बिहार चुनाव नतीजों में बीजेपी, एनडीए में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. हालांकि प्रधानमंत्री मोदी भी साफ कर चुके हैं कि प्रदेश में सरकार का चेहरा नीतीश कुमार ही होंगे. लेकिन उपमुख्यमंत्री पद को लेकर अब कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. यहां हम उन चुनिंदा नेताओं की बात कर रहे हैं, जिन्हें उपमुख्यमंत्री पद की रेस में बताया जा रहा है.
सुशील मोदी- रेस में सबसे आगे!
बिहार बीजेपी का चेहरा माने जाते हैं सुशील मोदी. उनका उपमुख्यमंत्री पद पर इस बार भी दावा सबसे ज्यादा मजबूत है. लेकिन कहा ये भी जा रहा है कि इस बार ‘सुमो’ को नई जिम्मेदारी देकर किसी दूसरे नेता को डिप्टी सीएम के पद पर बैठाया जा सकता है.
सुशील मोदी शुक्रवार की शाम को दिल्ली भी पहुंचे थे. वहां उन्होंने नई सरकार के गठन और संभावित मंत्रियों के नाम पर राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह और बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव से मुलाकात की.
सुशील मोदी के राजनीतिक जीवन की बात करें तो पटना यूनिवर्सिटी में वो छात्र राजनीति में दाखिल हुए. वो 1973 में वहां के छात्रसंघ के जनरल सेक्रेटरी थे. उस वक्त छात्रसंघ के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव हुआ करते थे. इसके बाद वे 1974 में बिहार प्रदेश छात्र संघर्ष समिति का हिस्सा बन गए, जिसने प्रदेश में 1974 का मशूहर छात्र आंदोलन चलाया.
इमरजेंसी के दौरान मोदी 19 महीने के लिए जेल भी गए. 1977 से 1986 तक उन्होंने कई पदों पर काम किया. 1990 के चुनावों में कुम्हरार विधानसभा से सुशील मोदी पहली बार विधायक चुने गए. 1995 और 2000 में वे फिर चुनाव जीते. 1996 से लेकर सन् 2004 तक वे बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे. 2004 में वे भागलपुर से लोकसभा चुनाव जीते.
नीतीश कुमार की पहली सरकार में मोदी को वित्तमंत्रालय का प्रभार दिया गया और उन्हें पहली बार उपमुख्यमंत्री बनाया गया.
कामेश्वर चौपाल- मंदिर आंदोलन में बड़ा दलित चेहरा
कई मीडिया रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि दलित नेता कामेश्वर चौपाल सुशील मोदी की जगह ले सकते हैं, जिन्हें पार्टी में कोई दूसरी जिम्मेदारी दी जा सकती है. कामेश्वर चौपाल का संघ से गहरा नाता है और वे राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य भी हैं. उन्होंने 1989 में अयोध्या में राम जन्मभूमि पर शिलान्यास पत्थर रखा था.
चौपाल फिलहाल विधानपरिषद के सदस्य हैं. बड़ी बात यह है कि उन्होंने कभी चुनाव नहीं जीता.
1991 में कामेश्वर चौपाल ने रोसेरा लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था, जिनमें उनकी हार हुई थी. इसमें वे रामविलास पासवान के खिलाफ खड़े हुए थे. 1995 में वे बेगूसराय जिले की बाखरी सीट से खड़े हुए, लेकिन तब भी उनकी हार हुई.
2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उन्हें सुपौल में पप्पू यादव की पत्नी रंजीत रंजन के खिलाफ खड़ा किया, लेकिन इस चुनाव में भी उनकी हार हुई.
जीतनराम मांझी: क्या इकरार में बदल जाएगा इनकार?
वैसे तो जीतनराम मांझी साफ कर चुके हैं कि वे मंत्री पद स्वीकार नहीं करेंगे. लेकिन फिर भी वे एनडीए के सहयोगियों में शामिल बड़े नेताओं में से एक हैं. उनकी पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा ने चार विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की है.
खुद मांझी ने इमामगंज से चुनाव जीता है. बता दें 2014 में लोकसभा चुनावों में जेडीयू के खराब प्रदर्शन की जिम्मेदारी लेते हुए नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. उसके बाद मांझी को मुख्यमंत्री बनाया गया था. लेकिन बाद में जब नीतीश ने वापस अपना पद मांगा, तो मांझी ने इंकार कर दिया. हालांकि बाद में दबाव के चलते उन्हें झुकना पड़ा.
बता दें 15 नवंबर को बिहार में एनडीए की एक अहम बैठक होने वाली है. इसमें उनका नेता चुना जाना है.
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