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यूपी में ‘समाजवादी’ घर से राष्ट्रवादी नेता निकालने की सियासत

यूपी में एक खानदानी ‘समाजवादी’, ‘राष्ट्रवादियों’ के खेमे में चला गया. इसे देखकर समाजवादी भी हक्के-बक्के रह गए

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यूपी में एक खानदानी 'समाजवादी', 'राष्ट्रवादियों' के खेमे में चला गया. इसे देखकर समाजवादी भी हक्के-बक्के रह गए. बात हो रही है पूर्व प्रधानमंत्री और समाजवादी नेता चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर की. जो 16 जुलाई को समाजवादी पार्टी का दामन छोड़कर बीजेपी के खेमे में चले आए. इस्तीफा तो आज हुआ है लेकिन इसकी स्क्रिप्ट बहुत पहले ही लिखी जा चुकी थी. समय-समय में इस स्क्रिप्ट में सुधार भी हुआ.

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दरअसल, 2019 के लोकसभा चुनाव में नीरज शेखर अपनी परंपरागत सीट बलिया से चुनाव लड़ना चाहते थे. लेकिन अखिलेश यादव ने उनकी जगह ये सीट पूर्व विधायक सनातन पांडेय को थमा दी. अब जाहिर सी बात है नाराजगी तो थी ही. रही सही कसर बीजेपी ने अपनी कोशिशों से पूरी कर दी. ऐसी ही कोशिशों के कुछ उदाहरण हाल-फिलहाल में देखे गए. जैसे, समाजवादी विचारधारा के सबसे बड़े नेताओं में से एक पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की पुण्यतिथि पर अभी हाल ही में ‘चंद्रशेखर एवं राष्ट्रवाद’ विषय की गोष्ठी तक का आयोजन हुआ.

आयोजन में मुख्य अतिथि रहे सीएम योगी आदित्यनाथ. इस मौके पर आदित्यनाथ ने चंद्रशेखर की जमकर तारीफ की. उन्होंने कहा कि राष्ट्रवाद और चंद्रशेखर एक दूसरे के पूरक थे. सीएम ने ये भी कहा कि चंद्रशेखर समाजवाद की आखिरी कड़ी थे. मौजूदा दौर में बाजार में समाजवाद के नाम पर बहुत से ब्रांड मौजूद हैं, जो समाजवाद की आड़ में परिवारवाद को बढ़ावा दे रहे हैं. साफ है कि योगी का इशारा समाजवादी पार्टी पर था.

इतना ही ऐसी भी खबरें आईं कि राज्यसभा के सभापति हरिवंश की किताब ‘चंद्रशेखर- द लास्ट आइकन ऑफ आइडियोलॉजकल पॉलिटिक्स’ का विमोचन जल्द ही पीएम मोदी कर सकते हैं. अभी विमोचन का दिन भी नहीं आया था, इससे पहले चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर बीजेपी में आ गए.

अब नीरज शेखर के इस्तीफे के बाद राज्यसभा में नए सिरे से चुनाव होगा. यूपी विधानसभा में बीजेपी की 312 सीटें हैं, साफ है कि वो इस सीट पर आसानी से राज्यसभा चुनाव जीत जाएगी और ऊपरी सदन में वो और मजबूत स्थिति में होगी.

समाजवादी पार्टी से गहरे थे रिश्ते

बीजेपी में जा चुके नीरज शेखर को बीजेपी के खिलाफही मुखर नेताओं में से एक माना जाता था. उनके पिता चंद्रशेखर के खिलाफ समाजवादी पार्टी ने कभी उम्मीदवार खड़ा नहीं किया. चंद्रशेखर के निधन के बाद बलिया से नीरज शेखर पहली बार संसद पहुंचे थे. इस बीच उन्होंने अपने पिता की पार्टी का विलय समाजवादी पार्टी में करा दिया था. 2009 में नीरज शेखर ने दोबारा लोकसभा चुनाव जीता. लेकिन 2014 की मोदी लहर में उन्हें अपने ही गढ़ में हार का सामना करना पड़ा था.

इसके बावजूद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उन्हें राज्यसभा के रास्ते संसद पहुंचाया था. अब नीरज शेखर अपनी पुरानी सियासी यादों को छोड़कर बीजेपी पहुंच गए हैं. जाहिर है राज्यसभा भी जाएंगे, लेकिन इस बार कमल के साथ.

राज्यसभा के लिए कमर कस रही बीजेपी

जहां तक रही कमल यानी बीजेपी की बात तो राज्यसभा में खुद को मजबूत करने के लिए पार्टी कोई भी कसर नहीं छोड़ रही है. राज्यसभा में बीजेपी के पास इस वक्त कुल 78 सांसद हैं. नीरज शेखर के इस्तीफे के बाद सदन का स्ट्रेंथ 240 का हो जाएगा. बहुमत के लिए 121 सीटों की जरूरत होगी. बीजेपी की सहयोगी पार्टियों में AIDMK के पास कुल 13 सांसद हैं, वहीं जेडीयू के 6, शिवसेना और अकाली दल के 3-3 सांसद हैं. बीजेपी के अन्य पांच सहयोगियों के 1-1 सांसद हैं. यानी NDA की कुल स्ट्रेंथ 108 है. बीजेपी को 4 निर्दलीय और 3 नॉमिनेटेड सांसदों का भी समर्थन हासिल है.

इसी के साथ बीजेपी लगातार उच्च सदन में अपनी मजबूती बढ़ाने में जुटी हुई है ही, नीरज शेखर इसका बड़ा और ताजा उदाहरण हैं.

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