किया और बाद में बीजेपी ने उन्हें केंद्रीय मंत्री पद का पुरस्कार दिया.

इसकी संभावना नहीं है कि पायलट को ऐसा ही कोई डील मिलेगा. इस बात का कोई सबूत भी नहीं है कि पायलट वर्तमान में बीजेपी के साथ कुछ भी बातचीत कर रहे हैं.

लेकिन अगर वह बीजेपी में शामिल हो जाते हैं, तो उनके मुख्यमंत्री बनने की संभावना नहीं है, क्योंकि वसुंधरा राजे अभी भी प्रभावशाली हैं और गजेंद्र सिंह शेखावत भी मौके का इंतजार कर रहे हैं.

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इसके बाद पायलट के पास अपनी पार्टी बनाने का विकल्प बचता है, जो कि आसान काम नहीं है. क्योंकि राजस्थान ने पारंपरिक रूप से कांग्रेस या बीजेपी को ही वोट दिया है, जिसमें छोटी पार्टियां हाशिए पर रही हैं. छोटी पार्टियों में भी हनुमान बेनीवाल की RLP और भारतीय ट्राइबल पार्टी पहले से मौजूद हैं.

गहलोत और पायलट दोनों ही जानते हैं कि राजस्थान के वोटर हर पांच साल बाद बीजेपी को हटाकर कांग्रेस और कांग्रेस को हटाकर बीजेपी को लाते हैं. आदर्श रूप से दोनों में से कोई भी 2023 में संभावित हार का कारण नहीं बनना चाहेगा.

हालांकि, जबकि गहलोत एक बड़े पद की ओर बढ़ रहे हैं, यह पायलट के लिए सबसे अच्छा मौका हो सकता है. पंजाब में नवजोत सिद्धू और चरणजीत चन्नी के उदाहरण पायलट के लिए एक सबक है कि भविष्य में बेहतर अवसर की प्रतीक्षा करना या बहुत देर से कुर्सी मिलना, दोनों ही बुरे विकल्प हैं.

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