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आर्थिक विकास में झारखंड से पीछे बिहार, नीतीश के सामने बड़ी चुनौती

आर्थिक विकास के मामले में झारखंड और छत्तीसगढ़ से भी पीछे है बिहार, नीतीश के सामने है कई बड़ी चुनौतियां.

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नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में लगातार तीसरा कार्यकाल शुरू करने वाले हैं.

हालांकि अपने पूर्व राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू यादव और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव जीतना उनके लिए खास मुश्किल साबित नहीं हुआ, लेकिन उनकी अगली चुनौती बिहार में एक स्थायी सरकार देना और राज्य के आर्थिक विकास को तेज रफ्तार देना है.

साफ शब्दों में कहें तो उन्हें विकास की रणनीति जारी रखनी होगी और राज्य के युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने होंगे.

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अब भी छोटी है बिहार की अर्थव्यवस्था

बिहार को लोगों के हित को ध्यान में रखते हुए चीन की तेजी से (जैसी कि हाल तक रही है) आगे बढ़ने की जरूरत है. बिहार की प्रति व्यक्ति आय सबसे कम है और इसकी अर्थव्यवस्था अभी भी बहुत छोटी है.

इस संदर्भ में बात की जाए तो एक ऐसे राज्य के लिए, जिसकी 40 प्रतिशत जनता अभी भी गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करती है, पिछले 10 सालों की 9.3% की कंपाउंडेड एवरेज ग्रोथ रेट (सीएजीआर) काफी कम कही जाएगी.

सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (एमओएसपीआई) के आंकड़े बताते हैं कि 2014-15 में राज्य की अर्थव्यवस्था देश में 14वें नंबर पर थी, जोकि 2004-05 के 15वें स्थान से सिर्फ एक पायदान उपर है जब नीतीश पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने थे.

2014-15 में राज्य की अर्थव्यवस्था के कुल 1,89,789 करोड़ रुपये का होने का अनुमान लगाया गया था. वहीं महाराष्ट्र, जहां रोजगार की तलाश में बिहार से काफी लोग पलायन करते हैं, की अर्थव्यवस्था 9,47,550 करोड़ रुपये के साथ बिहार से लगभग पांच गुना बड़ी है.

एक बड़ा विभाजन

बिहार की प्रति व्यक्ति आय दिल्ली की प्रति व्यक्ति आय का एक छोटा-सा हिस्सा है. बिहार में प्रति व्यक्ति आय जहां 36,143 रुपये है, वहीं दिल्ली में यह 2,40,849 रुपये है. उत्तर प्रदेश, जो कि बिहार का पड़ोसी राज्य है, की प्रति व्यक्ति आय 40,373 रुपये है.

रंगराजन कमिटी के साल 2011-12 के लिए प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय के आंकड़ों पर आधारित एक अनुमान के मुताबिक, बिहार की जनसंख्या के 40% से भी ज्यादा, यानी लगभग 4 करोड़ 40 लाख व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे निवास करते हैं.

पिछले दशक में बिहार के विकास में निर्माण और टेलिकम्युनिकेशन इंडस्ट्री का बहुत बड़ा हाथ था. लेकिन बिहार को तेज आर्थिक विकास की ओर ले जाने के साथ-साथ यहां के लोगों के लिए रोजगार पैदा करने की खातिर अभी और निवेश की जरूरत पड़ेगी.

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बिहार सबसे कम उद्योग वाले राज्यों में

नीतीश के 10 वर्ष के शासन में राज्य की कानून व्यवस्था बेहतर हुई है, लेकिन अभी राज्य में और भी ज्यादा निवेश आकर्षित करने की जरूरत है. वर्ल्ड बैंक ऐंड डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी ऐंड प्रमोशन रिपोर्ट में राज्य के बिजनस सुधार कार्यान्वयन के मूल्यांकन में इसे 21वां स्थान दिया गया है, जो बिहार को आर्थिक निवेश के लिए कम आकर्षक राज्य बनाता है.

यदि बिहार की तुलना झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे अन्य गरीब और पिछड़े राज्यों से की जाए, तो ये राज्य इस लिस्ट में क्रमश: तीसरे और चौथे स्थान पर आते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि इन राज्यों ने अपनी स्थिति में सुधार के लिए कई नीतियां बनाई हैं. फिलहाल बिहार ऐसे राज्यों में शामिल है जहां सबसे कम औद्योगीकरण हुआ है.

एमओएसपीआई द्वारा प्रकाशित वार्षिक औद्योगिक सर्वेक्षण के मुताबिक 2012-13 में राज्य में सिर्फ 3,345 फैक्ट्रियां रजिस्टर्ड थीं, जिनमें 1,00,512 लोगों को रोजगार मिला हुआ था.

इसकी तुलना में तमिल नाडु में 36,869 रजिस्टर्ड कंपनियों में 16,02,447 लोग कार्यरत थे. यानी कि तमिल नाडु में बिहार की तुलना में 11 गुना ज्यादा कंपनियों में लगभग 16 गुना ज्यादा लोग काम करते थे.

बिहार में दो नई लोकोमोटिव फैक्ट्रियों जीई और ऐल्सटॉम ने कुल मिलाकर 5.6 अरब डॉलर का निवेश किया है. उम्मीद है कि इससे बिहार के औद्योगिक विकास में एक नए युग की शुरुआत होगी. जाहिर है कि इन दो लोकोमोटिव प्लांट्स की जरूरतों को पूरा करने के लिए सहायक कंपनियां भी आएंगी.

नीतीश और उनकी सरकार बिहार में एक ऐसा वातावरण बना सकते हैं जहां निवेशकों को लगे कि यह राज्य देश के पश्चिमी भाग के उपभोक्ताओं के लिए एक गेटवे के तौर पर कार्य करेगा और पर्याप्त मजदूरों की वजह से राज्य में उद्योग चलाना काफी सस्ता होगा. इसके अलावा उन्हें लालफीताशाही पर भी लगाम कसनी होगी.

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राज्य से पलायन पर लगाम

बिहार एक कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है, जिसका काफी हिस्सा कम उत्पादकता वाले क्षेत्र खेती से आता है. अपने यहां की जलवायु, उपजाऊ जमीन और पानी की पर्याप्त उपलब्धता को देखते हुए बिहार को खेती की अनदेखी नहीं करनी चाहिए.

नीतीश कुमार की प्रस्तावित इंद्रधनुषीय क्रांति, जो कि हरित क्रांति के जैसी ही है, को यदि सही से लागू किया जाए तो बिहार में कृषि की तस्वीर बदल सकती है. यह योजना यदि सफल होती है तो न सिर्फ ग्रामीण इलाकों की आय में वृद्धि होगी, बल्कि राज्य से बड़ी मात्रा में हो रहे लोगों के पलायन पर भी लगाम कसी जा सकेगी.

लेकिन बिहार से पलायन रुकना मुश्किल ही है, और सरकार भी इसे रोकना नहीं चाहेगी. बिहार में युवाओं की एक बड़ी तादाद है जो कि न सिर्फ पंजाब और हरियाणा जैसे उत्तर भारतीय राज्यों में बड़ी मात्रा में काम कर रहे हैं बल्कि केरला जैसे काफी दूर स्थित राज्यों में भी रोजगार में लगे हुए हैं.

बिहार अपने राज्य के लड़के और लड़कियों दोनों की शिक्षा और उनके स्किल डिवेलपमेंट पर पर्याप्त ध्यान देकर फायदे की स्थिति में आ सकता है. नीतीश और उनकी सहयोगी पार्टियों को बिहार में इस बड़ी जीत को राज्य की दशा और दिशा बदलने के एक मौके के रूप में लेना चाहिए. जिन लोगों ने उन्हें वोट दिया है, उनके प्रति नीतीश की इतनी जिम्मेदारी तो बनती ही है.

(लेखिका दिल्ली की वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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