कांग्रेस आलाकमान द्वारा कर्नाटक के अगले मुख्यमंत्री के रूप में पूर्व सीएम सिद्धारमैया (Siddaramaiah) को चुने जाने के बाद, कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस प्रमुख डीके शिवकुमार (DK Shivakumar) ने कहा, 'मैंने पार्टी के हित के लिए बलिदान दिया है.' उनके भाई, लोकसभा सांसद डीके सुरेश ने भी कुछ ऐसी ही भावना जताई है.
कांग्रेस के 'संकटमोचक' कहे जाने वाले शिवकुमार 20 मई को कर्नाटक के डिप्टी सीएम के रूप में शपथ लेने वाले हैं.
सिद्धारमैया के पक्ष में तीन फैक्टर गए:
सीनियरिटी: सिद्धारमैया 75 वर्ष के हैं, जबकि शिवकुमार 62 वर्ष के हैं.
ओबीसी, दलित और अल्पसंख्यक मतदाताओं के बीच कांग्रेस के आधार के एक बड़े हिस्से पर सिद्धारमैया का नियंत्रण
तथ्य यह है कि अगर पार्टी शिवकुमार के साथ गई होती तो उसके पास सिद्धारमैया को देने के लिए सम्मानजनक विकल्प कुछ भी नहीं था. पूर्व सीएम होने के नाते, सिद्धारमैया से डिप्टी सीएम बनने की उम्मीद नहीं की जा सकती थी और राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी उन्हें कुछ भी नहीं दे सकती थी.
लेकिन शिवकुमार के लिए आगे क्या है? उन्होंने पार्टी नेतृत्व के सामने अपनी कौन सी चिंताएं रखी हैं? आखिर उन्होंने डिप्टी सीएम के पद से संतोष क्यों कर लिया?
हम इस आर्टिकल में इन्हीं सवालों के जवाब देने की कोशिश करेंगे.
डीके शिवकुमार की चिंताएं क्या थीं?
शिवकुमार ने 2020 में कर्नाटक पीसीसी प्रमुख की जिम्मेदारी संभालने के बाद से पार्टी के लिए की गई कड़ी मेहनत का हवाला दे रहे थे. उससे एक साल पहले, यानी 2019 में कांग्रेस को लोकसभा चुनावों में अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा था. पार्टी 28 में से सिर्फ एक सीट जीत पाई थी- बेंगलुरु ग्रामीण से शिवकुमार के अपने भाई डीके सुरेश जीते थे.
शिवकुमार ने पार्टी के लिए किए गए बलिदानों का हवाला दिया था, खासकर जिस तरह से उन्हें गिरफ्तार किया गया था और 50 दिनों तक जेल में रखा गया था. उनका दावा है कि BJP की ओर से इस दुर्दशा से बचने के प्रस्ताव मिलने के बावजूद, वह पार्टी के प्रति दृढ़ता से वफादार रहे.
शिवकुमार को कई एजेंसियों के छापे का भी सामना करना पड़ा है. सिर्फ वे ही नहीं, उनके द्वारा हायर की गई फर्म - Designboxed - को भी छापे का सामना करना पड़ा.
शिवकुमार खेमा यह भी आरोप लगाता रहा है कि शिवकुमार तुलना में सिद्धारमैया संगठन के व्यक्ति नहीं हैं और पार्टी में उतना योगदान नहीं देते हैं.
शिवकुमार ने उपमुख्यमंत्री के रूप में पदभार ग्रहण करने के लिए अपनी अनिच्छा इसलिए भी व्यक्त की क्योंकि यह पद अपने आप में बहुत अधिक मूल्य नहीं रखता है, विशेष रूप से बीएस येदियुरप्पा के अंतिम कार्यकाल में बीजेपी के पास कई डिप्टी सीएम थे.
शिवकुमार के लिए सत्ता के बंटवारे के रूप में पांच साल के कार्यकाल के बीच में या पांच साल बाद मुख्यमंत्री बनाए जाने का आश्वासन भी बहुत अधिक विश्वास को प्रेरित नहीं करता था. इसकी वजह थी कि उनके सामने पंजाब, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में कांग्रेस आलाकमान के इसी तरह के वादों का क्या हुआ, इसके उदाहरण थे.
आखिर शिवकुमार ने डिप्टी सीएम का पद क्यों स्वीकार किया?
पार्टी नेतृत्व ने अपनी ओर से शिवकुमार के योगदान को स्वीकार किया और इस तथ्य को भी स्वीकार किया कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर उनका दावा उचित था.
रणदीप सुरजेवाला और केसी वेणुगोपाल, दोनों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार दोनों ही सीएम बनने के लायक हैं. यह वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष के साथ-साथ गांधी परिवार के स्टैंड को दर्शाता है.
पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी सभी ने व्यक्तिगत रूप से शिवकुमार से बात की. माना जा रहा है कि उन्हें आश्वासन दिया गया था कि उनका टाइम आएगा.
माना जा रहा है कि विशेष रूप से खड़गे ने अपने स्वयं के करियर का उदाहरण दिया, कि कैसे कर्नाटक में मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए उनकी वरिष्ठता के बावजूद उन्हें कई बार अनदेखा किया गया.
वह 1999, 2004 या 2013 में सीएम बन सकते थे, लेकिन एसएम कृष्णा, धरम सिंह और सिद्धारमैया जैसे नेताओं से गपिछड़ गए. और फिर भी अब वह संगठन के प्रति अपनी निष्ठा और प्रतिबद्धता के कारण किसी भी वर्तमान या पूर्व मुख्यमंत्री से अधिक शक्तिशाली हो गए हैं.
कांग्रेस नेतृत्व ने शिवकुमार को बताया कि वह न केवल कर्नाटक में बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी पार्टी के लिए एसेट/बहुमूल्य हैं.
उपमुख्यमंत्री के पद के बारे में उनकी विशेष चिंता को कुछ हद तक पार्टी द्वारा यह घोषणा करने के साथ दूर किया गया था कि वे एकमात्र उपमुख्यमंत्री होंगे.
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