ADVERTISEMENTREMOVE AD

लालू यादव इन चार वजहों से न करें अपने बेटों को प्रमोट

चार वजहें जिनकी वजह से लालू यादव को अपने दोनों बेटों को प्रमोट करने से बचना चाहिए. जानिए क्या हैं ये चार कारण

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

बिहार के विधानसभा चुनाव में शानदार जीत के बाद अब सबकी नजरें इस बात पर टिकी हुईं हैं कि लालू यादव राजद के विधायक दल का नेता किसे चुनेंगे.

क्या लालू अपने दोनों बेटों तेज प्रताप और तेजस्वी यादव में से किसी एक को चुनेंगे या अपने पुराने साथी और पार्टी के सबसे प्रमुख मुस्लिम चेहरे अब्दुल बारी सिद्दीकी को तरजीह देंगे?

ADVERTISEMENTREMOVE AD

राजद के विधायक दल की पहली मीटिंग में 80 नवनिर्वाचित विधायकों ने लालू के दोनों बेटों में से किसी का भी नाम आगे नहीं बढ़ाया. उन्होंने राजद के विधायक दल के नेता को चुनने का फैसला लालू यादव पर छोड़ दिया है.

भले ही लालू यह बात सार्वजनिक रूप से स्वीकार न करें, लेकिन वह इस बात को लेकर दुविधा में लग रहे हैं कि नेता के रूप में किसी विश्वसनीय मुस्लिम चेहरे को चुनें या फिर अपने ही यादव समुदाय के किसी युवा को. और जब यदि यादव को ही चुनना पड़े तो फिर वह अपने बेटे को क्यों न चुनें?

मुस्लिम और यादव फैक्टर

लालू जैसे अनुभवी राजनीतिज्ञ को किसी भी नतीजे पर पहुंचने से पहले इस हकीकत को ध्यान में रखना होगा कि उनके 80 विधायकों में से 42 यादव हैं और 12 मुसलमान. ये दोनों ही समुदाय (मुस्लिम और यादव) 1990 से लेकर 2005 तक लालू का बराबर साथ देते रहे थे और कोई भी उन्हें डिगा नहीं पाया था.

साल 2015 के विधानसभा चुनाव में इन दोनों समुदायों के समर्थन ने ही राजद को बिहार की 243-सदस्यीय विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरकर आने में मदद की है. इसलिए लालू के लिए यह समय व्यावहारिकता दिखाने का है और उन्हें राजद के विधायक दल के नेता के रूप में अपने बेटों तेजस्वी या तेज प्रताप में से किसी एक का नाम आगे बढ़ाने से परहेज करना चाहिए. उन्हें दोनों में से किसी को भी उप मुख्यमंत्री बनाने के लिए पैरवी भी नहीं करनी चाहिए.

ऐसा करने से लालू का राजनीतिक कद तो बढ़ेगा ही और साथ ही ये संदेश भी जाएगा कि वह सिर्फ अपने परिवार के बारे में नहीं सोचते हैं. इस बात को अभी तक कोई नहीं भूल पाया है कि चारा घोटाला मामले में जेल जाने से पहले कैसे उन्होंने 1997 में अपनी पत्नी राबड़ी देवी को रसोईघर से खींचकर सीधे बिहार का मुख्यमंत्री बना दिया था.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

घर में भी नहीं होगा असंतोष

यदि लालू अपने बेटे को अपनी पार्टी के विधायक दल का नेता नहीं बनाते हैं तो वह आंतरिक असंतोष से भी बच सकते हैं. एक बेटे का नाम आगे बढ़ाने की वजह से उनके दो अन्य उत्तराधिकारी दूसरा बेटा और बेटी मीसा भारती नाराज हो सकते हैं. लालू यादव की बेटी मीसा भारती की राजनीतिक सूझबूझ दोनों बेटों से कहीं बेहतर मानी जाती है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

यह समय है संतुष्ट होने का

बीजेपी के प्रमुख विपक्षी दल बनने से पहले नीतीश के मुख्यमंत्रित्व काल में अब्दुल बारी सिद्दीकी बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता थे. यदि, लालू सिद्दीकी को अपनी पार्टी के विधायक दल का नेता चुनते हैं तो ये एक तरह से राज्य के उन 16.5% मुस्लिम मतदाताओं के प्रति अपना आभार व्यक्त करने जैसा होगा जिन्होंने इन विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी का साथ दिया है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

नीतीश के लिए आसान होगा सरकार चलाना

अब्दुल बारी सिद्दीकी के साथ नीतीश के संबंध हमेशा से अच्छे रहे हैं. इसलिए, लालू यदि इस सीनियर मुस्लिम नेता को राजद के विधायक दल का नेता चुनते हैं तो नीतीश के लिए काम करना आसान होगा.

इस तरह परिवारवाद के खिलाफ रहे नीतीश के ऊपर ये आरोप भी नहीं लगेगा कि वह बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में अपनी नई पारी शुरू करते ही भाई-भतीजावाद को समर्थन दे रहे हैं. तब तक लालू के दोनों बेटे जोकि पहली बार ही विधायक बने हैं, विधानसभा में समय बिता सकते हैं और अपनी अगली छलांग के लिए खुद को तैयार कर सकते हैं.

(लेखिका बिहार में पत्रकार हैं)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×