"हम उस राजनीतिक दल को वोट देंगे जो हमारी फसल बेचने की लागत बढ़ाएगा."
“इस लोकतंत्र में, कोई प्रतिनिधि नहीं है, जो सरकार से सवाल करे और किसानों के मुद्दों को उठाए. फिर किसान किसे वोट दे?”
“हमने पिछले दस वर्षों में बीजेपी सरकार और पीएम मोदी का काम देखा है. अब हम I.N.D.I.A गठबंधन को मौका दे सकते हैं.”
लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) का पहला चरण नजदीक आते ही किसानों के एक वर्ग की यही भावना है.
इस साल की शुरुआत में, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के किसान सड़कों पर उतर आए थे, और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर कानूनी गारंटी की मांग को फिर से हवा दी थी, जो कि स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, इनपुट लागत के 1.5 गुना के बराबर है.
दिल्ली में नवंबर 2020 में शुरू हुए साल भर चलने वाले किसान आंदोलन के समान, इस साल के विरोध प्रदर्शन में भी पुलिस द्वारा आंसू गैस के गोले और पेलेट गन का इस्तेमाल करते हुए आक्रामक प्रतिक्रिया देखी गई, और यहां तक कि दिल्ली-हरियाणा सीमा पर 21 वर्षीय शुभकरण सिंह की जान भी चली गई.
सत्तारूढ़ बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार के साथ चार दौर की बातचीत के बावजूद गतिरोध बना रहा. कांग्रेस ने आगामी आम चुनाव के लिए अपने घोषणापत्र में स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुसार, एमएसपी पर कानूनी गारंटी देने का वादा किया. विपक्षी दल ने फसल बीमा को किसान-विशिष्ट बनाने और 30 दिनों के भीतर दावों का निपटारा करने का भी वादा किया.
इस बीच, बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में कहा कि पार्टी ने "एमएसपी कई गुना बढ़ा दिया है" और किसानों और उनके परिवारों को "समर्थन" और "सशक्त" करने के लिए प्रतिबद्ध है.
क्विंट हिंदी ने राजस्थान के बीकानेर के गांवों की यात्रा की, जहां किसानों ने "फसल की सबसे महंगी खेती" करने का दावा किया था.
हमने यह समझने की कोशिश की उत्तर भारत में किसान क्यों अपनी फसल के लिए एमएसपी में बढ़ोतरी की मांग क्यों कर रहे हैं, और क्या इससे उनके वोटिंग करने के फैसले पर असर पड़ेगा.
'जीविका के लिए MSP बढ़ाने की जरूरत'
बीकानेर जिले की श्री डूंगरगढ़ तहसील के किसान 24 वर्षीय मुकेश ज्याणी ने कहा, "रेगिस्तान में खेती करना देश की सबसे महंगी खेती है और यह इस क्षेत्र में होती है."
उन्होंने बताया कि राजस्थान के इस हिस्से में पानी की भारी कमी के कारण, भूजल का उपयोग खेतों की सिंचाई के लिए किया जाता है, जहां वह रबी मौसम के दौरान गेहूं और खरीफ मौसम के दौरान मूंगफली उगाते हैं.
ज्याणी ने दावा किया कि मोटर पंप, केबल, पाइप बिछाने और स्प्रिंकलर सहित ट्यूबवेल लगाने में किसान को 10 से 15 लाख रुपये का खर्च आता है. क्षेत्र की गर्म और शुष्क जलवायु न केवल खेती को अधिक चुनौतीपूर्ण बनाती है बल्कि फसल के उत्पादन को भी प्रभावित करती है.
"बीकानेर में गेहूं की फसल बहुत अच्छी है. गेहूं की फसल पकने से पहले ही शुष्क जलवायु के कारण पतली हो जाती है. यही कारण है कि पंजाब और हरियाणा में प्रति बीघे भूमि का औसत उत्पादन 15 क्विंटल है, जबकि राजस्थान में यह 6-8 क्विंटल है - लगभग आधा."मुकेश ज्याणी
पड़ोसी गांव सतलाना में 53 वर्षीय गिरधारी लाल जाखड़ ने क्विंट हिंदी को बताया कि एक बीघा जमीन में गेहूं की फसल उगाने के लिए क्या-क्या करना पड़ता है.
एक बीघे जमीन से 6-7 क्विंटल गेहूं का उत्पादन होता है. इसके लिए यहां 50 किलो बीज बोए जाएंगे, डीएपी (डाइ-अमोनियम फॉस्फेट) समेत कीटनाशक और उर्वरकों का इस्तेमाल किया जाएगा. इसमें बुआई, पानी, ट्यूबवेल मोटर के रखरखाव और मरम्मत के साथ-साथ मजदूरी की लागत भी जोड़ लें. फिर थ्रेसिंग और कटाई होती है.गिरधारी लाल जाखड़
जाखड़ ने एमएसपी की अपनी मांग दोहराई, जो इनपुट लागत के 1.5 गुना के बराबर है, और कहा कि यह "किसान के लिए जीवित रहने का एकमात्र तरीका है".
एमएस स्वामीनाथन समिति की रिपोर्ट में 50 प्रतिशत लाभ मार्जिन देने के लिए एमएसपी को किसानों द्वारा वहन की जाने वाली इनपुट लागत का 1.5 गुना करने की सिफारिश की गई है. इनपुट लागत में भूमि का किराया, बीज, उर्वरक की कीमत, बिजली और किराए के श्रम की लागत शामिल है.
"सरकार ने जिन फसलों पर वादा किया, उसपर भी MSP नहीं मिल रहा"
ज्याणी और जाखड़ दोनों ने क्विंट हिंदी से बातचीत में आरोप लगाया कि वे अपनी गेहूं की फसल एमएसपी पर नहीं बेच पा रहे हैं, जबकि केंद्र सरकार ने 22 फसलों पर इसे अनिवार्य कर दिया है.
मुकेश ज्याणी ने दावा किया “एमएसपी केवल नंबर में मौजूद है. गेहूं, जौ, चना, सरसों और मूंगफली के लिए एमएसपी रेट है, लेकिन सरकार नहीं दे रही है. उदाहरण के लिए, अभी सरसों का एमएसपी 5,600 रुपए है, लेकिन किसान को इसे निजी तौर पर (विक्रेताओं) 4,500 रुपये में बेचना पड़ रहा है क्योंकि सरकार वादे के मुताबिक एमएसपी पर खरीद नहीं कर रही है. परिणामस्वरूप, किसान को प्रति क्विंटल 1,000 से 1,200 रुपये का नुकसान हो रहा है.”
उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ किसान जो एमएसपी पर अपनी फसल बेच सकते थे, उनके लिए सरकार ने 25 क्विंटल की सीमा लगा दी. इस बीच, जाखड़ ने शिकायत की कि मसालों और सब्जियों जैसी अन्य फसलों को भी एमएसपी के दायरे में लाया जाना चाहिए.
हरियाणा की एक प्रवासी श्रमिक गीता गोदारा जमींदार के खेतों में काम करती है और आय के अतिरिक्त स्रोत के रूप में पशुपालन से जुड़ी हैं. वे कहती हैं...
"दूध की कीमत पानी की कीमत के समान है. दूध बेचकर मैं इतना भी नहीं कमा पाती कि अपने पशुओं के लिए चारा खरीद सकूं. मुझे अपनी जेब से खर्च करना पड़ रहा है. मैं कब तक ऐसे टिक सकती हूं?"गीता गोदारा
43 वर्षीय महिला ने क्विंट हिंदी को बताया कि वह अपने घर और परिवार की देखभाल करने के अलावा, हर दिन सुबह 4 बजे से रात 10 बजे तक काम करती है. इस वजह से उन्होंने आराम करने का समय नहीं मिलने की भी शिकायत की.
'पीएम फसल बीमा योजना के तहत दावों के अनुसार एक भी रुपए नहीं मिला'
ज्याणी ने बताया कि बीकानेर में पश्चिमी विक्षोभ के कारण अक्सर बेमौसम बारिश और तूफान आते रहते हैं, जिससे उनकी फसलें खराब हो जाती हैं. लेकिन, उन्होंने आरोप लगाया, यहां के किसानों को शायद ही कभी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के तहत दायर क्लेम मिल पाता है.
ज्याणी ने क्विंट हिंदी को बताया कि बीमा का प्रीमियम किसान क्रेडिट कार्ड से हर साल दो बार निकाला जाता है, लेकिन दावा किया कि आठ साल से नियमित रूप से प्रीमियम का भुगतान करने के बावजूद उन्हें "आज तक एक भी रुपया नहीं मिला". उन्होंने आरोप लगाया:
"चुनाव से पहले, कुछ किसानों को 34,000 रुपए के क्लेम मिले, कुछ को 22,000 रुपए मिले, जो एक मामूली राशि है. यह ऊंट के मुंह में जीरे के समान है. 10 लाख रुपए या 15 लाख रुपए की फसल नष्ट हो जाती है और हमें 22,000 रुपये या 34,000 रुपये का क्लेम मिलता है. सरकार किसान को अपमानित करने का प्रयास कर रही है, उसे शर्म आनी चाहिए."मुकेश ज्याणी
पीएम-किसान या प्रधान मंत्री किसान सम्मान निधि योजना के बारे में पूछे जाने पर, जिसमें हर साल तीन किश्तों में 6,000 रुपये सीधे किसानों के खातों में ट्रांसफर किए जाते हैं, जाखड़ ने कहा, "इसका कोई मतलब नहीं है.
उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा:
आप 6,000 रुपए में क्या कर सकते हैं, आप कितना बोएंगे और कितना काटेंगे? यदि मोटर खराब हो जाए, तो अकेले मरम्मत में इस राशि का 18 गुना खर्च होता है.गिरधारी लाल जाखड़
इसके अलावा, ज्याणी ने उच्च बिजली दरों और बार-बार बिजली कटौती की शिकायत की, जिससे क्षेत्र के किसानों पर अतिरिक्त वित्तीय दबाव पड़ रहा है.
'BJP, मोदी के 10 साल देखे हैं, अब विपक्ष को मौका देंगे'
यह पूछे जाने पर कि क्या ये परेशानियां आगामी लोकसभा चुनावों में उनके मतदान निर्णय को प्रभावित करेंगी, ज्याणी ने अफसोस जताया कि किसानों के पास कोई प्रतिनिधि नहीं है "जो किसान की ओर से सरकार से सवाल करे."
गोदारा ने भी सरकार पर किसानों के हित से ध्यान हटाने का आरोप लगाया और कहा कि वह उन्हें वोट देंगी जो "हमारी उपज की कीमतें बढ़ाएंगी."
इस बीच, जाखड़ ने कहा कि उन्होंने केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व वाली और पीएम मोदी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा किए गए काम को देखा है और वह विपक्षी I.N.D.I.A गठबंधन को मौका देने के लिए तैयार हैं.
“मोदीजी ने पिछला चुनाव विदेशों से काला धन लाने, किसानों के खातों में सीधे 15 लाख रुपये ट्रांसफर करने, 2 करोड़ युवाओं को रोजगार देने जैसे वादों पर जीता था. लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया. इसलिए इस बार हम उन्हें (I.N.D.I.A गठबंधन) मौका दे सकते हैं. हम देखेंगे कि वे क्या काम करेंगे.”
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