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'ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम' गाने वाले देश के हिंदू मेलों में मुसलमानों पर बैन क्यों?

कर्नाटक में कई मंदिरों के बाहर पोस्टर लगे हैं कि हिंदुओं मेले में मुसलमानों को दुकान लगाने की इजाजात नहीं है.

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जिस देश में ईद हिंदुओं के बिना नहीं होती, जहां दिवाली मुस्लिम दोस्तों के बिन फीकी लगती है, जहां लोग एक दूसरे के त्यौहारों में शरीक होकर खुशियां बढ़ाते हैं, जहां मुस्लिम बुनकरों की बनाई बनारसी साड़ी पहन पूजा पाठ होता है, यूपी के कई इलाकों में हिंदू ताजिया बनाते हैं तो मुहर्रम होता है. जहां महाउपनिषद से लेकर भागवत पुराण में लिखा है- 'वसुधैव कुटुम्बकम्.' जिसका जिक्र देश की संसद की दीवारों पर भी है. यानी की पूरा संसार परिवार, उसी देश के एक राज्य कर्नाटक (Karnataka) में कहा जा रहा है कि हिंदुओं के धार्मिक मेले या जात्रा में मुसलमानों को दुकान नहीं लगाने देंगे.

कर्नाटक में कई मंदिरों के बाहर पोस्टर लगाए गए हैं कि मंदिरों और हिंदू मेले में मुस्लिम व्यापारियों की व्यापार करने की इजाजत नहीं है. जिस कर्नाटक के उडुपी में होसा मारगुडी मंदिर में हर साल होने वाले पारंपरिक मेले में स्टॉल लगाने को लेकर हिंदू-मुस्लिम में कभी भी भेदभाव नहीं किया गया वहां अब मुस्लिम व्यापारियों के दुकान लगाने पर प्रतिबंध लगाने की बात कही गई है.

और इस फरमान को सत्तारूढ़ BJP का समर्थन भी है. अब सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास की बात करने वाले अगर धर्म के आधार पर लोगों को बांटेंगे तो हम पूछेगें जनाब ऐसे कैसे?

हिजाब विवाद

कॉलेज में लड़कियों के हिजाब पहनने को लेकर उठे विवाद के बाद अब तटीय कर्नाटक क्षेत्र में मंदिरों के आस-पास कुछ बैनर्स दिखाई दिए हैं, जिनपर लिखा है कि मंदिरों के वार्षिक मेले में मुसलमान दुकान नहीं लगा सकते. मेंगलुरू के बप्पनाडु श्री दुर्गापरमेश्वरी मंदिर के बाहर लगे एक पोस्टर पर लिखा है, ‘हिंदू जागरूक हो गए हैं.’ कन्नड़ भाषा में पोस्टर में लिखा है,

‘हम ऐसे लोगों के साथ बिजनेस नहीं करेंगे, जो इस जमीन के क़ानूनों और संविधान का सम्मान नहीं करते, जो उस मवेशी को काटते हैं जिसकी हम पूजा करते हैं. हम उन्हें यहां भी अपना बिजनेस स्थापित करने नहीं देंगे.’

कर्नाटक में ये अकेला मामला नहीं है, कर्नाटक के ‘होसा मारी गुड़ी मंदिर’, उडुपी जिले में कोल्लूर मूकाम्बिका मंदिर मेला, मंगलादेवी मंदिर और पुत्तूर महालिंगेश्वर मंदिर से भी ऐसी ही बैन की ख़बरें आई हैं. कहा गया कि राइट विंग ग्रुप के दबाव में ये सब हो रहा है. लेकिन अब राइट विंग को राइट बताने में कर्नाटक की सरकार लग गई है.

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जब ये मामला कर्नाटक विधानसभा पहुंचा तो बीजेपी नेता और मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई सरकार ने हाथ खड़े कर दिए. राज्य के कानून और शिक्षा मंत्री ने और मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा कि अगर प्रतिबंध कानूनी है तो सरकार हस्तक्षेप नहीं कर सकती. ठीक है आप हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं, लेकिन कई जगहों पर जब मंदिर प्रशासन कह रहा है कि हमने पोस्टर नहीं लगाए तो फिर पुलिस ऐसे पोस्टर लगाने वालों को क्यों नहीं पकड़ती है? कौन लोग हैं जो समाज को बाँटने की कोशिश कर रहे हैं? क्या ये लॉ एंड ऑर्डर का मामला नहीं है?

राज्य के कानून मंत्री जेसी मधुस्वामी ने कहा कि 2001 में पारित Hindu Religious Institutions And Charitable Endowments Act (हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम) के मुताबिक, हिंदू धार्मिक संस्थान की जगह को दूसरे धर्म के व्यक्ति को पट्टे पर देना प्रतिबंधित है. हालांकि उन्होंने कहा कि “अगर मुस्लिम व्यापारियों पर प्रतिबंध लगाने की ये घटनाएं धार्मिक संस्थानों के परिसर के बाहर हुई हैं, तो हम उन्हें सुधारेंगे.

एक्शन का रिएक्शन?

लेकिन अब आता है एक्शन का रिएक्शन वाला तर्क. विधानसभा के बाहर, शिक्षा मंत्री बीसी नागेश ने एक नया तर्क दिया. उन्होंने कहा ‘ये एक्शन का रिएक्शन है’ उनका इशारा मुस्लिम लड़कियों के स्कूल-कॉलेज में हिजाब पहनने को लेकर हाई कोर्ट के फैसले के विरोध में मुसलमानों द्वारा बुलाए गए बंद से है. कर्नाटक हाईकोर्ट ने शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध को बरकरार रखा, जिसके बाद बहुत से मुसलमानों ने इसका विरोध किया और राज्य भरमें एक दिन के बंद का आह्वान किया था.

नागेश कहते हैं,

"हमेशा किसी भी चीज के लिए रिएक्शन होता है. विज्ञान के लोग जानते हैं कि एक्शन और रिएक्शन equal and opposite हैं.”

शिक्षा मंत्री को इस बात का शायद ज्ञान नहीं है कि हिजाब न ही हिंदू धर्म का इंटरनल मैटर है न ही हिंदू धर्म का अपमान. शायद ही दुनिया में कहीं ऐसा हुआ होगा कि अपनी सरकार, अपने कोर्ट से कोई अपनी मांग रख रहा हो और दिक्कत किसी और को होने लगे. मतलब अगर कल को किसी सरकारी कर्मचारी का पेंशन रुक जाए और वो धरना दे तो क्या बेरोजगार या प्राइवेट नौकरी करने वाले धरना करने वाले के विरोध में आ जाएंगे? और कहेंगे कि एक्शन का रिएक्शन है? या बेरोजगार कहेंगे कि हमारे पास सरकारी नौकरी नहीं है और तुम पेंशन मांग रहे हो? किस बात का रिएक्शन? हर किसी की अपनी मांग है अपनी जरूरत है.

आज बीजेपी के नेता नियम का हवाला दे रहे हैं लेकिन कर्नाटक के शिवमोग्गा में मंदिर में कई सालों से मुस्लिम और ईसाई हिंदू त्योहार में हिस्सा ले रहे थे. बीजेपी कह रही है कि ये नियम कांग्रेस की सरकार के समय में 2001 में ही बन गया था. अगर कानून बन गया था तो फिर ये बवाल अब क्यों हो रहा है? इन 20 सालों में कई बार बीजेपी की सरकार बनी, फिर क्यों नहीं नियम लागू हुए? नॉन हिंदू इतने सालों से अगर मेले में या मंदिरों के परिसर में अवैध तरीक़े के व्यापार कर रहे थे तो सरकार ने पुलिस ने उन्हें क्यों नहीं रोका? या फिर मामला कुछ और है?

कर्नाटक में अगले साल चुनाव होने हैं, और ऐसे भी इस देश में अब विकास से ज्यादा धर्म वाला मॉडल हिट होता है. तो क्या मंदिर, मुसलमान, हिजाब विवाद इसी मॉडल की कामयाबी की सीढ़ी है?
जिस देश में मलिक मोहम्मद जायसी पद्मावत लिखते हैं और जहां अमीर खुसरो कृष्ण के भजन गाते हैं और जहां सैय्यद इब्राहिम आकर कान्हा के रसखान हो जाते हैं, जो देश संत कबीर का है, जहां महात्मा गांधी सिखा गए हैं ईश्वर अल्ला तेरो नाम... वहां तीज त्यौहारों को सियासत के लिए हिंदू मुस्लिम में बाटेंगे तो हम पूछेंगे जनाब ऐसे कैसे?

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