गांव में अगर कब्रिस्तान बनता है तो गांव में श्मशान भी बनना चाहिए. अगर रमजान में बिजली मिलती है, तो दिवाली में भी बिजली मिलनी चाहिए.(19 फरवरी, 2017 की फतेहपुर रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी)
क्या आप पीएम नरेंद्र मोदी के इस बयान और इसकी तारीख में कोई रिश्ता ढूंढ पा रहे हैं? अगर नहीं, तो हम आपको बताते हैं. रिश्ता गहरा है और वो है उत्तर प्रदेश की मुस्लिम आबादी.
जी हां, इस बात को जरा तफ्सील से समझने के लिए आप नीचे दिए चार्ट पर नजर डालिए.
प्रधानमंत्री मोदी ने 19 फरवरी को ‘श्मशान-कब्रिस्तान’ का पिटारा खोला. इसी दिन हुई तीसरे फेज की वोटिंग के साथ यूपी विधानसभा की 403 में से 209 सीटों पर चुनाव निपट गया. लेकिन सीटों की संख्या से ज्यादा अहम है उन जगहों का धार्मिक प्रोफाइल.
पहले और दूसरे फेज की 140 सीटों में से 66 सीटों पर मुस्लिम आबादी 25 फीसदी से ज्यादा है. दूसरे फेज में तो 22 सीटों पर 40 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम हैं, जो कई सीटों पर 55 से 60 फीसदी का आंकड़ा छूते हैं.
यानी शुरुआती फेजों में ध्रुवीकरण का खुला ऐलान बीजेपी को भारी पड़ता. जो मुस्लिम वोट सपा-कांग्रेस गठबंधन और बहुजन समाज पार्टी के बीच बंटा होगा (अगर बंटा होगा तो) वो एक हो जाता. यानी समाजवादी पार्टी के परंपरागत यादव या फिर बीएसपी के दलित वोट के साथ मुस्लिम वोट की जुगलबंदी बीजेपी के लिए मुश्किलें काफी बढ़ा सकती थी.
हालांकि योगी आदित्यनाथ, संजीव बालयान, साक्षी महाराज, संदीप सोम सरीखे बीजेपी नेता शुरुआत से ही चुनाव में सांप्रदायिक रंग घोल रहे हैं, लेकिन प्रधानमंत्री के बयान के अलग मायने हैं. प्रधानमंत्री के बयान का मतलब है इस तरह के खुले प्रचार का लाइसेंस.
27 फरवरी को होने वाली पांचवे फेज की वोटिंग को छोड़ दें, तो मुस्लिम आबादी के नजरिये से आखिरी दो फेज में मैदान साफ है.
- छठे फेज में एक भी सीट 25 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम आबादी की नहीं.
- 18 सीटों पर मुस्लिम 10 फीसदी से भी कम.
- सातवें फेज में एक भी सीट 25 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम आबादी की नहीं.
- 22 सीटों पर मुस्लिम आबादी 10 फीसदी से भी कम.
यानी चुनाव के आखिरी दौर में अगर कोई एकजुटता जीत दिला सकती है, तो वो है हिंदू एकजुटता. मुस्लिम एकजुट हो भी जाएं, तो कोई फर्क नहीं पड़ता. क्या अब आपको प्रधानमंत्री के बयान की टाइमिंग का मतलब समझ में आ रहा है?
द क्विंट से बातचीत में यूपी बीजेपी के एक नेता ने बताया
चुनाव में फूल का मुकाबला कहीं साइकिल-पंजे के साथ है तो कहीं हाथी के साथ. यानी फूल हर जगह कॉमन फेक्टर है. ज्यादातर सीटों पर हम नंबर एक पर हैं या नंबर दो पर.
चुनाव के चार फेज निपट जाने के बाद भी हर पार्टी असमंजस में है. 2014 की मोदी लहर नदारद है और किसी दूसरी पार्टी के पक्ष में भी हवा नहीं दिखती. वोटर खामोश है. ऐसे में बीजेपी को लगता है कि सवर्णों के साथ गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलित हिंदू वोट ध्रुवीकरण के जरिये ही अपने पक्ष में लाया जा सकता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्मशान-कब्रिस्तान की बात कहकर यही करने की कोशिश की है. आने वाले दिनों में बीजेपी के बड़े नेता प्रचार की उसी रणनीति को आगे बढ़ाते नजर आएं, तो हैरान मत होइएगा.
बीजेपी ने यूपी की 400 में से एक भी टिकट मुस्लिम उम्मीदवार को न देकर इरादे तो चुनावों से पहले ही साफ कर दिए थे. अब तो वक्त और माहौल की नजाकत के मुताबिक चालें चली जा रही हैं. इस सबके बीच अगर आप सोच रहे हैं कि कहां गया ‘सबका साथ-सबका विकास’ तो जनाब सोचते रहिए. जवाब यूपी चुनाव के बाद मिलेगा.
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