2024 के लोकसभा चुनावों (2024 Lok Sabha elections) में चाहे कोई भी जीते, मंगलवार 18 जुलाई को एक ऐतिहासिक तारीख के रूप में याद किया जाएगा. वजह है कि आज 2024 के चुनावों के लिए युद्ध का उद्घोष हो गया.
एक तरफ बेंगलुरु में 26 विपक्षी दल एक साथ आए और INDIA (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस) के गठन की घोषणा की. दूसरी ओर, बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की एक व्यापक बैठक हुई, जिसमें 38 दल उपस्थित थे.
चलिए जानते हैं कि दोनों बैठकों की मुख्य बातें क्या रहीं और 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारी में उनका क्या मतलब है?
1. 'संयुक्त विपक्ष' बीजेपी आलाकमान के दिमाग पर असर कर रहा है
बीजेपी अध्यक्ष जे.पी.नड्डा को इस तथ्य पर जोर देते देखना अस्वाभाविक था कि 38 दल एनडीए की बैठक में भाग ले रहे हैं. अस्वाभाविक क्योंकि विपक्ष को एकजुट करने के प्रयासों के खिलाफ बीजेपी का मुख्य तर्क यह रहा है कि इन सभी दलों को एक व्यक्ति - प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी - का मुकाबला करने के लिए एक साथ आना पड़ रहा है. बीजेपी के नजरिए से यह अब तक एक प्रभावी नैरेटिव रहा है. इसलिए यह देखना अजीब है कि बीजेपी अपने गुट की पार्टियों की संख्या पर जोड़ देकर इस मोर्चे पर विपक्ष से प्रतिस्पर्धा करने की कोशिश कर रही है.
इस 38 में से कई पार्टियों के पास सांसद तक नहीं हैं.
विपक्ष की बैठक का बीजेपी पर असर एक और बात से भी जाहिर हुआ- पीएम मोदी ने मंगलवार को अपने संबोधन के दौरान जिस तरह से उन पर हमला बोला और उन्हें 'भ्रष्ट' और 'परिवारवादी' बताया.
साफ है कि बीजेपी नेतृत्व किसी भी कीमत पर विपक्ष को सुर्खियों में हावी नहीं होने देना चाहता था.
2. संख्याबल बनाम नैरेटिव
अब तक पैटर्न यह रहा है कि विपक्ष का जोर इसी बात पर रहा है कि कितने दल एक साथ आ रहे हैं जबकि बीजेपी मोदी की लोकप्रियता के नैरेटिव को भुनाती है.
लेकिन 18 जुलाई की बैठकों में, भूमिकाएं थोड़ी उलट गईं. बीजेपी अपने नंबरगेम पर काम करने की कोशिश कर रही थी और विपक्ष नैरेटिव को सही करने की कोशिश कर रहा था.
उदाहरण के लिए, बीजेपी उन दो राज्यों - बिहार और महाराष्ट्र - में छोटी पार्टियों को अपने साथ ले आई है, जहां नंबरगेम उसके खिलाफ सबसे ज्यादा है.
बिहार में चिराग पासवान की एलजेपी, जीतन राम मांझी की हिंदुस्तान अवाम मोर्चा और उपेंद्र कुशवाहा की आरएलजेडी एनडीए में शामिल हो गई हैं और बैठक का हिस्सा थीं. महाराष्ट्र में बीजेपी ने एनसीपी से अजित पवार और उनके समर्थकों का समर्थन हासिल कर लिया है.
दूसरी तरफ बेंगलुरु बैठक में विपक्षी दलों को यह एहसास हुआ कि आंकड़ों का खेल ही नहीं, उसके अलावा नैरेटिव भी मायने रखती है.
उदाहरण के लिए, नैरेटिव को 'मोदी बनाम विपक्ष' की जगह 'INDIA बनाम NDA' में बदलने का स्पष्ट प्रयास किया गया है.
ऐसा लगता है कि विपक्ष इस बात को लेकर सावधान है कि विपक्षी दलों ने 1971 के चुनावों में 'इंदिरा हटाओ' नारे के साथ जो गलती की थी, उसे दोबारा न दोहराया जाए. इसका जवाब इंदिरा गांधी के 'गरीबी हटाओ' नारे ने तुरंत दिया था.
वर्तमान विपक्ष अपनी लड़ाई को 'मोदी हटाओ' के बजाय 'भारत को बचाने' के रूप में पेश कर रहा है. दिलचस्प बात यह है कि विपक्ष ने अपने गठबंधन को INDIA - इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस- का नाम देकर पीएम मोदी को उनके ही गेम में चुनौती दी है. इसने मोदी को प्रतिक्रिया देने और एनडीए की नई परिभाषा देने के लिए मजबूर किया. बीजेपी इसे 'भारत' बनाम 'इंडिया' बनाने की भी कोशिश कर सकती है.
विपक्षी पार्टियां समान नागरिक संहिता जैसे विवादास्पद मुद्दों से बचने के लिए भी सावधान थीं, खड़गे ने कहा कि जब कोई प्रस्ताव या मसौदा नहीं आया है तो प्रतिक्रिया देने की कोई आवश्यकता नहीं है.
3. उत्तर प्रदेश में बदलते समीकरण
हालांकि उत्तर प्रदेश में बीजेपी की स्थिति मजबूत है, लेकिन बीजेपी ने ओपी राजभर की एसबीएसपी को एनडीए में शामिल कर लिया है. राजभर विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन का हिस्सा थे.
यह एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है क्योंकि 'INDIA' गठबंधन के निर्माण ने एसपी, कांग्रेस और आरएलडी को एक साथ आने का मौका दिया है.
बेंगलुरु बैठक से आई तस्वीरों में राहुल गांधी और अखिलेश यादव के बीच कुछ सौहार्दपूर्ण संबंध दिखाई दिए. बैठक में आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी भी मौजूद थे.
4. बीजेपी और कांग्रेस, दोनों ने दूसरों को जगह देने की आवश्यकता को स्वीकार किया
ऐसा प्रतीत होता है कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों को यह एहसास है कि उन्हें अन्य दलों के साथ की आवश्यकता हो सकती है.
उदाहरण के लिए, जब पीएम मोदी एनडीए की बैठक के लिए कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे, तो प्रवेश द्वार पर प्रमुख सहयोगी दलों के नेताओं - महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे, नागालैंड के सीएम नेफू रियो, तमिलनाडु के पूर्व सीएम एडप्पादी पलानीसामी और बिहार के पूर्व सीएम जीतन राम मांझी ने उनका स्वागत किया.
मंच पर भी मोदी, नड्डा और पूर्व बीजेपी प्रमुख अमित शाह, नितिन गडकरी और राजनाथ सिंह के साथ रियो, पलानीसामी और शिंदे अग्रिम पंक्ति में मौजूद थे.
ऐसा प्रतीत होता है कि वैचारिक रूप से भिन्न दलों को समायोजित करने और हिंदुत्व को कम करने का प्रयास किया जा रहा है. पीएम मोदी ने अपने संबोधन दावा किया है कि एनडीए महात्मा गांधी, बाबासाहेब अंबेडकर और राम मनोहर लोहिया द्वारा बताए गए रास्ते पर चल रहा है.
दूसरी तरफ बेंगलुरु बैठक में, उन दो विपक्षी दलों को काफी प्रमुखता दी गई, जिनका कांग्रेस के साथ समीकरण सबसे ज्यादा खराब रहा है - तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी. उद्धव ठाकरे के अलावा ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल ही केवल ऐसे दो गैर-कांग्रेसी नेता थे, जिन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपनी बात रखी.
यह कांग्रेस की ओर से एक महत्वपूर्ण इशारा है और गठबंधन को सफल बनाने की पार्टी की इच्छा को दर्शाता है. जानकारी के अनुसार कर्नाटक कांग्रेस प्रमुख डीके शिवकुमार ने यह सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त प्रयास किए हैं कि सभी दलों के नेता सहज हों और उनके साथ उचित सम्मान के साथ व्यवहार किया जाए. केजरीवाल और बनर्जी दोनों ने कर्नाटक कांग्रेस को उनके अतिथि सत्कार के लिए धन्यवाद दिया.
बेशक, बीजेपी और कांग्रेस के बीच दूसरी पार्टियों को जगह देने के मोर्चे पर तुलना नहीं की जा सकती. एनडीए अभी भी 'INDIA' के विपरीत एक दलीय वर्चस्व वाला गठबंधन है, जहां गैर-कांग्रेसी दलों की अच्छी-खासी ताकत है.
यह दोनों बैठकों से आई तस्वीरों में भी स्पष्ट था. एनडीए की बैठक के फ्लेक्स में जहां मोदी की तस्वीर बड़ी थी, वहीं विपक्ष की बैठक के फ्लेक्स का फोकस 'यूनाइटेड वी स्टैंड' के नारे पर था.
5. आगे क्या है?
ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों पक्षों के मन में कोई न कोई रोडमैप है. बीजेपी पीएम मोदी की व्यक्तिगत लोकप्रियता और 'उपलब्धियों' को जोर-शोर से दिखाना जारी रखेगी. साथ ही अगर तेज नहीं भी तो, एनडीए का विस्तार जारी रहने की संभावना है.
फोकस इस बात पर होगा कि क्या बीजेपी आंध्र प्रदेश में तेलुगु देशम पार्टी को अपने साथ लाती है या नहीं. यह दोधारी तलवार है. हालांकि इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह एनडीए को राज्य में एक प्रमुख खिलाड़ी बना देगा, लेकिन ऐसा करना संभावित रूप से राज्य में सत्तारूढ़ वाईएसआरसीपी को गैर-एनडीए मोर्चे की ओर धकेल सकता है.
कुछ ऐसा ही शिरोमणि अकाली दल का भी मामला है. दोनों पार्टियों के बीच कुछ हद तक संबंध अच्छे हैं और गठबंधन से लोकसभा चुनाव में पंजाब की कुछ सीटों पर विवाद हो सकता है. हालांकि, दोनों पार्टियों के बीच वोट ट्रांसफर को लेकर बड़ी चिंताएं हैं क्योंकि एक पार्टी के कई प्रमुख समर्थक दूसरी पार्टी को बिल्कुल पसंद नहीं करते हैं.
विपक्ष का अगला कदम 11 सदस्यीय समन्वय समिति/ को-ऑर्डिनेशन कमिटी का गठन होगा जिसकी घोषणा मंगलवार को की गई. इसमें कांग्रेस, टीएमसी, समाजवादी पार्टी, आप, जेडी-यू, राजद, डीएमके, एनसीपी, शिव सेना यूबीटी और वाम दलों जैसे शीर्ष दलों के वरिष्ठ प्रतिनिधियों के शामिल होने की संभावना है. यह संभव है कि कांग्रेस और सीपीआई-एम के प्रतिनिधि अपने-अपने छोटे और पुराने सहयोगियों की ओर से कार्य कर सकते हैं.
मुंबई में होने वाली अगली बैठक के अलावा विपक्षी दलों द्वारा कई विरोध प्रदर्शन या रैलियां होने की भी संभावना है, जहां न्यूनतम साझा कार्यक्रम/कॉमन मिनिमम प्रोग्राम जैसे मुद्दे उठने की संभावना है.
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