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गायत्री प्रजापति का सफर: ‘रंक से राजा’ बनने की कहानी

2012 तक बीपीएल यानि गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले गायत्री प्रजापति का राजनीतिक सफर किसी दैवीय करिश्मे से कम नहीं है

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जमीन-ए चमन गुल खिलाती है क्या-क्या, बदलता है रंग आसमां कैसे-कैसे... मिटे नामियों के निशां कैसे-कैसे, जमीं खा गई आसमां कैसे-कैसे

गायत्री प्रजापति की कहानी भी कुछ ऐसी ही रही

2012 तक बीपीएल यानि गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले गायत्री प्रजापति का राजनीतिक सफर किसी दैवीय करिश्मे से कम नहीं है. सिर्फ राजनीति ही नहीं, मां लक्ष्मी की भी ऐसी कृपा बरसी गायत्री पर कि कल का रंक चार साल के अन्तराल मे राजा बन गया. आज वो उघोग और व्यापारिक प्रतिष्ठान का मालिक बन बैठा है. और उत्तरप्रदेश के किसी भी करोड़पति या अरबपति को टक्कर देने का माद्दा रखता है.

राजनीति मे शुरुआत



2012 तक बीपीएल यानि गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले गायत्री प्रजापति का राजनीतिक सफर किसी दैवीय करिश्मे से कम नहीं है

गायत्री प्रजापति के जीवन का पहला चमत्कार तब हुआ जब 2012 मे,चार बार चुनाव हारने के बाद,उसे अमेठी से समाजवादी पार्टी का टिकिट मिला. उसके सामने थी कांग्रेस की उम्मीदवार, कद्दावर नेता संजय सिंह की पत्नी अमिता सिंह, गायत्री ने अमिता सिंह को 8760 वोट से हराकर उत्तरप्रदेश विधानसभा के दरवाजे पर जोरदार दस्तक दी. साइलेन्ट किलर बन कर निकला प्रजापति, मुलायम सिंह यादव के ताकतवर मंत्री भाई शिवपाल सिंह यादव की आंखों का तारा बन गया. अखिलेश यादव के मंत्रिमंडल मे 2013 की शुरुआत में गायत्री को सिंचाई राज्यमंत्री बनाया गया, उस विभाग के केबिनेट मंत्री शिवपाल यादव थे.

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गायत्री का प्रदेश की राजनीति मे बढ़ता दबदबा

मंत्री बनने के बाद गायत्री प्रजापति की महत्वकांक्षा भी बढ़ने लगी. शिवपाल यादव के अलावा वो जल्द ही पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव का भी खासमखास बन गए. उत्तरप्रदेश की राजनीति को करीब से जानने वाले बताते हैं कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को गायत्री प्रजापति फूटी आंख नहीं सुहाता था. लेकिन शायद पिता और चाचा का दबाव ऐसा पड़ा कि अखिलेश को जनवरी 2014 को उन्हें प्रोमोट करना पडा. और गायत्री को कैबिनेट का दर्जा मिला और प्रदेश में सोने का अंडा देने वाली मुर्गी माने जाने वाले खनन विभाग का जिम्मा भी.

गायत्री का फैसला रामराज्य



2012 तक बीपीएल यानि गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले गायत्री प्रजापति का राजनीतिक सफर किसी दैवीय करिश्मे से कम नहीं है

गायत्री ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा, प्रदेश में लोकायुक्त के पास गायत्री प्रजापति के भ्रष्टाचार की कई शिकायतें पहुंची, कुछ में शिकायतकर्ता या तो मुकर गए या फिर गा़यब हो गए. आरटीआई एक्टिविस्ट नूतन ठाकुर ने भी गायत्री प्रजापति के खिलाफ लोकायुक्त अदालत मे शिकायत की. लेकिन, अपने राजनीतिक रसूख की वजह से गायत्री को लोकायुक्त से क्लीन चिट मिल गई. नूतन ठाकुर इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंच गई. एक जनहित याचिका में उन्होंने अदालत को प्रजापति की सम्पत्तियों से जुड़ी एक लंबी लिस्ट सौंपी. इसमें उनके अलावा उनकी पत्नी महाराजी, बेटियां सुधा और अंकिता, बेटों अनिल और अनुराग की सम्पत्तियों का ब्योरा था. साथ में उनके ड्राइवर और नौकरों के नाम पर खरीदी गई बेनामी सम्पत्तियों की लिस्ट भी थी. प्रजापति के मंत्री बनने के बाद उनके बेटे एक दर्जन कम्पनियों के मालिक बन चुके हैं, इनका एक ड्राइवर और एक नौकर कुल 25 सम्पत्तियों के मालिक बन बैठे. आरोप लगा कि ये सब जाल-बट्टा उसके बाद हुआ जब प्रजापति खनन मंत्री बने. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रजापति के खिलाफ सीबीआई जांच के आदेश दे दिये और अखिलेश यादव ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया.

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दोबारा मंत्री बनने की कहानी



2012 तक बीपीएल यानि गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले गायत्री प्रजापति का राजनीतिक सफर किसी दैवीय करिश्मे से कम नहीं है

कहते हैं कि दो बिल्लियों की लड़ाई मे बन्दर फायदा उठाता है. समाजवादी पार्टी मे जब पिता-पुत्र यानी मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव मे वर्चस्व की लड़ाई छिड़ी तो गायत्री प्रजापति ने फिर अपना तुरुप का पत्ता खेला. उन्होंने मुलायम सिंह यादव को ऐसा पाठ पढ़ाया कि मुलायम ने अखिलेश पर ऐसा दबाब बनाया कि उन्हें गायत्री को दोबारा मंत्री बनाना पड़ा. गायत्री को इस बार ट्रांसपोर्ट यानी यातायात का मंत्रालय मिला. शपथ ग्रहण समारोह मे गायत्री जहां मुलायम के चरणों मे बैठे दिखाई दिए, वहीं मंच पर अखिलेश के पैर छूते. लेकिन मंच पर अखिलेश ने सार्वजनिक तौर पर उन्हें झिड़क कर अपनी नाराजगी साफ जाहिर कर दी. लेकिन कुछ ही समय मे गायत्री ने अखिलेश पर ऐसा जादू किया कि वे उनके साथ मंच साझा करते दिखाई दिये और अखिलेश की नाराजगी भी काफूर दिखी.

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गायत्री का मायाजाल



2012 तक बीपीएल यानि गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले गायत्री प्रजापति का राजनीतिक सफर किसी दैवीय करिश्मे से कम नहीं है

गायत्री प्रजापति का नाम उत्तर प्रदेश चुनावों में अभी सबसे अधिक चर्चा में है. समाजवादी पार्टी के लिए गायत्री प्रजापति मंत्री बनने के साथ ही धन की गंगोत्री बन गए थे. पार्टी के बड़े नेताओं के लिए बड़े धन कुबेर. पार्टी का कोई भी बड़ा आयोजन हो या कोई भी बड़ी से बड़ी रैली हो. खर्चे का सारा जिम्मा गायत्री प्रजापति के हाथों में होता था. कुछ ही समय में समाजवादी पार्टी गायत्री प्रजापति पर इतना निर्भर हो गई कि उसकी गलतियां नजर आनी बंद हो गईं. प्रजापति पर सीबीआई जांच का आदेश होने पर जब अखिलेश ने उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखाया तो निश्चित तौर पर मुख्यमंत्री अखिलेश अपने पिता मुलायम और चाचा शिवपाल के कोपभाजन का शिकार हुए. अखिलेश ने उसे मंत्रिमंडल में वापस भी पारिवारिक मजबूरी के तहत ही लिया. लेकिन, उत्तर प्रदेश राजनीति को करीब से समझने वाले कहते हैं कि गायत्री प्रजापति में कुछ तो जादू है. कुछ ही दिन में अखिलेश के बेहद करीब नजर आने वाले प्रजापति ने ये साबित भी कर दिया. आखिरकार वही बात सही साबित हुई कि सब माया का खेल है.

अब रेप केस मे फंसे प्रजापति

चुनाव प्रचार जब अपने चरम पर था, तब गायत्री प्रजापति पर एक महिला के साथ बलात्कार और उसकी बेटी के साथ शारीरिक शोषण का आरोप सामने आया सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का संज्ञान लेते हुए उत्तरप्रदेश पुलिस को गायत्री और 6 अन्य पर एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया. अब उत्तरप्रदेश पुलिस ने गायत्री की गिरफ्तारी के लिए हवाई अड्डों पर रेड अलर्ट की घोषणा की है. उत्तरप्रदेश के राज्यपाल ने गायत्री के अभी तक मंत्री पद पर बने रहने पर सवाल उठाया है. इस बीच गायत्री प्रजापति ने सुप्रीम कोर्ट मे अपनी बेगुनाही की गुहार लगाई, जिसे आज अदालत ने नामंजूर करते हुए इन्हें कोई भी राहत देने से साफ इंकार कर दिया. गायत्री की गिरफ्तारी अब महज औपचारिकता ही लगती है. और इसी के साथ लगता है कि उनकी उलटी गिनती भी शुरु हो गई है, यानि अर्श से वापिस फर्श की ओर.

यानी बात जहां से शुरू हुई थी कि “मिटे नामियों के निशां कैसे कैसे, जमीं खा गयी आसमां कैसे कैसे”

(इस आलेख में प्रकाशित विचार लेखक के हैं. आलेख के विचारों में क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

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