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नोटबंदी और GST की चोट BJP पर साफ दिख रही है

सभी सर्वे यही बता रहे हैं कि बीजेपी अपने दम पर सरकार नहीं बना पाएगी.

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सारे ताजा सर्वे एक ही कहानी कह रहे हैं. बीजेपी की हैसियत अब वो नहीं रह गई है, जो 2014 से 2017 के शुरुआती महीने के बीच रही. प्रधानमंत्री भी अब उतने पॉपुलर नहीं हैं, जितना वो एक साल पहले तक थे. साथ ही बीजेपी के नुकसान का सीधा फायदा कांग्रेस को हो रहा है. हालांकि दोनों पार्टियों में अब भी लंबा गैप बना हुआ है. कितना नुकसान होगा, इसमें वेरिएशन है. लेकिन सभी सर्वे यही बता रहे हैं कि बीजेपी अपने दम पर सरकार नहीं बना पाएगी.

अगर कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष में टीएमसी, बीएसपी और समाजवादी पार्टी जैसी बड़ी पार्टियां जुड़ जाती हैं, तो यूपीए गठबंधन, एनडीए से आगे निकल सकता है.

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अलग-अलग सर्वे की बड़ी बातें कुछ इस तरह हैं

  1. दो साल में पहली बार प्रधानमंत्री की अप्रूवल रेटिंग 50 परसेंट से कम हुई है. इसका मतलब ये है कि 2 साल में पहली बार ऐसा हुआ है कि पीएम मोदी को 49 फीसदी लोग बतौर प्रधानमंत्री पसंद कर रहे हैं. याद कीजिए कि जनवरी 2017 में अप्रूवल रेटिंग 65 परसेंट थी.
  2. अलग-अलग सर्वे के हिसाब से अकेले बीजेपी को 194 से 227 सीटें मिल सकती हैं. जनवरी 2017 के इंडिया टुडे के सर्वे में एनडीए को 349 सीटें जीतता दिखाया गया था. इंडिया टुडे के ताजा सर्वे में अनुमान है कि अगर विपक्ष का बड़ा गठबंधन बनता है, तो एनडीए 228 सीटों पर सिमट सकता है.
  3. बीजेपी का वोट शेयर कमोबेश उतना ही रहने का अनुमान है, जितना उसे 2014 के लोकसभा चुनाव में मिला था.
  4. सीएसडीएस के ताजा सर्वे में बीजेपी को सबसे ज्यादा नुकसान छोटे शहरों में होता दिख रहा है. ध्यान रहे कि देश में करीब 110 सेमी अर्बन लोकसभा सीट हैं और 340 से ज्यादा रूरल सीट. किसान तो नाराज है ही, जिसका मतलब है कि गांवों में भी बीजेपी की जमीन खिसक सकती है.
  5. महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे अहम राज्यों में बड़ा नुकसान हो सकता है.
  6. सर्वे में इस बात का आकलन नहीं है कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी के खिलाफ एक महागठबंधन होता है, तो तस्वीर कितनी बदलेगी. राज्य में अगर कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन होता है, जिस पर महीनों से चर्चा हो रही है, तो राज्य में सारे समीकरण बदल सकते हैं. ध्यान रहे कि उत्तर प्रदेश में पिछले चुनाव में बीजेपी ने भारी जीत हासिल की थी. महागठबंधन की सूरत में वहां बीजेपी को बड़ा नुकसान हो सकता है.

ठीक एक साल पहले के सर्वे के नतीजे कुछ और ही कहानी कह रहे थे. उस समय की हेडलाइंस हुआ करती थी:

एक साल में ऐसा क्या बदल गया?

आखिर एक साल में क्या बदल गया? पिछले 22 महीने में दो बड़े आर्थिक फैसले हुए हैं. नोटबंदी और गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (GST) का लागू होना. जैसा कि अंदेशा था, इन दोनों फैसलों ने देश के बड़े इनफॉर्मल सेक्टर को भारी नुकसान पहुंचाया है.

यही वजह है कि जिन इलाकों में इनफॉर्मल सेक्टर का योगदान ज्यादा है, वहां नाराजगी ज्यादा है. हाल में आई आरबीआई की रिपोर्ट में भी ये संकेत है कि जीएसटी की पेचीदगियों ने छोटे कारोबारियों का काफी नुकसान किया है.

इन दो फैसलों के बाद देश का असल मूड जानने के लिए कुछ आंकड़े देखते हैं:

  1. अक्टूबर 2017 में नगर पंचायत के चुनाव में बीजेपी महज 23 परसेंट सीट जीत पाई थी. इन चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 30 परसेंट से भी कम रहा था. नगर पंचायत छोटे शहरों और कस्बों में ही होता है.
  2. इसके ठीक बाद गुजरात में विधानसभा चुनाव हुआ और वहां भी छोटे शहरों और गांवों में बीजेपी का प्रदर्शन काफी खराब रहा. राज्य के 127 सेमी अर्बन और रूरल सीट में कांग्रेस को 68 सीटों पर जीत मिली, जबकि बीजेपी की झोली में महज 55 सीटें आईं.
  3. इसके बाद के उपचुनाव को देखिए. फूलपुर, अररिया, भंडारा-गोंदिया और कैराना. ये सारे सेमी अर्बन या रूरल सीट ही हैं. इन इलाकों में दूसरे फैक्टर के साथ-साथ इनफॉर्मल सेक्टर की बदहाली का भी नुकसान बीजेपी को हुआ होगा.
  4. सीएसडीएस के ताजा मूड ऑफ द नेशन सर्वे में कहा गया है कि छोटे शहरों में यूपीए और एनडीए को बराबर वोट मिलने का अनुमान है. ऐसे में जहां एनडीए को इन इलाकों में पिछले साल के सर्वे की तुलना में 8 परसेंट का नुकसान हो सकता है, यूपीए को यहां 6 परसेंट वोट का फायदा हो सकता है. इसी सर्वे में ये बताया गया है कि बड़े शहरों में एनडीए की लोकप्रियता बढ़ी है.

आखिर में इन सर्वे के नतीजों, छोटे शहरों और गांवों में वोटरों के रुझान को देखते हुए जो 5 बड़ी बातें निकल कर आ रही हैं, वो इस तरह हैं:

  1. पीएम का अप्रूवल रेटिंग 50 परसेंट से नीचे जाने का मतलब है कि मोदी प्रीमियम की चमक फीकी पड़ रही है.
  2. अगर बीजेपी का वोट शेयर उतना ही रहता है, जितना कि पिछले लोकसभा चुनाव में था, तो बढ़ते इंडेक्स ऑफ अपोजिशन यूनिटी की वजह से बीजेपी की सीटें काफी कम हो सकती हैं.
  3. सारे संकेत ये बता रहे हैं कि अगली सरकार गठबंधन वाली सरकार ही होगी
  4. नोटबंदी और जीएसटी जैसे फैसले, जिस पर प्रधानमंत्री ने बड़ा दांव लगाया, उससे लोगों का मोहभंग हो रहा है.
  5. और 2019 का मैच कोई भी जीत सकता है.

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