उत्तर प्रदेश चुनाव के बीच सिद्धार्थनगर के डुमरियागंज से विधायक राघवेंद्र प्रताप सिंह का वीडियो वायरल हो रहा है. इसमें वे कह रहे हैं कि जो हिंदू मुझे वोट नहीं देंगे, उनकी रगों में मुस्लिम खून है. राघवेंद्र प्रताप विधायक होने के साथ हिंदू युवा वाहिनी के प्रदेश प्रभारी भी हैं. ये वही संगठन है जिसके फाउंडर योगी आदित्यनाथ हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यूपी चुनाव में हिंदू युवा वाहिनी की एक्टिव एंट्री हुई है? इसका चुनाव से क्या कनेक्शन रहा है?
पहले जान लेते हैं राघवेंद्र प्रताप सिंह ने क्या कहा?
राघवेंद्र प्रताप सिंह ने कहा, मुझे बताओ. क्या कोई मुसलमान मुझे वोट देगा? तो ध्यान रहे कि अगर इस गांव के हिंदू दूसरे पक्ष का समर्थन करते हैं तो उनकी रगों में मुस्लिम खून है. वे देशद्रोही हैं. इतने अत्याचारों के बाद भी, अगर कोई हिंदू दूसरी तरफ चला जाता है, तो उसे सार्वजनिक रूप से अपना चेहरा दिखाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. राघवेंद्र प्रताप सिंह ने आगे कहा-
चेतावनी देने के साथ बात समझ में नहीं आएगी तो इस बार मैं बता दूंगा कि राघवेंद्र सिंह कौन है. मेरे साथ गद्दारी करोगे तो चलेगा, मैं अपमान सह लूंगा, लेकिन अगर हमारे हिंदू समाज को अपमानित करने की कोशिश करोगे तो बर्बाद करके रख दूंगा.
राघवेंद्र प्रताप सिंह योगी के करीबियों में से एक हैं
राघवेंद्र प्रताप सिंह को योगी आदित्यनाथ का करीबी माना जाता है. वे उस संगठन के प्रदेश अध्यक्ष हैं, जिसे योगी आदित्यनाथ ने 2002 में शुरू किया. वे बीजेपी के टिकट पर 2012 में डुमरियागंज से चुनाव लड़े, लेकिन पीस पार्टी के उम्मीदवार मलिक मोहम्मद कमाल युसूफ से हार गए. फिर 2017 में बीएसपी के सैय्यदा खातून को हराकर विधायक बने.
राघवेंद्र प्रताप सिंह के पहले भी आए विवादित बयान
करीब 15 दिन पहले उन्होंने कहा था, जैसे गोल टोपियां गायब हो रही हैं, अगर मैं फिर से विधायक बन गया तो मियां तिलक लगाएंगे. बाद में उन्होंने कहा कि जब यहां पर इस्लामिक आतंकवादी थे, तब हिंदुओं को गोल टोपी पहनने के लिए मजबूर किया गया था. अगर मुसलमान मुझे हराने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं तो मैं चुप नहीं रहूंगा.
ऐसे में सवाल उठता है कि खुद को कल्चरल और सोशल ऑर्गेनाइजेशन कहने वाले संगठन के लोग हेट स्पीच क्यों देते हैं? क्या कल्चरल ऑर्गेनाइजेशन का यही काम है? ऐसे बयानों और ऑर्गेनाइजेशन से राजनीति में क्या फर्क पड़ता है?
ऊपर के सवालों के जवाब जानने के लिए हिंदू युवा वाहिनी को शुरू से समझना होगा. भारत के लिए 2002 का साल बहुत कठिन था. गुजरात दंगों की चपेट में था. करीब 2 महीने के बाद योगी आदित्यनाथ ने हिंदू युवा वाहिनी का गठन किया. उसी साल विधानसभा का चुनाव हुआ. तब योगी आदित्यनाथ और बीजेपी के बीच मतभेद पैदा हो गए थे. योगी ने गोरखपुर शहर, पिपराइच और मुंडेरवा विधानसभा से अखिल भारत हिंदू महासभा के अपने उम्मीदवार उतारे. नतीजा ये हुआ कि 1989 से गोरखपुर में लगातार चार बार चुनाव जीतने वाले यूपी के कैबिनेट मंत्री शिव प्रताप शुक्ला हार गए. महासभा के राधा मोहन दास अग्रवाल की जीत हुई.
योगी आदित्यनाथ के इस कदम से गोरखपुर सहित पूर्वांचल के जिलों में हिंदू युवा वाहिनी की चर्चा शुरू हो गई, फिर वक्त के साथ उसका प्रभाव बढ़ता ही गया. इस संगठन के उदय के साथ ही योगी आदित्यनाथ यूपी में हिंदुत्व चेहरे के रूप में उभरे.
यूपी में योगी बने हिंदुत्व का चेहरा-बंपर वोटों से जीत होने लगी
हिंदू युवा वाहिनी बनने के बाद से योगी आदित्यनाथ के राजनीति करियर में काफी बदलाव आया. इसे कुछ चुनावों के आंकड़ों से समझते हैं. योगी आदित्यनाथ ने पहला लोकसभा चुनाव 1998 में लड़ा. 26 हजार वोटों से जीते. 1999 में लड़े और सात हजार वोटों से जीते. लेकिन 2002 में हिंदू युवा वाहिनी के गठन के बाद जीत का अंतर तेजी से बढ़ा. साल 2004 में 1.42 लाख वोटों से जीतकर सांसद बने. 2009 और 2014 के चुनाव में तो ये फर्क 3 लाख से ज्यादा हो गया.
साल 2022 के चुनाव में भी हिंदू युवा वाहिनी एक्टिव है. इसके सदस्य घर-घर जाकर और वर्चुअल तरीके से योगी आदित्यनाथ के लिए वोट मांग रहे हैं.
हिंदू युवा वाहिनी से जुड़े विवाद
मार्च 2021 में देहरादून में कई मंदिरों के बाहर हिंदू युवा वाहिनी ने बैनर और पोस्टर लगाए थे, लिखा था- यह तीर्थ हिंदुओं का पवित्र स्थल है. इसमें गैर हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है.
जून 2017 में हिंदू युवा वाहिनी के 3 सदस्यों की बरेली में एक पुलिस अधिकारी से रेप और पिटाई के आरोप में गिरफ्तारी हुई.
अप्रैल 2017 में संगठन से जुड़े सदस्यों ने मेरठ में लव जिहाद के शक में घर में जबरदस्ती घुसकर मुस्लिम कपल को पीटा था. घटना का वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें हिंदू युवा वाहिनी के सदस्य घर में घुसते हुए और कई सवाल पूछते हुए नजर आ रहे हैं.
अब वापस विधायक और हिंदू युवा वाहिनी के प्रदेश प्रभारी राघवेंद्र प्रताप सिंह के बयान पर आते हैं. विधानसभा चुनाव के दौरान ही उन्होंने दो बार विवादित बयान दिए. एक धर्म विशेष के लोगों को निशाना बनाया. कहने को तो रिपोर्ट दर्ज की गई, लेकिन भला ये कैसी कार्रवाई, जिसके बाद भी बयान आते जा रहे हैं.
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