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Lok Sabha Election: करनाल में खट्टर के लिए क्या चुनौती? कांग्रेस के बुद्धिराजा दे पाएंगे टक्कर?

Karnal Hot Seat: करनाल लोकसभा में कुल 9 विधानसभा सीटें हैं, जिसमें से छह पर भारतीय जनता पार्टी के विधायक हैं.

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लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024) में भारतीय जनता पार्टी ने कई पूर्व मुख्यमंत्रियों को मैदान में उतारा है. इसमें से एक हैं हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, जिनकी जगह कुछ महीने पहले ही पार्टी ने नायब सिंह सैनी को प्रदेश की कमान सौंपी है. खट्टर को बीजेपी ने करनाल लोकसभा सीट से मैदान में उतारा है, जहां उनका मुकाबला कांग्रेस नेता दिव्यांशु बुद्धिराजा से है.

ऐसे में आइये जानते हैं कि क्या है करनाल सीट का सियासी समीकरण? यहां किसके लिए चुनौती? और कौन हैं दिव्यांशु बुद्धिराजा?

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करनाल सीट का क्या है सियासी समीकरण?

करनाल लोकसभा क्षेत्र में कुल नौ विधानसभा की सीट शामिल हैं. इनमें इंद्री, करनाल, घरौंदा, पानीपत ग्रामीण और पानीपत शहर पर बीजेपी का कब्जा है, जबकि असंध, इसराना (सुरक्षित) और समालखा में कांग्रेस के विधायक हैं. नीलोखेड़ी (एससी) सीट पर निर्दलीय का कब्जा है.

ये नौ सीट, दो जिले- करनाल और पानीपत- में आती हैं, जिसमें से नीलोखेड़ी, इंद्री, करनाल, घरौंदा और असंध करनाल में हैं, जबकि पानीपत ग्रामीण, पानीपत शहर, इसराना और समालखा पानीपत में आते हैं.

करनाल के राजनीतिक इतिहास को देखें तो, साल 1952 से लेकर अब तक यहां 18 बार लोकसभा का चुनाव हुआ है. इसमें कांग्रेस ने 11 बार (1952, 1957, 1967, 1971, 1980, 1984, 1989, 1991, 1998, 2004 और 2009) जीत हासिल की है. जबकि बीजेपी ने पांच बार (1962-भारतीय जनसंघ, ​​और 1996, 1999, 2014 और 2019 में बीजेपी) जीता है.

चिरंजी लाल शर्मा और भजन लाल सहित वरिष्ठ कांग्रेस नेता पहले करनाल लोकसभा सीट से जीत चुके हैं. बीजेपी के लिए ईश्वर दयाल स्वामी, जो तीसरे अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में गृह राज्य मंत्री भी रहे, ने करनाल से दो बार जीत हासिल की, जिसमें 1999 में भी शामिल है जब उन्होंने हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भजन लाल को हराया था.

वहीं, 2014 और 2019 में बीजेपी के उम्मीदवारों को अब तक का सबसे अधिक मतदान प्रतिशत मिला. 2014 में, बीजेपी के तत्कालीन उम्मीदवार अश्विनी कुमार चोपड़ा ने तत्कालीन कांग्रेस के उम्मीदवार अरविंद शर्मा को हराकर कुल मतदान का 49.84 प्रतिशत वोट हासिल किया था. जबकि शर्मा को कुल मतदान का 19.66 प्रतिशत वोट मिला.

2019 में, बीजेपी के संजय भाटिया को कांग्रेस के कुलदीप शर्मा के खिलाफ 70.08 प्रतिशत वोट मिले, और उन्होंने 6 लाख से अधिक वोटों के भारी अंतर से जीत हासिल की थी. जबकि कुलदीप शर्मा 19.64 प्रतिशत वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे.

संजय भाटिया 2019 के लोकसभा चुनाव में देश में सर्वाधिक मतों से जीत दर्ज करने वाले दूसरे सांसद भी थे. यानी कुल मिलाकर देखें तो करनाल में बीजेपी को बढ़त है, क्योंकि 6 विधानसभा सीटों पर पार्टी के विधायक हैं और ये सीट बीजेपी के लिए 10 सालों से गढ़ बनी हुई है. ऐसे में ये पार्टी की राज्य में सबसे सुरक्षित सीट भी मानी जा रही है.

करनाल में किसके लिए चुनौती?

करनाल में मुख्य मुकाबला "ओल्ड बनाम यंग" के बीच है. 70 वर्षीय मनोहर लाल खट्टर के पास संगठन में काम करने के अलावा दस साल तक हरियाणा के मुख्यमंत्री के तौर पर काम करने का अनुभव है. उन्हें चुनाव कैसे लड़ा और लड़ाया जाता है, ये दोनों अच्छे से आता है. उनके पास अपना दस सालों का रिपोर्ट कार्ड है, जिसके जरिए वो वोट मांग सकते हैं.

लेकिन 10 सालों तक सीएम और करनाल सीट से विधायक के तौर पर उनके लिए एंटी इनकम्बेंसी भी हैं, जिसका उन्हें प्रचार के दौरान सामना करना पड़ा है. ऐसे में खट्टर खुद अपने लिए चुनौती बन गए हैं.

बीजेपी के लिए सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली सीट पर भी खट्टर को हर क्षेत्र में जाकर प्रचार करना पड़ रहा हैं. वो जनसभा, नुक्कड़ सभा, रैली , रोड शो और डोर-टू-डोर जाकर वोट मांग रहे हैं लेकिन अपने काम की बजाए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर.
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ऐसे में साफ है कि खट्टर भी समझ रहे हैं कि अगर एंटी इनकम्बेंसी का असर होना होगा तो भी लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर एकजुट हो जाएंगे.

खट्टर के लिए सबसे बड़ी चुनौती खुद अपनी सीट निकालना तो है ही, साथ ही करनाल विधानसभा सीट , जहां से वो विधायक हैं, के लिए हो रहे उपचुनाव में राज्य के सीएम नायब सिंह सैनी को जीत सुनिश्चित करना भी है,

खट्टर और सैनी के चुनाव का असर राज्य में इस साल अक्तूबर में होने वाले विधानसभा चुनाव पर भी पड़ेगा.

वहीं, खट्टर के मुकाबले 31 साल के कांग्रेस नेता दिव्यांशु बुद्धिराजा अभी युवा हैं. वो छात्र राजनीति से निकले हैं और कांग्रेस के यूथ विंग से आते हैं. उनके पास युवाओं के बीच जगह बनाने का मौका है लेकिन उनका अपना कोई रिपोर्ट कार्ड नहीं है. उनका राजनीतिक अनुभव भी कम है और दूसरा वो राज्य में पार्टी के अंतर्कलह से भी जूझ रहे हैं. बुद्धिराजा के सामने दस साल बाद कांग्रेस की अपने गढ़ में वापसी कराने की भी चुनौती है. हालांकि, उन्हें एंटी इनकम्बेंसी का फायदा मिल सकता है. लेकिन उनकी राह खट्टर के सामने आसान नहीं होगी.

इनके सबके बावजूद तीन चीजें खट्टर और बुद्धिराजा के लिए समाना है, पहला, दोनों संगठन से आए हैं, दूसरा दोनों पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं और तीसरा दोनों एक-दूसरे से अपरिचित नहीं हैं.

दरअसल, दिव्यांशु बुद्धिराजा कई बार खट्टर के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर चुके हैं, जिसके लिए उन पर कई मुकदमे भी हैं. ऐसे में दोनों एक-दूसरे से परिचित हैं.
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जातीय समीकरण सेट करने में जुटी बीजेपी-कांग्रेस

करनाल में जातीय समीकरण की बात करें तो यहां सबसे ज्यादा वोट पंजाबियों के हैं. इस बिरादरी के दो लाख से ज्यादा वोट हैं. दूसरे नंबर पर जाट हैं, जो करीब दो लाख हैं. तीसरे नंबर पर ब्राह्मण हैं और इनकी संख्या करीब डेढ़ लाख है. चौथे नंबर पर रोड बिरादरी के मतदाता हैं, जो 1.20 लाख के करीब हैं. इसके बाद जाट सिख करीब 92 हजार, राजपूत करीब 80 हजार और महाजन 75 हजार से ज्यादा हैं.

ऐसे में बीजेपी और कांग्रेस दोनों जातीय समीकरण को सेट करने में जुटे हैं. दोनों की निगाह पंजाबी वोटर्स पर हैं, इसलिए दोनों दलों ने पंजाबी समाज से आने वाले मनोहर लाल खट्टर और दिव्यांशु बुद्धिराजा को प्रत्याशी बनाया है.

पिछले दो लोकसभा चुनाव के नतीजों को देखें तो यहां पंजाबी समुदाय के उम्मीदवार ने ही जीत हासिल की है.

हरियाणा की करनाल सहित सभी लोकसभा सीटों पर 25 मई को मतदान है.

कौन हैं दिव्यांशु बुद्धिराजा?

दिव्यांशु बुद्धिराजा यूथ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं. जो पहले पंजाब यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं और एनएसयूआई के नेता भी रहे हैं. छात्र संगठन में वो काफी लोकप्रिय युवा नेता रहे हैं.

जानकारी के अनुसार, बुद्धिराजा दीपेंद्र हुड्डा और राहुल गांधी के काफी नजदीकी हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि इसी के चलते उनको कांग्रेस ने करनाल लोकसभा से प्रत्याशी बनाया है. दिव्यांशु बुद्धिराजा मूल रूप से गन्नौर के रहने वाले हैं. फिलहाल वो करनाल में रह रहे हैं.

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