कर्नाटक में कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली जेडीएस-कांग्रेस सरकार संकट में है. कांग्रेस के आठ और जेडीएस के तीन विधायकों ने इस्तीफा दे दिया है. कर्नाटक सरकार पर यह संकट ऐसे समय पर आया है जब मुख्यमंत्री कुमारस्वामी विदेश में हैं.
विधानसभा अध्यक्ष ने 11 विधायकों के इस्तीफे मिलने की पुष्टि की है. विधानसभा अध्यक्ष ने कहा, ‘मैं मंगलवार को दफ्तर में रहूंगा. मैंने विधायकों को वापस नहीं भेजा है. हम कानून के मुताबिक काम करेंगे. रविवार को छुट्टी है और सोमवार को मैं बेंगलुरू में नहीं रहूंगा. मंगलवार को मैं दफ्तर जाऊंगा और इस मामले को देखूंगा.’
अगर सत्ताधारी पार्टी के 11 विधायक इस्तीफा देते हैं, तो एक साल पुरानी जेडीएस-कांग्रेस सरकार को फ्लोर टेस्ट से गुजरना होगा. अगर ऐसा होता है तो ये सरकार के पक्ष में नहीं होगा.
क्या है कर्नाटक विधानसभा का गणित?
कर्नाटक विधानसभा में कुल 225 सीटें हैं, इनमें 224 निर्वाचित और 1 नामित विधानसभा सदस्य शामिल हैं. भारतीय जनता पार्टी 105 विधायकों के साथ सदन में सबसे बड़ी पार्टी है. वहीं कांग्रेस के 78 और जेडीएस के 37 विधायक हैं. इनके अलावा बीएसपी और केपीजेपी के एक-एक विधायक हैं.
इसके अलावा कर्नाटक विधानसभा में एक निर्दलीय विधायक और सरकार की ओर से एक नामित विधायक भी है. अगर, स्पीकर को छोड़ दें तो सदन में संख्या 224 हो जाती है. ऐसी स्थिति में सरकार को बहुमत के लिए 113 विधायक चाहिए.
कर्नाटक विधानसभा की दलीय स्थिति क्या है?
कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन 115 विधायकों के समर्थन के साथ सरकार में है. कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार को बीएसपी विधायक और निर्दलीय विधायक का समर्थन भी हासिल है.
इस तरह से कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार को 117 विधायकों का समर्थन हासिल है. इसके अलावा सरकार की ओर से नामित विधायक भी सरकार के समर्थन में ही है, ऐसी स्थिति में सरकार के पास कुल संख्या 118 है.
दूसरी तरफ बीजेपी के पास कुल 105 विधायक हैं. इसके अलावा बीजेपी को केपीजेपी के एक विधायक का समर्थन भी हासिल है. ऐसे में बीजेपी के पास संख्या बल 106 है.
कांग्रेस के 8 और जेडीएस के 3 विधायकों के इस्तीफा दे देने की स्थिति में क्या होगा?
मंगलवार को अगर स्पीकर कांग्रेस के आठ और जेडीएस के तीन विधायकों का इस्तीफा स्वीकार कर लेते हैं. तो ऐसी स्थिति में एचडी कुमारस्वामी सरकार को विधानसभा में विश्वास मत से गुजरना पड़ेगा और उनकी मुश्किल बढ़ जाएगी.
11 विधायकों के इस्तीफा देने की स्थिति में कर्नाटक विधानसभा की प्रभावी संख्या 214 पहुंच जाएगी. स्पीकर को छोड़ देने की स्थिति में संख्या 213 पर पहुंच जाएगी. ऐसी स्थिति में सरकार बनाने के लिए जरूरी ‘जादुई आंकड़ा’ 107 हो जाएगा.
जेडीएस नेता एच विश्वनाथ ने कहा, ‘कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन वाली सरकार में 14 विधायक सरकार के खिलाफ अब तक इस्तीफा दे चुके हैं, हमने राज्यपाल से मुलाकात की है. हमने स्पीकर को हमारे इस्तीफे स्वीकार करने के लिए लिखा है. गठबंधन वाली सरकार कर्नाटक के लोगों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई है.’
बीजेपी के पास सरकार बनाने की क्या संभावनाएं हैं?
ऐसी हालत में बीजेपी मौके का फायदा उठा सकती है, क्योंकि बीजेपी+ के पास पहले से ही 106 विधायक हैं. हालांकि, तब भी उन्हें एक और विधायक का समर्थन चाहिए होगा. इसी मौके का फायदा उठाने के लिए बीजेपी एक मात्र निर्दलीय विधायक को बीजेपी के पाले में लाने की कोशिश कर रही है.
दूसरी संभावना यह है कि कम से कम दो और कांग्रेस या जेडीएस के विधायक इस्तीफा दे दें. अगर ऐसा होता है, तो यह सदन की शक्ति को 212 तक नीचे लाएगा. अध्यक्ष को छोड़कर, ताकत 211 हो जाएगी है और सरकार बनाने के लिए जरूरी ‘जादुई आंकड़ा’ 106 हो जाएगा. ऐसी स्थिति के लिए बीजेपी+ के पास जरूरी 106 संख्या मौजूद है.
विधानसभा अध्यक्ष और नामित विधायक का क्या?
विधानसभा अध्यक्ष एक संवैधानिक पद है. वह सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के प्रति न्यूट्रल होते हैं. विधानसभा अध्यक्ष विश्वास मत के दौरान वोटिंग में भाग नहीं लेते हैं. हालांकि, अगर नतीजा बराबरी का रहता है तो ऐसी स्थिति में विधानसभा अध्यक्ष वोट कर सकते हैं.
नामित एंग्लो-इंडियन विधायक की बात करें, तो वह शपथ लेने के बाद अन्य विधायकों के समान वोट करने के अधिकार का इस्तेमाल कर सकता है. हालांकि, वे भारत के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव के लिए वोट नहीं कर सकते.
चुनाव बाद से ही छाया है कर्नाटक सरकार पर संकट
ऐसा पहली बार नहीं है, जब कांग्रेस-जेडीएस सरकार को कर्नाटक में संकट का सामना करना पड़ रहा है. साल 2018 में हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी, कांग्रेस या जेडीएस तीनों दलों में से किसी को भी बहुमत नहीं मिल सका था. इन दलों ने चुनाव पूर्व गठबंधन नहीं किया था, इसलिए जब नतीजे आए, तब सरकार कौन बनाएगा? इसे लेकर बहुत भ्रम की स्थिति थी.
चुनाव नतीजों में बीजेपी बहुमत से दूर रह गई थी, ऐसे में जेडीएस और कांग्रेस ने नतीजों के बाद गठबंधन कर लिया. लेकिन बीजेपी इस आधार पर सरकार बनाने का दावा कर रही थी, कि वह सदन में सबसे बड़ी पार्टी है. और जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन इस आधार पर सरकार बनाने का दावा कर रहे थे कि उनके पास संख्या बल है.
ऐसी भ्रम की स्थिति के बीच बीजेपी राज्यपाल ने बीजेपी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया. आनन-फानन में येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. इस बीच कांग्रेस-जेडीएस ने आधी रात को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. कोर्ट ने कहा कि येदियुरप्पा को सदन में बहुमत साबित करना होगा. इसके साथ ही कोर्ट ने विश्वास मत से पहले सरकार पर एंग्लो-इंडियन विधायक को नामित करने पर भी रोक लगा दी.
आखिर, में येदियुरप्पा सदन में बहुमत साबित करने में नाकाम रहे और उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. बाद में, जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनी और एचडी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने.
संकट यहीं समाप्त नहीं हुआ. गठबंधन सरकार की शुरुआत कई तरह की परेशानियों के साथ हुई. पिछले एक साल में भी कांग्रेस-जेडीएस के बीच हालात ठीक नहीं रहे हैं. कई मौकों पर एचडी कुमारस्वामी सार्वजनिक तौर पर अपनी "बेबसी" जाहिर कर चुके हैं. हाल ही में उन्होंने कहा था कि कांग्रेस के साथ सरकार चलाना जहर पीने के समान है लेकिन उन्हें इसे पीना है.
इसके अलावा, ऐसे कई उदाहरण हैं जब कांग्रेस के कुछ विधायक "गायब" हुए. इस बीच कांग्रेस को डर था कि वे बीजेपी के संपर्क में हैं और इस्तीफा दे सकते हैं ताकि सरकार गिर जाए. कांग्रेस और जेडीएस लगातार बीजेपी पर अपने विधायकों को तोड़ने की कोशिश का आरोप लगाते रहे हैं.
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