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झारखंड में हार का साइड इफेक्ट,BJP तय नहीं कर पाई विधानमंडल का नेता

झारखंड में बीजेपी की प्रदेश इकाई में हार का साइड इफेक्ट दिखने लगा है.

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झारखंड विधानसभा चुनाव में पूर्व सीएम रघुवर दास 'अब की बार 65 पार का नारा लगा रहे थे लेकिन पार्टी चुनाव में महज 25 सीटों पर सिमट कर रह गई. चुनाव परिणाम का असर अब प्रदेश में दिखने लगा है. इसका पता इस बात से लगता है कि झारखंड विधासभा का सत्र शुरू हो चुका है और बीजेपी जो अब विपक्ष में बैठी है वह विधानमंडल का नेता तक नहीं चुन पाई है.

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झारखंड विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया है. ये सत्र 6 से 8 जनवरी तक चलेगा. सत्र का दो दिन निकल चुका है लेकिन बीजेपी अभी तक विधायक दल का नेता नहीं चुन पाई है.

बीजेपी में दिखने लगा है हार का साइड इफेक्ट

झारखंड में बीजेपी की प्रदेश इकाई में हार का साइड इफेक्ट दिखने लगा है. बीजेपी प्रदेश में दूसरी बड़ी पार्टी है लेकिन सदन में विवश दिख रही है. ऐसा कोई भी चेहरा अब तक नहीं सामने दिख रहा है जो सदन में पार्टी का नेतृत्व कर सके. ऐसे में पार्टी पूरी तरह से आलाकमान के आदेश के इंतजार में है.

बीजेपी में नहीं दिख रहा है दिग्गज चेहरा

झारखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी के कई दिग्गज नेताओं की हार हुई है, जिसमें सबसे पहला नाम रघुवर दास का है जो प्रदेश के सीएम थे. वह अपनी पारंपरिक सीट तक नहीं बचा पाए हैं. वहीं, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ, पूर्व स्पीकर दिनेश उरांव भी चुनाव हार गए है. ऐसे में बीजेपी के लिए सदन में परेशानी बढ़ने वाली है.

खरमास के बाद बीजेपी चुनेगी विधानमंडल नेता

नई सरकार बनने के बाद झारखंड विधानसभा का विशेष सत्र शुरू हो चुका है, विधायकों का शपथ ग्रहण के साथ रवींद्रनाथ महतो को विधानसभा अध्यक्ष चुना गया है, लेकिन बीजेपी विधानमंडल नेता चुनने के लिए तैयार नहीं है.

बीजेपी ने विधानमंडल का नेता चुनने की बात को टालते हुए कहा है कि अभी खरमास चल रहा है, ये काम खरमास समाप्त होने के बाद किया जाएगा. 

कौन संभाल सकता है प्रदेश में बीजेपी की कमान?

प्रदेश में पार्टी को संभालने के लिए कोई बड़ा चेहरा नहीं दिख रहा है. हालांकि, इसमें अर्जुन मुंडा का नाम हो सकता है, ऐसी चर्चा की जा रही है कि अर्जुन मुंडा की सक्रियता पार्टी में बढ़ गई है. मुंडा के अलावा सीपी सिंह जो रांची से विधायक हैं वह भी इस रेस में हो सकते हैं. लेकिन इसका फैसला शायद राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के बाद ही होगा. ऐसे में प्रदेश इकाई और कमजोर हो सकती है.

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