ADVERTISEMENTREMOVE AD

EXCLUSIVE: क्‍या ‘गोरक्षक’ होना इसे ही कहते हैं?

विवेक की बेल्ट रियाज की छाती पर वार करने लगती है. वह चिल्लाना शुरू कर देता, “यह है गोकशी. इसे कहते हैं गोकशी.”

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

भीड़ में से किसी ने यह वीडियो शूट किया है. मोहम्मद रियाज के हाथ उसकी पीठ से बंधे हैं. वह विवेक प्रेमी के आगे झुका हुआ है. कसरती बदन और दाढ़ी वाला जवां शख्स विवेक के हाथ में चमड़े की एक बेल्ट है, जिसे उसने अपनी कलाई से लपेट रखी है.

यह जून 2015 की वेस्टर्न यूपी के शामली शहर की एक दोपहर है. आसमान बादलों से घिरा है. शिव चौक का इलाका है. ओम और स्वस्तिक लिखे रॉट आयरन के गेट दिख रहे हैं. गली के नुक्कड़ पर शिवलिंग स्थापित है. ये आगे होने वाले एक्शन के लिए मुफीद बैकग्राउंड का काम रहे हैं.

थोड़ी देर के लिए विवेक कहीं खोया हुआ सा लगता है. फिर बड़ी फुर्ती से वह बेल्ट को अपनी कलाई में लपेटता है और हवा में लहराता है. इसके बाद बेल्ट रियाज पर बरसना शुरू हो जाती है. सटाक-सटाक की आवाज के साथ विवेक की बेल्ट रियाज की छाती, चेहरे और पैरों पर वार करने लगती है. और प्रेमी अपनी कर्कश आवाज में चिल्लाना शुरू कर देता, “यह है गोकशी. यह है गोकशी. यह है गोकशी. इसे कहते हैं गोकशी.”

थोड़ी देर में इस घटना की वीडियो फुटेज वायरल हो जाती है. स्थानीय अखबारों के न्यूज रूम इसे अपनी सुर्खियां बनाते हैं. गोरक्षा दलों के व्हाट्सग्रुप इसे धड़ाधड़ शेयर करने लगते हैं. यू-ट्यूब पर चंद घंटों में ही इसे लाखों दर्शक मिल जाते हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

शहर के भरे चौराहे में सरेआम एक मुस्लिम शख्स पर एक हिंदू युवक की ओर से बेल्ट बरसाने की घटना को एक साल हो गए. प्रेमी की जवां जिंदगी और ताकतवर और रसूखदार हो गई है, जबकि अधेड़ रियाज की जिंदगी बेबसी और बेहाली में गर्त में समा चुकी है. दंगे की आशंका से डरा यह शहर सांप्रदायिक नफरत की कगार पर पहुंच चुका है. रियाज पर बेल्ट बरसाने वाली इस भीड़ में शामिल युवाओं के लिए राजनीति के नए रास्ते खुल चुके हैं. देश का यह छोटा शहर पिछले साल के दौरान महत्वाकांक्षी युवाओं के लिए किसी बेहतरीन मंजिल से कम नहीं रहा होगा.

पिछले सप्ताह में हम विवेक के शहर में थे. विवेक पिछले साल के उन दिनों को याद करते हुए कहता है

“उन दिनों मेरे दिमाग में रियाज जैसे लोगों को सबक सिखाकर एक नजीर कायम करने की धुन समाई हुई थी.” प्रेमी ने कहा, “रियाज कसाइयों के हाथों बेचने के लिए एक गाय चुरा रहा था. हम इस शहर को दिखाना चाहते थे कि गायों का कत्ल करने वालों का हम क्या हश्र करते हैं..... और जरूरत पड़ी तो हम फिर ऐसा करेंगे.”
ADVERTISEMENTREMOVE AD

ये हैं बर्बरता के हथ‍ियार

यूट्यूब पर कथित गोकशी करने वालों पर हमले के तमाम फुटेज हैं और अब तो वहां इसकी एक श्रेणी ही बन चुकी है. जो लोग इसमें दिलचस्पी रखते हैं वे स्टील रॉड, मोटरसाइकिल की चेन, हॉकी स्टीक, लेदर बेल्ट से कथित गाय चोरों या हत्यारों की पिटाई के दृश्य घंटों देख सकते हैं. उन्हें इन लोगों पर कथित गोरक्षकों की ओर पेशाब किए जाने के दृश्य भी देखने को मिल सकता है.

इस महीने गुजरात में सात दलितों की बर्बर पिटाई की एक क्लिप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को असली गोरक्षकों और इसके नाम पर दुकान चलाने वालों के बीच लकीर खींचने को मजबूर कर दिया. उनके मुताबिक “असली” गोरक्षक कानून और गाय दोनों की परवाह करते हैं. जबकि “फर्जी” गोरक्षक दिन में गाय के नाम पर अपनी दुकान चलाते हैं, लेकिन रात को गोरखधंधे में लग जाते हैं.

इस महीने गुजरात में सात दलितों की बर्बर पिटाई की एक क्लिप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को असली गोरक्षकों और इसके नाम पर दुकान चलाने वालों के बीच लकीर खींचने को मजबूर कर दिया. उनके मुताबिक “असली” गोरक्षक कानून और गाय दोनों की परवाह करते हैं. जबकि “फर्जी” गोरक्षक दिन में गाय के नाम पर अपनी दुकान चलाते हैं लेकिन रात को गोरखधंधे में लग जाते हैं.

पीएम ने भले ही गोरक्षा के नाम पर दुकान चलाने वालों की लानत-मलामत की हो लेकिन ये दुकानदार वो युवा हैं, जिन्होंने इसके जरिये अपनी एक इमेज बना ली है. ये दुकानें विवेक प्रेमी जैसे युवा चला रहे हैं, जो महत्वाकांक्षी और मीडिया में छाने के गुर से लैस हैं. ये वो लोग हैं, जो तय मजदूरी से भी कम पर कड़ी मेहनत करने वाले मजदूर की बेबसी को मोहरा बना कर सांप्रदायिक राजनीति की हिंसा को और बर्बर बनाने में लगे हैं.

विश्व हिंदू परिषद के यूथ विंग बजरंग दल का शामली जिला संयोजक प्रेमी अब यहां हिंदुत्व आंदोलन का नया आकर्षण है. अब वह कोई छोटा-मोटा कार्यकर्ता नहीं है. उसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कई मोर्चों, खास कर बीजेपी से राजनीतिक संरक्षण मिल रहा है.

प्रेमी बताता है,- पिछले साल जुलाई में मुझे एक गोशाला से फोन आया कि तीन लोग एक बछड़े को उठाने की कोशिश में लगे हैं. मैं तुरंत वहां पहुंचा. दो लोगों ने पिस्तौल निकाल ली और इसे लहराते हुए भाग निकले. रियाज दबोच लिया गया. हमने उसकी पिटाई की और उसे थाने ले गए.

प्रेमी ने हमें जो वाकया सुनाया उसका उसके पास कोई सबूत नहीं था. यह सब वह अपनी तरफ से कह रहा था.

इस घटना के बाद शामली प्रशासन ने प्रेमी को सार्वजनिक शांति के लिए खतरनाक करार दिया. उसके खिलाफ नेशनल सिक्यूरिटी एक्ट 1980 के तहत मामला दर्ज किया गया और उसे जेल भेज दिया गया. थोड़े समय के लिए ऐसा लगा कि हिंदुत्व की राजनीति के जरिये कैरियर चमकाने का उसका सपना दफन हो गया.

लेकिन इस मुसीबत में बजरंग दल और हिंदू समाज उसके साथ खड़ा रहा. उन्होंने याचिका डाली. आंदोलन किए. एक मवेशी चोर को राज्य सरकार ने अपने वोट बैंक के लिए रिहा कर दिया लेकिन लेकिन जिस शख्स ने उसको पकड़ा उसे जेल में डाल दिया.
प्रेमी
ADVERTISEMENTREMOVE AD
ADVERTISEMENTREMOVE AD

सात महीने की जेल काटने के बाद जब 15 जनवरी को प्रेमी को रिहा किया गया, तो वह किसी सेलेब्रिटी की तरह घर लौटा. स्थानीय हिंदू संगठनों ने उसे हिंदू धर्म का रक्षक करार दिया और खुशियां मनाई. शामली के मंदिरों में उसे विशेष पूजा-अर्चनाओं की अगुवाई करने के लिए बुलाया जाने लगा. देश के सबसे ज्यादा बिकने वाले अखबारों में से एक पंजाब केसरी ने सामाजिक कार्यों के लिए उसे अवॉर्ड दिया. केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री और 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के आरोपी बीजेपी सांसद संजीव बाल्यान ने उसे सम्मानित किया. उसे “सोशल मीडिया में विशेष योगदान” के लिए अवॉर्ड से नवाजा गया.

उसके रिश्ते के एक भाई ने उसके लिए एक फोटो कोलाज बनवाया, जिसमें उसके बचपन की तस्वीरें भगत सिंह के फोटो के बीच-बीच में लगाई गई है. अब यह कोलाज, पंजाब केसरी और संजीव बाल्यान के अवार्ड उसके कमरे की शान बने हुए हैं.

इस साल की गर्मियों तक प्रेमी खास आदमियों, चमचों और पर्सनल सेक्रेट्री के जाल में अपने आप को घुसेड़ चुका था. प्रेमी जैसे संभावनाशील लगने वाले लोगों को ये चमचे, आदमी और पर्सनल सेक्रेट्री पांच मिनट के लिए अपने इलाके के प्रमुख मंत्री से मिलाने के लिए बुलाते हैं. इस बीच विवेक प्रेमी का एक फैन क्लब भी फेसबुक पर उभर आया है. एक फैन ने ऐलान किया है कि वह विवेक की जिंदगी पर एक फिल्म बना रहा है. इसमें विवेक की जिंदगी को सलाम किया जाएगा. फिल्म में डायरेक्शन और एक्टिंग वही करेगा.

पब्लिक में विवेक प्रेमी का चोला बदल चुका है. वीडियो में उसने टाइट जीन्स और चेक शर्ट पहन रखी है. उसके पास सीबीजेड होंडा मोटरबाइक है. लेकिन अब उसने सफेद कुर्ता पायजामा पहनना शुरू किया है. वह अब बुलेट एनफील्ड 350 चलाता है. बाल लंबे कर लिए है, मूंछें ऊपर की ओर उमेठी हुई हैं. अब लोकल पेपर उसके बारे में लिख रहे हैं. उसे एक होनहार और प्रमुख हिंदू नेता के तौर पर उभारा जा रहा है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

एक सफर शुरू हो चुका है...

ADVERTISEMENTREMOVE AD

“यह कौन बता सकता कि क्रांतिकारी कहां पैदा होगा? भगत सिंह के घर में ऐसा क्या था?” खुले आंगन वाले अपने दो मंजिला साधारण मकान की ओर देखते हुए विवेक के पिता मनोज सवाल करते हैं.

सुबह हुए थोड़ा वक्त बीत चुका है. विवेक की मां रसोई में व्यस्त हैं. उसके चाचा बेडरूम में पूजा कर रहे हैं. विवेक अपने लिविंग रूम में कसरत कर रहा है. एक कोने में वाशिंग मशीन घरघरा रही है.

विवेक के पिता कहते हैं, ‘’विवेक के परदादा गवर्नमेंट कॉलेज में पढ़ाते थे, जहां वह शास्त्री के ओहदे तक पहुंचे. उनका बड़ा सम्मान था. लेकिन रुपये-पैसों में उनकी दिलचस्पी नहीं थी. विवेक के दादा ने परिवार पालने के लिए ज्वैलरी की छोटी सी दुकान खोली. लेकिन अचानक दुनियादारी छोड़ कर योगी बन गए.’’

विवेक के पिता आगे कहते हैं, ‘’तब मैं 17 साल का था. कॉलेज जाना चाहता था. लेकिन परिवार चलाने के लिए बिजनेस करना पड़ा.’’

विवेक जब लॉ स्कूल के सेकेंड इयर में था तो एक दुर्घटना की वजह से उसकी पढ़ाई रुक गई. जेल जाने से भी उसकी पढ़ाई में अड़चन आई. लेकिन मुझे पता है कि वह आगे और पढ़ना चाहता है.

आप क्या बनना चाहेंगे?

अगर हर बच्चा वो करे] जो उसके माता-पिता चाहते हैं तो दुनिया में गरीबी का नामो-निशां न रहे. कोई दुख नहीं कोई भुखमरी नहीं. लेकिन हर बच्चे को अपनी मर्जी से काम करने की आजादी भी मिलनी चाहिए. हर बच्चा आजादी पंछी है, उसे उड़ने की आजादी चाहिए.

जब विवेक जेल में बंद था तो स्थानीय हिंदू दलों ने उसके पिता मनोज को शहर में विरोध मार्च करने की अगुवाई करने को कहा. लेकिन उन्होंने मना कर दिया. उन्होंने कहा शहर बारूद के ढेर पर खड़ा है और हम उसमें तीली नहीं लगाना चाहते. हर आदमी अपनी जिंदगी और धंधे की सलामती चाहता है लेकिन राजनीतिक नेता ऐसा करने नहीं देंगे.

शहर में उसके एक मुसलमान पड़ोसी ने कहा कि प्रेमी ज्वैलरी शॉप इलाके की सबसे पुरानी दुकानों में से एक है. इसके आधे ग्राहक मुसलमान हैं. लेकिन जब से विवेक ने रियाज को सरेआम पीटा है, तब से कुछ मुस्लिम ग्राहकों ने इस दुकान का रुख करना बंद कर दिया है.

लेकिन अभी भी कई मुसलमान परिवार यहीं से शादियों की ज्वैलरी खरीदते हैं और प्रेमी परिवार को अपने यहां के शादी-उत्सवों का निमंत्रण कार्ड भी देते हैं. विवेक के पिता मनोज इन दावतों को स्वीकार भी करते हैं और मिठाई का डब्बा लेकर उनके यहां जाते हैं. लेकिन अब उनसे बातचीत सीमित होती है . सिर्फ हालचाल लेना-देना होता है.

एक और मुस्लिम पड़ोसी ने कहा, ‘’हम विवेक के साथ बड़े हुए. एक ही स्कूल में जाते थे. एक साथ खेले. लेकिन इस वीडियो के आने के बाद लगा कि वह कुछ बदल गया है.’’

विवेक के पिता नाटे, चाक-चौबंद और गठे शरीर के हैं. लेकिन उनकी मां पूनम आर्या लंबी और करिश्माई दिखती हैं. वह आरएसएस की तरह ही काम करने वाले महिला संगठन राष्ट्रीय सेविका समिति की पिछले आठ साल से स्थानीय पदाधिकारी हैं.

मां की नजर में विवेक आदर्श बच्चा है. वह पेस्ट्री और कोला से दूर रहता है . दूध पसंद करता है. उसका प्रिय खेल भगत सिंह और चंद्रशेखर जैसे क्रांतिकारियों का वेश धरना है. अपने से बड़ों के प्रति वह काफी विनम्र है और आर्य समाज में नियमित जाता है.

लेकिन आखिरकार वह शामली के एक चौराहे पर किसी मजलूम पर बेल्ट से वार करने वाले हमलावर में कैसे तब्दील हो गया. कैसे उसे एक उग्र भीड़ समर्थन कर रही थी.

मां-बाप दोनों ने माना कि यह एक गलती थी जो हो गई. लेकिन वे पूछते हैं कि आखिर विवेक ने किया क्या. उसने एक चोर को पकड़ा, उसकी पिटाई की और उसे थाने ले गया. इसके लिए राज्य सरकार उसे निशाना बना रही है. दरअसल वह मुस्लिम वोट बैंक को खुश करने के लिए ऐसा कर रही है. यह इत्तेफाक की बात है कि चोर मुसलमान था. जैसे कि गुजरात में जिन लोगों की पिटाई हुई वे दलित थे.

चोर को पकड़ने से पहले आप उसका धर्म थोड़े ही पूछते हैं. क्या आप ऐसा करते हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
ADVERTISEMENTREMOVE AD

तो ये हैं विवेक प्रेमी

आपको विवेक प्रेमी के बारे में पता होना चाहिए. उसी ने एक गाय को मारने की कोशिश कर रहे मुस्लिम शख्स को पीटा था. धारीदार टी-शर्ट पहने वह मोटा शख्स खुले सीवर के नुक्कड़ पर सेलफोन पर बात करते हुए युवाओं को यह बता रहा है.

मोहल्ला रामसागर में देर शाम का वक्त है और विवेक यहां हिंदू लड़कों में चरित्र निर्माण के मकसद से हनुमान चालीसा ग्रुप के गठन के लिए पहुंचा है. इसके बहाने हर मंगलवार को यह ग्रुप जुटेगा.

विवेक कहता है, ‘’इसके पीछे मूल विचार हिंदू एकता कायम करना है. मैं इस काम की शुरुआत कर रहा हूं. लेकिन इसे स्थानीय लोगों को ही आगे बढ़ाना होगा. हमारा लक्ष्य इस साल शहर में इस तरह के 30 ग्रुप खड़े करने का है.’’

मोटा शख्स कहता है, ‘’आप ठीक कहते हैं विवेक जी. मुसलमान हर शुक्रवार को मस्जिद में मिलते हैं. हम लोगों को भी सप्ताह में एक दिन मिलना चाहिए. समाज में ऐसे ही एकता आती है.’’

माहौल में एक असहज चुप्पी है और यह विवेक के सेलफोन से टूटती है. शहर की दूसरी जगह से किसी हनुमान चालीसा ग्रुप का फोन था.

वे लोग सिर्फ दस लोग हैं. क्या आज चालीसा ग्रुप की मीटिंग टाल दें.

इधर से विवेक की आवाज –

यार आप लोगों को कितनी बार बताना पड़ेगा. भजन मंडली की बैठक का उद्देश्य हनुमान चालीसा का पाठ है. न भीड़ इकट्ठा करना और न विडियो बनाना. कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप दस हो कि कितने हो. बैठिये और पाठ कीजिये.

बजरंग दल के संयोजक के तौर पर विवेक के दिन का ज्यादातर हिस्सा नेटवर्क बनाने में खर्च होता है. इसके तहत वह गांवों में घूमता है और लोगों को संगठन में पद देता है. विवेक कहता है- हम जिससे भी मिलते हैं वह संगठन में कोई न कोई पदाधिकारी है- ये हमारे ब्लॉक लेवल को-ऑर्डिनेटर हैं. ये गांव प्रमुख हैं. ये हमारे नगर प्रभारी हैं. ये हमारे वार्ड को-ऑर्डिनेटर हैं.

तो फिर नेटवर्क बनाने की क्या जरूरत है?

सूचना के लिए. मान लीजिए हाइवे पर मवेशी से भरा कोई ट्रक दिखता है और वह किसी गांव की ओर जा रहा है. किसी गांव में कोई हिंदू लड़की किसी मुस्लिम लड़के के साथ भाग गई है. कुछ लड़के इस्लाम अपनाना चाह रहे हैं. हमें इन सब चीजों को रोकना है. लेकिन संगठन के पदाधिकारियों के बिना यह सब कैसे होगा. तो नेटवर्क तो जरूरी है ना.

विवेक का दूसरा काम हमेशा फेसबुक खंगालते रहना है ताकि उस जैसे दूसरे हिंदुओं से परिचय बढ़ सके. गोरक्षक का दिन दफ्तर में उसी तरह गुजरता है जैसे दूसरों का. अंतहीन बैठकें. फेसबुक पर पोस्ट और गहमागहमी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

पिछले सप्ताह खुद को शाही मस्जिद का इमाम बताने वाले शख्स ने फेसबुक पर विवेक को मारने की धमकी दी थी. इमाम ने इससे इनकार किया है और अनजान लोगों के खिलाफ इस बात की तहरीर दी है कि कोई उनके नाम से लोगों को फेसबुक पर धमकी दे रहा है.

हमेशा की तरह प्रेमी ने मौका लपकने में देर नहीं की. विवेक कहता है- मैंने अपनी सुरक्षा के लिए दो गनमैन मांगें हैं. मुझे सुरक्षा चाहिए. केंद्र का गृह मंत्रालय मामले को देख रहा है.

ये गनमैन क्या करेंगे?

कुछ नहीं. मेरे साथ हमेशा मौजूद रहेंगे. विवेक मुस्कुराता है. इसी के साथ ही उसका बनावटीपन भी जाहिर हो जाता है. महज 22 साल की उम्र में उसकी जिंदगी वह मोड़ ले लेगी उसकी उसने कल्पना भी नहीं की होगी.– मौत की धमकी, पुलिस सुरक्षा, केंद्रीय मंत्रियों के पुरस्कार. ऐसी जिंदगी और कहां मिलेगी.

मुजफ्फरनगर मे एक सीनियर बीजेपी लीडर मेरी ओर एक लड्डू पकड़ाते हुए कहते हैं “यह हमारी नई पीढ़ी है. यह टॉक से पहले ट्वीट करती है. वह फेसबुक को ही राजनिति समझते हैं. लेकिन हम क्या करें. दिल्ली के नेता इन्हीं की सुनते हैं. यह इनका वक्त है.”
ADVERTISEMENTREMOVE AD
ADVERTISEMENTREMOVE AD

हर रात मोहम्मद रियाज की नींद में वही खौफनाक सपना दोहराता है- उसके बिस्तर को लोगों ने घेर लिया है. वे चिल्ला रहे हैं. चीख रहे हैं. जैसे ही वे रियाज के नजदीक आते हैं उसकी नींद खुल जाती है. हर रात वही खौफनाक सपना.

25 जुलाई, 2016 का दिन था. बारिश हो रही थी. एक कंस्ट्रक्शन साइट पर मोहम्मद रियाज 300 रुपये की अपनी दिहाड़ी पूरी कर चुका था.

मैं, नवीन मंडी से होकर गुजर रहा था. तभी मैंने देखा कि एक बछड़ा एक भीड़ के आगे भागा जा रहा है. अचानक लोगों की एक भीड़ मुझे दबोच लिया. उन लोगों ने मुझे गोशाला के अंदर खींच लिया. उन्होंने मेरे हाथ बांध दिए और तब तक पिटाई की, जब तक मैं बेहोश नहीं हो गया.

अस्पताल में होश आने के बाद पुलिस मुझे जेल ले गई. अपनी चोटों को सहलाते हुए मैंने डेढ़ महीने जेल में गुजारे. जमानत मिलने पर छूटा.

बाहर आने के बाद अपने शरीर से मेरा भरोसा ही उठ गया. मैं ऐसा शख्स हुआ करता था, जो कभी भी कड़ी मेहनत से नहीं डरा. मुझे कोई भी काम दो. मैं इसे पूरा कर दिखाऊंगा चाहे मुझे इसमें कितना भी वक्त लगे.

अब उसके हाथ उसका संकेत नहीं मानते. कभी-कभी तो वह सूरज को देखने की भी हिम्मत नहीं कर पाता. कभी वह चीजें भूलने लगता है. चीजें कहां रखी है,ख्याल नहीं रहता. जल्दी थक जाता है. हरपल चिंता सताती रहती है.

रियाज को अपने सात बच्चों का पेट पालना है. शहर के बाहरी इलाके में बने उसकी झोपड़ी को एक छत चाहिए.यहां एक अच्छे स्टोव की जरूरत है. बच्चो को कपड़े चाहिए. उन्हें पढ़ाना है. उन्हें दवा चाहिए. उसे खुद दवा की जरूरत है. उसकी बीवी हार्ट अटैक के बाद बीमार चल रही है.

खुद को बेकसूर साबित करने के लिए रियाज को हर महीने कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ते हैं.

कुछ दिनों पहले उसके वकील की सड़क हादसे में मौत हो गई.

हमने पूछा कि क्या उसे किसी नए वकील की जरूरत है?

रियाज कहता है, ‘’पता नहीं. अगली सुनवाई में ही आगे की सुनवाई के बारे में पता चलेगा.’’ सुनवाई का सिलसिला चलता रहेगा, जब तक रियाज के वकील यह साबित न कर दें कि शामली की उस दोपहर गाय चुराने की कोशिश उसने नहीं की थी.

रियाज को जेल पहुंचे कुछ दिन हो चुके थे. एक दिन जेल के अधिकारियों ने एक और कैदी को उसके बैरक में ठूंस दिया. वह विवेक प्रेमी था. रियाज कहता है- मैंने उसे देखा. जेल मैं जब तक मैं रहा कभी उसके सामने नहीं पड़ा.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×