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गोरखपुर उपचुनाव: निषाद समुदाय, जिसने डुबोई योगी की नैया

निषाद बिरादरी का वो चक्रव्यूह जिसके जाल में उलझकर गोरखपुर में बीजेपी की नैया बीच मझधार में फंस गई

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गोरखपुर उपचुनाव से ठीक पहले ही समाजवादी पार्टी ने निषाद पार्टी से गठबंधन किया था. उस वक्त इसे बड़ा कदम बताया गया, लेकिन इतना बड़ा भी नहीं कि योगी आदित्यनाथ के गढ़ यानी गोरखपुर लोकसभा सीट पर जीत दिला सके. अब नतीजे कुछ और ही कह रहे हैं. 29 साल से गोरखनाथ पीठ के दबदबे वाली गोरखपुर लोकसभा सीट योगी के हाथ से निकल गई है. बीजेपी के उपेंद्र शुक्ल को समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार प्रवीण निषाद ने करीब 26 हजार वोटों से मात दी है.

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निषाद समुदाय ने बदल दिया खेल

निषाद समुदाय के समाजवादी पार्टी के साथ आने और बीएसपी के समर्थन के बाद पूरा खेल ही बदल गया. हर चुनाव में निषाद बिरादरी के 3.5 लाख वोटर गोरखपुर सीट पर जीत हार तय करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं. 2014 लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी दोनों ने निषाद उम्मीदवारों को टिकट दे दिया.

नतीजा ये रहा कि वोट बंटे और इसका फायदा, जाहिर तौर पर बीजेपी को ही हुआ.अब इस उपचुनाव में बीएसपी ने एसपी उम्मीदवार प्रवीण निषाद को समर्थन दिया है, साथ ही इस संसदीय क्षेत्र के दो लाख दलित वोटरों का झुकाव भी बीजेपी के खेल को बिगाड़ने का काम कर चुका है.

निषाद समुदाय का उभार, एसपी के लिए फायेदमंद

बता दें कि एसपी के कैंडिडेट प्रवीण निषाद, NISHAD यानी 'निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल' पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद के बेटे हैं. इस पार्टी की स्थापना साल 2016 में हुई.

कांशीराम के शिष्य संजय निषाद ने 2017 के विधानसभा चुनावों में पीस पार्टी (मोहम्मद अयूब), अपना दल (कृष्णा पटेल) और जन अधिकार पार्टी (बाबू सिंह कुशवाहा) के साथ मिलकर अपने कैंडिडेट उतारे थे.

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, निषाद पार्टी को विधानसभा चुनाव में 72 सीटों पर 5.40 लाख वोट हासिल हुए थे. ये ज्यादातर वोट पूर्वांचल यानी गोरखपुर के आसपास जिलों के थे. कह सकते हैं कि इस पार्टी ने महज 2 सालों में अच्छी खासी पैठ बना ली है.

यूपी में 14 फीसदी निषाद आबादी

अनुसूचित जाति में आने वाले निषाद समुदाय की प्रदेश में कुल आबादी 14 फीसदी है. ऐसा अनुमान है कि 2014 लोकसभा चुनाव में इस बिरादरी ने बीजेपी के लिए ही वोट किया था. केवट, मल्लाह, मांझी और बिंड के 'सरनेम' से जाने जाने वाले इस समुदाय के लोगों पर सियासी पार्टियों की नजर रहती है.

ऐसे में जब एसपी+बीएसपी+निषाद पार्टी और पीस पार्टी एक साथ आए तो यादव+दलित+गैरयादव+मुस्लिम का जो समीकरण बना है उसके चक्रव्यूह में फंसकर गोरखनाथ पीठ के महंतों को 29 साल बाद और बीजेपी को 27 साल बाद ये सीट गंवानी पड़ी है.

आदित्यनाथ और निषाद समुदाय का समीकरण

गोरखपुर लोकसभा सीट पर हमेशा से आदित्यनाथ को निषाद उम्मीदवारों से टक्कर मिलती रही है. साल 1998 और 1999 में आदित्यनाथ का मुकाबला समाजवादी पार्टी के जमुना निषाद से था. इलेक्शन कमीशन के आंकड़ों के मुताबिक, 1998 में वो 26,606 वोटों से जीते. 1999 में ये जीत का मार्जिन घटकर 7,399 वोट हो गया.

इसके बाद 2004, 2009 लोकसभा चुनावों में निषाद बिरादरी के वोट बंटते दिखे. साल 2014 में योगी आदित्यनाथ ने जमुना निषाद की पत्नी और एसपी उम्मीदवार राजमती निषाद को 3 लाख के अंतर से हराया. वहीं एसपी के उम्मीदवार रामभुवाल को उस वक्त 1,76,412 वोट हासिल हुए थे.

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