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जॉर्ज फर्नांडिस के खिलाफ मशहूर ‘डायनामाइट’ केस क्या था?

जॉर्ज फर्नांडिस ने आपातकाल के खिलाफ विदेशों से मदद लेने के लिए ‘हैम रेडियो’ से संपर्क करने का भी प्रयास किया.

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जॉर्ज फर्नांडिस अनोखे राजनेता थे जो लीक से हटकर और परंपराओं के खिलाफ फैसलों से डरते नहीं थे. भारत के शायद वो अकेले समाजवादी नेता होंगे जिन्हें इमर्जेंसी के खिलाफ हथियारबंद विद्रोह का ऐलान किया था.

जॉर्ज फर्नांडिस पर आरोप लगा कि वो किसी भी कीमत पर कांग्रेस पार्टी को सत्ता से उखाड़ना चाहते थे. इसके लिए उनपर रेल की पटरियों को डाइनामाइट से उड़ाने का षड़यंत्र रचने का आरोप लगाया गया. डायनामाइट का इस्तेमाल कर जॉर्ज और उनके साथ सरकार के प्रमुख संस्थाओं और रेल पटरियों को उखाड़कर पूरे सिस्टम को हिला देना चाहते थे.

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25 जून 1975 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगा दिया गया था. सभी विरोधी नेताओं को जेल में बंद किया जा रहा था. लेकिन उस वक्त के जाने माने ट्रेड यूनियन लीडर जॉर्ज पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ पा रहे थे. वो अंडरग्राउंड हो गए. लेकिन इस दौरान जॉर्ज शांत नहीं बैठे थे वो सरकार के खिलाफ बहुत बड़े विद्रोह की तैयारी में जुटे थे.

बड़ौदा का डायनामाइट केस

जॉर्ज फर्नांडिस छिपते हुए बड़ौदा पहुंचे और वहां उनकी मुलाकात बड़ौदा पत्रकार संघ के अध्यक्ष किरीट भट्ट और टाइम्स ऑफ इंडिया के संवाददाता विक्रम राव से हुई. यहीं पर सरकार और उसकी दमनकारी नीतियों के खिलाफ अपने सहयोगियों के साथ जॉर्ज फर्नांडिस ने मिलकर डायनामाइट धमाके की योजना बनाई. इस धमाके से सरकारी सम्पत्तियों को नुकसान पहुंचाना था. ऐसा जॉर्ज और उनके सहयोगियों का मानना था की इन धमाकों से सरकार डर जायेगी और आपातकाल को वापस ले लेगी.

आपातकाल के खिलाफ विदेशी मदद

फर्नांडिस ने आपातकाल के दौरान दमन के खिलाफ विदेशों से मदद लेने प्रयास किया और इसके लिए 'हैम रेडियो' से संपर्क करने का भी प्रयास किया.

वो सरकार की गैरसंवैधानिक नीतियों का सशस्त्र विरोध करने के पक्षधर थे. इसके लिये हथियार की जरूरत थी और हथियार जुटाने के लिए जॉर्ज फर्नांडिस ने पुणे से मुंबई जाने वाली ट्रैन को लूटने का प्लान बनाया.दरअसल इस ट्रैन से सरकारी गोला बारूद भेजा जाता था.

जून 1976 में आखिरकार उन्हें कलकत्ता से गिरफ्तार कर लिया गया. आपातकाल का विरोध करने, डायनामाइट का स्मगलिंग करने और सरकारी भवनों को उड़ाने का आरोप लगा. उनकी गिरफ्तारी के बाद एमनेस्टी इंटरनेशनल के सदस्यों ने सरकार पर उनकी सुरक्षा को लेकर दवाब बनाया. विश्व के कई देश के नेताओं ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से उनकी पूर्ण सुरक्षा की मांग की. उन्हें बरोदा से तिहाड़ जेल भेज दिया गया और बाद में इस मामले में कोई चार्जशीट दायर नहीं हुआ.

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