ADVERTISEMENTREMOVE AD

MCD: क्यों मेयर से अहम स्टैंडिंग कमेटी? BJP-AAP कौन मजबूत, कैसे होता है चुनाव

पार्षदों ने एक दूसरे पर बोतलें फेंकी, खा-खाकर सेब फेंकी. जिस वजह से चुनाव प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी.

छोटा
मध्यम
बड़ा

दिल्ली नगर निगम (MCD) में मेयर और डिप्टी मेयर चुनाव तो हो गया, लेकिन स्टैंडिंग कमेटी यानी स्थायी समिति के चुनाव के दौरान MCD सदन में रातभर जमकर हंगामा हुआ. आम आदमी पार्टी और बीजेपी के पार्षदों के बीच जमकर हाथापाई हुई, धक्का-मुक्की हुई. पार्षदों ने एक दूसरे पर बोतलें फेंकी, खा-खाकर सेब फेंकी. जिस वजह से कई बार सदन स्थगित किया जाता रहा, लेकिन इन सबके बावजूद चुनाव प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

ऐसे में आपके मन में भी सवाल हो सकता है कि जब मेयर, डिप्टी मेयर का चुनाव हो गया तो फिर स्टैंडिंग कमेटी चुनाव में इतना बवाल क्यों? क्यों माननीय पार्षद, सड़क छाप की तरह कर रहे हैं? क्यों इसे लेकर बीजेपी और AAP दोनों ही एक दूसरे पर आरोप लगा रही है?

आइए जानते हैं स्टैंडिंग कमेटी में किसका पलड़ा भारी है? कैसे इसका चुनाव होता है? क्यों ये मेयर चुनाव से भी अहम है?

क्या है स्टैंडिंग कमेटी?

दरअसल, मेयर नगर निगम का नाममात्र का चीफ या हेड होता है, जब्कि स्थायी समिति के पास कार्यकारी शक्तियां होती हैं.

एक मेयर की शक्तियां, सदन की विशेष बैठकें बुलाने, सदन की बैठक बुलाने के लिए कोरम की घोषणा करने और अगर पार्षद अपनी संपत्ति का विवरण नहीं देते हैं, तो सदस्यों की अयोग्यता की घोषणा करने तक सीमित है. वहीं स्टैंडिंग कमेटी नगर निगम के अहम फैसले लेने वाली संस्था है. इसमें कुल 18 सदस्य होते हैं.

प्रोजेक्टस को फाइनेंशियल अप्रूवल देने, लागू की जाने वाली नीतियों से जुड़े चर्चाओं को अंतिम रूप देने, उप-समितियों को नियुक्त करने (शिक्षा, पर्यावरण, पार्किंग आदि जैसे मुद्दों पर) और रेगुलेशन बनाने की शक्तियां स्थायी समिति के दायरे में आती हैं.

इसे आप ऐसे समझिए कि दिल्ली नगर निगम में मेयर और डिप्टी मेयर के पास फैसले लेने की शक्तियां काफी कम हैं. लगभग सभी बड़े आर्थिक और प्रशासनिक फैसले 18 सदस्यों वाली स्टैंडिंग कमेटी ही लेती है और उसके बाद ही उन्हें सदन में पास करवाने के लिए भेजा जाता है.

स्टैंडिंग कमेटी में एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष होता है, जो इसके सदस्यों में से चुना जाता है. किसी भी राजनीतिक दल के लिए निगम की नीति और वित्तीय फैसलों पर कंट्रोल रखने के लिए कमेटी में स्पष्ट बहुमत होना महत्वपूर्ण है.

कैसे होता है चुनाव?

दिल्ली नगर निगम की इस स्टैंडिंग कमिटी के 18 सदस्यों का चुनाव दो तरीके से होता है. मेयर के चुनाव के बाद समिति के छह सदस्य सीधे एमसीडी हाउस में चुने जाते हैं. इस बार इन्हीं 6 मेंबर के चुनाव को लेकर सदन में हंगामा हो रहा है.

इन 6 मेंबर को लेकर सीक्रेट वोटिंग होती है, लेकिन वो आम वोटिंग की तरह नहीं होती. इन सदस्यों का चुनाव राज्यसभा सदस्यों की तरह प्रेफरेंशियल वोटिंग के आधार पर किया जाता है. जिसमें पहले 36 वोट हासिल करने वाले पार्षद जीत जाते हैं. बाकी 12 का चयन वार्ड समितियों द्वारा किया जाता है.

इसे ऐसे जानिए कि दिल्ली में एमसीडी को 12 जोन में बांटा गया है. हर क्षेत्र में एक वॉर्ड समिति होती है, जिसमें क्षेत्र के सभी पार्षद शामिल होते हैं, साथ ही वर्तमान मामले में एल-जी, सरकारी प्रशासक यानी कि इस केस में उप राज्यपाल द्वारा नॉमिनेटेड एल्डरमैन भी शामिल होते हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

अब आते हैं अहम सवाल पर, किसका पलड़ा भारी?

नगर निगम में असली सरकार स्टैंडिंग कमेटी होती है और अभी स्टैंडिंग कमेटी के छह सदस्यों का चुनाव होना बाकी है, जिसे लेकर आम आदमी पार्टी और बीजेपी के पार्षद सदन में हाथापाई-मारपीट सब कर रहे हैं. इन 6 सीटों के लिए आम आदमी पार्टी ने चार सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं, वहीं बीजेपी ने तीन सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं. अब सीट 6 है तो ऐसे में दोनों पार्टियों में से किसी एक के उम्मीदवार की हार तय है.

जानकारों की मानें तो बीजेपी को अपने सभी तीनों उम्मीदवारों को जिताने के लिए जितने वोट चाहिए, उसके पास उससे तीन वोट कम थे.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
यहां एक बात अहम है कि स्टैंडिंग कमेटी सदस्यों के चुनाव में नामित विधायकों, सांसदो, एल्डरमैन को वोटिंग का अधिकार नहीं होता है. मतलब कुल वोट 250 ही होंगे. इसे ऐसे समझते हैं कि अगर किसी उम्मीदवार को फर्स्ट प्रिफरेंस वोट हासिल करके ही जीत चाहिए तो उसे 250 के सातवें हिस्से से एक ज्यादा पहला प्रिफरेंस हासिल करना होगा, जो कि 37 वोट का आंकड़ा बैठता है. इस हिसाब से आम आदमी पार्टी को 4 सीट जीतने के लिए 148 फर्स्ट प्रिफरेंस वोट चाहिए जबकि उसके पास सिर्फ 134 पार्षद हैं.

वहीं दूसरी ओर बीजेपी को 3 सीटें जीतने के लिए 111 पहला प्रिफरेंस चाहिए होगा, लेकिन उसके पास सिर्फ 105 ही पार्षद हैं. अब यहां पर कांग्रेस के 9 और 2 निर्दलिय पार्षद के वोट मायने रखते हैं. चाहे वो वोट करें या वोटिंग में हिस्सा न लें.

12 जोन के चुनाव और एलडरमैन का खेल

अब आते हैं बाकी बचे 12 सदस्य पर. दिल्ली नगर निगम में 12 जोन हैं, जिनमें फिलहाल संख्या बल के हिसाब से देखें तो 8 पर आम आदमी पार्टी का कब्जा होगा और 4 पर बीजेपी का. मतलब दूसरी 6 सदस्यों के चुनाव में अगर दोनों तीन-तीन की बराबरी पर भी रहते हैं, तो स्टैंडिंग कमेटी के 3 प्लस 8 यानी कि 11 सदस्य आम आदमी पार्टी के होंगे और 3 प्लस 4 मतलब 7 सदस्य बीजेपी के.

लेकिन यहां मामला फंस जाता है, क्योंकि भले ही 6 सदस्यों के मामले में 10 एलडरमैन यानी दिल्ली के उपराज्यपाल द्वारा नामित 10 पार्षद को वोट देने का हक नहीं था, लेकिन 12 जोन के चुनाव में इन एलडरमैन को वोटिंग का अधिकार होता है. लेकिन ऐसा जरूरी नहीं कि वो 10 नामित पार्षद हर जोन में हों, बल्कि उनका मनोनयन एक या कुछ खास जोन में भी हो सकता है. अब जीत हार के हिसाब से एलडरमैन जिस भी जोन में जाएंगे, वहां का समीकरण बदल जाएगा. तो कुल मिलाकर लड़ाई एमसीडी में असल कब्जे यानी स्टैंडिंग कमेटी पर पकड़ बनाने की है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×