कुछ तो मजबूरियां रही होंगी।
वरना, यूं ही कोई बेवफा नहीं होता।।
महाराष्ट्र की सियासत पर बशीर बद्र साहब का ये शेर बहुत ही सटीक बैठता है. एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने के लिए उद्धव ठाकरे भी तैयार थे. लेकिन, सवाल ये उठता है कि आखिर एकनाथ शिंदे की ऐसी क्या मजबूरी थी कि वो बीजेपी के साथ गए?
वजह नंबर 1
दरअसल, एकनाथ शिंदे ने बीजेपी वाली सरकार का मुख्यमंत्री पद इसलिए स्वीकार किया, क्योंकि यहां उनकी बगावत सम्मान के रूप में देखी जाएगी. जबकि, वो शिवसेना में दोबारा वापस लौटते तो उन्हें मौका परस्त के रूप में देखा जाता, जो उन्हें बिलकुल नागवार गुजरता.
वजह नंबर 2
दूसरा कारण ये है कि अगर एकनाथ शिंदे, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना के साथ दोबारा जाते तो वो उसी कांग्रेस-एनसीपी के साथ सरकार चलाते, जिसका उन्होंने हिंदुत्व के मुद्दे पर विरोध किया था.
वजह नंबर 3
तीसरा कारण ये है कि अगर शिंदे बगावत के बाद महा विकास अघाड़ी का नेतृत्व करते तो उन पर भी केंद्रीय एजेंसियों की ओर से शिकंजा कसने का डर था. क्योंकि, जब से महाराष्ट्र में MVA सरकार अस्तित्व में आई है, तभी से केंद्रीय एजेंसियों की नजर महाराष्ट्र कैबिनेट में शामिल मंत्रियों पर सबसे ज्यादा रही है. चाहें, महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख हों या उद्धव सरकार कैबिनेट में शामिल नवाब मलिक हों, दोनों पर केंद्रीय एजेंसियों की निगाहें गड़ी हुई हैं. इसके अलावा उद्धव ठाकरे के सिपहसलार संजय राउत पर भी ED की नजर है.
वजह नंबर 4
चौथा कारण ये है कि अगर एकनाथ शिंदे MVA सरकार के सहयोग से सत्ता में आते तो केंद्र से टकराव की स्थिति हमेशा बनी रही थी, जो उद्धव सरकार के साथ नजर आ रही थी. हो सकता है कि वो कुछ ज्यादा हो जाए. ऐसे में शिंदे वो नहीं कर पाते जो बीजेपी के साथ मिलकर करते.
बहरहाल, शिवसेना के बागी एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के नए सीएम होंगे. बीजेपी ने एकनाथ शिंदे का नेतृत्व स्वीकार कर लिया है. शिंदे ने भी मुख्यमंत्री पद देने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का शुक्रिया अदा किया है.
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