ADVERTISEMENTREMOVE AD

DUSU में जिसका दबदबा, अगले साल केंद्र में उसी की होती है सत्ता

DUSU चुनाव और लोकसभा का है सीधा कनेक्शन, जानिए ऐसा क्यों

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन के चुनाव में इस साल बीजेपी की स्टूडेंट विंग ABVP का दबदबा रहा. ABVP के अंकिव बसोया ने प्रेसिडेंट पद जीता, शक्ति सिंह ने वाइस प्रेसिडेंट पद और ज्योति चौधरी ने ज्वाइंट सेक्रेटरी पद पर कब्जा जमाया, वहीं NSUI के खाते में सिर्फ एक सीट आई और आकाश चौधरी सेक्रेटरी बने हैं.

DUSU चुनाव को जीतने के लिए कांग्रेस और बीजेपी ने पूरी ताकत लगा दी थी. आखिर ये दोनों बड़ी पार्टियां इस चुनाव को जीतने के लिए इतनी मेहनत क्यों करती है? 20 सालों से ऐसा हो रहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले जिस पार्टी ने स्टूडेंट यूनियन में कब्जा किया अगले साल उसी पार्टी की केंद्र में सरकार बन गई.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
DUSU का चुनाव कहने को यूनिवर्सिटी का चुनाव है, पर देश की राजनीति में आने वाले तूफान का संकेत दे देती है. ये सिलसिला 1998 से चला आ रहा है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

2013 में DU ने दिया था संकेत, 2014 में BJP सरकार

साल 2013 के DUSU चुनाव में बीजेपी की स्टूडेंट विंग एबीवीपी ने तीनों प्रमुख सीटों पर कब्जा जमाया. प्रेसिडेंट अमन अवाना, वाइस प्रेसिडेंट बने उत्कर्ष चौधरी और राजू रावत बने ज्वाइंट सेक्रेटरी.

इस साल कांग्रेस की स्टूडेंट विंग एनएसयूआई के खाते में केवल सेक्रेटरी का पद गया और अगले साल हुए लोकसभा चुनाव में मनमोहन सरकार चली गई.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
DUSU चुनाव और लोकसभा का है सीधा कनेक्शन, जानिए ऐसा क्यों
2013 में DUSU में एबीवीपी ने कब्जा किया, 2014 में मोदी सरकार केंद्र में काबिज
(फोटो : PTI) 
ADVERTISEMENTREMOVE AD

2008: DUSU में NSUI का दबदबा, 2009 में मनमोहन सरकार

इससे पहले 2009 के लोकसभा चुनाव के लिए भी दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन के चुनावों ने लोकसभा चुनाव के लिए भविष्यवाणी का काम किया था.

सितंबर 2008 में DUSU चुनाव में कांग्रेस की स्टूडेंट विंग नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) का दबदबा रहा. वाइस प्रेसिडेंट, सेक्रेटरी और ज्वाइंट सेक्रेटरी के पोस्ट पर एनएसयूआई ने जीत का परचम लहराया. प्रेसिडेंट का पोस्ट ABVP के खाते में गया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
DUSU चुनाव और लोकसभा का है सीधा कनेक्शन, जानिए ऐसा क्यों
2004 और 2009 में पीएम मनमोहन सिंह के नेतृत्व में बनी कांग्रेस की सरकार
(फोटोः PTI)
ADVERTISEMENTREMOVE AD

2003 में NSUI का क्लीन स्वीप, 2004 में दिखा असर

2003 में केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार थी. लेकिन DUSU में हुए चुनाव में कांग्रेस की NSUI ने क्लीन स्वीप किया. दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन की चारों सीटों पर एनएसयूआई ने कब्जा किया. और पिछले कई सालों से केंद्र में सरकार बनाने की चाहत देख रही कांग्रेस को ये संकेत दे दिया कि वोटर का रुख 'हाथ' के साथ है.

2004 में अति आत्मविश्वास से भरी वाजपेयी सरकार ‘शाइनिंग इंडिया’ के नारे के साथ समय से पहले चुनावी मैदान में उतरी. लेकिन इस चुनाव में बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी और केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार बनी.
ADVERTISEMENTREMOVE AD
DUSU चुनाव और लोकसभा का है सीधा कनेक्शन, जानिए ऐसा क्यों
(इंफोग्राफः रोहित मौर्य/क्विंट हिंदी)
ADVERTISEMENTREMOVE AD

1998 और 1999 लोकसभा चुनाव से पहले DU में ABVP का दबदबा

DUSU चुनाव और लोकसभा चुनाव के बीच ये रिश्ता 1997 से लगातार चल रहा है.

1997 में दिल्ली यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स ने बीजेपी की एबीवीपी पर जबरदस्त भरोसा दिखाया. और एबीवीपी ने क्लीन स्वीप करते हुए चारों सीटों पर कब्जा जमाया. इसका असर 1998 के लोकसभा चुनाव में दिखा और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बीजेपी केंद्र में सरकार बनाने में कामयाब रही.
ADVERTISEMENTREMOVE AD
DUSU चुनाव और लोकसभा का है सीधा कनेक्शन, जानिए ऐसा क्यों
ADVERTISEMENTREMOVE AD

हालांकि अगले ही साल 1999 में वाजपेयी को फिर चुनाव का सामना करना पड़ा. लेकिन इससे पहले 1998 में हुए डूसू चुनाव में प्रेसीडेंट और जनरल सेक्रेटरी जैसे अहम पदों पर कब्जा जमाने में एबीवीपी सफल रही. साथ ही बीजेपी ने भी दोबारा केंद्र में वापसी की.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

क्या 2019 में बनेगी BJP की सरकार?

2014 की मोदी लहर का असर DUSU रिजल्ट में भी दिखा. 2014 और 2015 में एबीवीपी ने चारों सीटों पर जीत दर्ज की, वहीं 2016 में ABVP ने तीन सीटों पर कब्जा जमाया. सिर्फ ज्वाइंट सेक्रेटरी का पोस्ट NSUI के खाते में गया.

पिछले साल यानी 2017 में हुए DUSU चुनाव में दोनों के बीच हिसाब बराबर का रहा. प्रेसिडेंट और वाइस प्रेसिडेंट पर कब्जा जमाने में NSUI कामयाब रही, वहीं जनरल सेक्रेटरी और ज्वाइंट सेक्रेटरी एबीवीपी के खाते में गया.

अब इस साल का रिजल्ट ABVP यानी बीजेपी के फेवर में आया है. एबीवीपी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए चार में से तीन प्रमुख सीटों पर कब्जा जमा लिया. पिछले सालों के ट्रेंड को देखें तो निश्चित रूप से यह बीजेपी के लिए अच्छे संकेत हैं. लेकिन देश की जनता वाकई में क्या चाहती है ये तो 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद ही पता चलेगा.

पिछले 6 सालों में NSUI का सबसे ज्यादा वोट शेयर

इस साल के चुनाव में प्रेसिडेंट पद के लिए एबीवीपी और एनएसयूआई के बीच कड़ी टक्कर देखी गई. एबीवीपी के अंकिव बसोया और एनएसयूआई के छन्नी छिल्लर के बीच केवल 1744 वोट का मार्जिन रहा.

प्रेसिडेंट पद के लिए एनएसयूआई का वोट शेयर इस बार पिछले 6 सालों में सबसे ज्यादा रहा. 2013 में NSUI को 26.6 फीसदी वोट मिले थे, जो 2018 में बढ़कर 32.2 प्रतिशत तक पहुंच गया है.

वहीं ABVP के वोट शेयर में पिछले 6 सालों में महज 0.2 फीसदी का इजाफा हुआ है. 2013 में 35 फीसदी वोट शेयर के मुकाबले 2018 में एबीवीपी का वोट शेयर 35.2 प्रतिशत पर पहुंचा.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×