झारखंड की राजनीति में एक बार फिर राज्यपाल रमेश बैस ने अपने बयान से हलचल मचा दी है. यह हलचल उन्होंने बीते 27 अक्टूबर को रायपुर में मीडिया को दिए बयान से पैदा कर दिया है. सीएम हेमंत सोरेन के खनीज लीज मामले (ऑफिस ऑफ प्रॉफिट) मामले में कहा है कि वह हेमंत सोरेन की विधायकी पर फैसला देने से पहले सेकेंड ओपिनियन ले रहे हैं.
यहां तक तो ठीक था. लेकिन अगली लाइन में उन्होंने यह जोड़ दिया कि, 'दिल्ली में पटाखे पर प्रतिबंध है, झारखंड में नहीं. हो सके एकाध एटम बम यहां फट जाए.'
रमेश बैस के इस बयान के बाद त्योहारी मौसम पर पूरी तरह राजनीति हावी हो चुकी है. अपने ननिहाल चांडिल में सोहराई पर्व बना रहे सीएम हेमंत सोरेन ने कहा कि लिफाफे को बंद रहने दीजिए, त्योहार मनाइए.
सीएम हेमंत सोरेन ने भले ही हल्के अंदाज में राज्यपाल के बायन पर प्रतिक्रिया दी हो, लेकिन उनकी पार्टी के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने सीधे राज्यपाल को निशाने पर लिया.
राज्यपाल के लिए लाट साहब शब्द का प्रयोग करते हुए कहा कि, "लाट साहब फिलहाल रायपुर पहुंचे हैं. वहां से नागपुर नजदीक है. लेकिन यह (झारखंड) हीरानागपुर है. यहां हीरा के साथ-साथ यूरेनियम भी है. यूरेनियम से न्यूक्लियर बम भी बनता है. राज्यपाल डराने का काम न करें. वह पहले ओपिनियन पर ही कंफ्यूज हैं. अब सेकेंड ओपिनियन ले रहे हैं, तीसरा और चौथा ओपिनियन भी ले लें. यहां जनता का ओपिनियन चलता है, वह हेमंत सोरेन को मिल चुका है."
मामला क्या है?
बता दें कि सीएम हेमंत सोरेन पर आरोप है कि उन्होंने पद पर रहते हुए खनन का पट्टा अपने नाम पर ले लिया. इसकी शिकायत बीजेपी के नेता बाबूलाल मरांडी और रघुवर दास ने राज्यपाल से की थी. जिसके बाद यह मामला केंद्रीय चुनाव आयोग के पास पहुंचा. केंद्रीय चुनाव आयोग ने अपना मत बंद लिफाफे में झारखंड के राज्यपाल को भेज दिया है. चिट्ठी आए हुए तीन महीना बीत चुका है. लेकिन राज्यपाल ने अब तक इसपर अपना फैसला नहीं सुनाया है. उनके फैसले से ही तय होगा कि सीएम हेमंत सोरेन की विधायकी जाएगी या बचेगी.
शुरू हो चुका वार-पलटवार
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने क्विंट से कहा कि राज्यपाल का बम डिफ्यूज हो चुका है. राज्य में बहुमत की सरकार है, वह किसी बम से डरनेवाली नहीं है.
उन्होंने आगे कहा कि, राज्यपाल किसी दल के नहीं होते हैं. वह संवैधानिक पद है. लेकिन रमेश बैस बीजेपी के नेता की तरह बयान दे रहे हैं. इससे साफ है कि वह बीजेपी के लिए काम कर रहे हैं. बयान देने से पहले उन्हें बताना चाहिए कि पहले ओपिनियन का क्या हुआ.
वहीं, बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद दीपक प्रकाश ने कहा कि, "जो सरकार जनता के पैसे के रायपुर के पांच सितारा होटल में जाकर ठहरती है. चाटर्ड प्लेन के किराए के लिए बकायदा कैबिनेट से बिल पास करवाती है. वह क्या बम डिफ्यूज की बात करेगी. साफ है अपनी गलतियों की वजह से यह सरकार डरी-सहमी है."
उन्होंने आगे कहा कि, "राज्यपाल एक संवैधानिक पद है, उन्होंने क्या कहा, इसपर टिप्पणी नहीं करेंगे. लेकिन इतना जान लीजिए कि कानून के हाथ लंबे होते हैं. इस सरकार ने आर्थिक अपराध की सीमाएं लांघ दी है. इसकी सजा जरूर मिलेगी. इस सकार ने जनता की आंखों में धूल झोंकने का काम किया है."
कानून के जानकार क्या कहते हैं?
झारखंड हाईकोर्ट के सीनियर लॉयर ए अल्लाम ने क्विंट को बताया कि ये बात सही है कि राज्यपाल को अपना मत बताने के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की गई है. वह कभी भी फैसला सुनाने या उसे रोक कर रखने के लिए स्वतंत्र हैं. आयोग के मत में दो ही बात हो सकती है अगर सीएम दोषी पाए जाते हैं तो उन्हें हटाकर किसी और को सीएम बनाया जा सकता है. अगर दोषी नहीं हैं तो वह इस सरकार का नेतृत्व कर सकते हैं.
जहां तक बात आरटीआई से माध्यम से इस फैसले को जानने की है, तो यह आरटीआई के माध्यम से हासिल किया जा सकता है. यह ओपन सीक्रेट है. इसे बात ही देना चाहिए.
लेकिन एक चुनाव आयोग ने इससे इतर अपना मत दिया है. बोकारो जिले के निवासी हेमंत कुमार महतो ने आरटीआई फाइल कर खनन लीज मामले में चुनाव आयोग से हेमंत सोरेन को लेकर दिए गए फैसले की जानकारी मांगी थी. जवाब में केंद्रीय चुनाव आयोग ने कहा है कि, मांगी गई जानकारी और दस्तावेज को सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 8(1) (ड़) और 8(1) ज के तहत बताने से छूट दी गई है. यदि आप आयोग के जवाब से संतुष्ट नहीं हैं तो प्रथम अपील इस पत्र की प्राप्ति के 30 दिनों के भीतर की जा सकती है.
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर राज्यपाल किस वजह से अपना मत हेमंत सोरेन को नहीं बता रहे हैं. फैसले को लटका कर रखने में किसका हित सध रहा है.
वरिष्ठ पत्रकार रवि प्रकाश कहते हैं, पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल धनकड़ के बतौर राज्यपाल तौर-तरीकों का एक्सटेंशन है झारखंड के राज्यपाल की तरफ से इस तरह के बयान का आना.
राज्यपाल संविधान के कस्टोडियन होते हैं. सबको लगना चाहिए कि तो मेरे राज्यपाल हैं. लेकिन झारखंड में फिलहाल ऐसा दिख नहीं रहा है, जो कि हास्यास्पद है. वो किसी राजनीतिक दल के प्रवक्ता की तरह पहले तो बयान देते हैं कि लिफाफा इतना जोर से चिपका है कि खुल नहीं रहा है. फिर कहते हैं एटम बम फट सकता है. यह ट्रोल की भाषा है, किसी राज्यपाल की नहीं.
हां इसमें कुछ भी अजीब नहीं है कि उन्हें कुछ चीजों को लेकर सेकेंड ओपिनियन लेने की जरूरत महसूस हुई होगी, तो वह ले रहे हैं.
जहां तक बात इस पूरे प्रकरण में फायदे की है, जाहिर है इसमें बीजेपी को फायदा पहुंचा रहे हैं. बीजेपी पर आरोप लग चुका है कि वह सत्ता पक्ष के विधायकों को खरीदने का प्रयास कर रही है. तीन विधायक इसी सिलसिले में गिरफ्तार भी हुए थे. उनपर बंगाल और झारखंड में मुकदमा भी चल रहा है.
वो आगे कहते हैं, "कोई वकील कोर्ट में अपने मुवक्किल को बचाने या फिर बचाने के लिए समय लेने के लिए कई जतन करता है. यहां भी राज्यपाल बीजेपी के लिए टाइम बाई कर रहे हैं. इसका बेनिफिट जेएमएम को तो नहीं होगा न."
जबकि सितंबर माह में यूपीए के प्रतिनिधिमंडल को कह चुके थे कि दो, तीन दिन में अपना फैसला बता देंगे. अगर राज्यपाल ने ऐसा नहीं कहा था तो यूपीए के नेताओं की तरफ से दिए गए इस बयान का खंडन करना चाहिए था. लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया है.
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