नई मोदी सरकार के सत्ता में आते ही कर्नाटक सरकार पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं. कर्नाटक की सत्ता में मौजूद कांग्रेस-जेडीएस की सरकार का सिंहासन पिछले कुछ समय से डोल रहा है. ऐसा बीजेपी के नेता दावा करते आए हैं, लेकिन अब जेडीएस प्रमुख और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने भी सरकार गिरने के संकेत दे दिए. कर्नाटक में पिछले साल से ही 'ऑपरेशन कमल' का खौफ बना हुआ है. अब राज्य में मिड-टर्म इलेक्शन को लेकर बहस तेज हो चुकी है. जानिए कैसे बिगड़ सकता है कर्नाटक का सियासी समीकरण.
देवगौड़ा ने कर दी बीजेपी के 'मन की बात'
बीजेपी नेता भले ही सरकार गिराने की कोशिशों के आरोपों से खुद को बचाते आए हों, लेकिन पार्टी के कुछ नेताओं के पेट में ज्यादा देर तक बात पची नहीं. इसीलिए कर्नाटक सरकार गिराने के दावे कर दिए गए. अब जिस बात को बीजेपी खुलकर नहीं बोल पा रही थी उसे खुद जेडीएस प्रमुख देवगौड़ा बोल गए. देवगौड़ा ने कहा था -
कर्नाटक में अब कभी भी चुनाव हो सकते हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि राज्य में मिड-टर्म (मध्यावधि) चुनाव होंगे. देवगौड़ा ने कांग्रेस के व्यवहार पर भी सवाल उठाए और कहा कि, कांग्रेस ने कहा था कि पांच साल तक वो हमारा साथ देगी. लेकिन अब लोग उनका व्यवहार देख रहे हैं.
हालांकि इस बयान के कुछ ही घंटों के बाद देवगौड़ा ने यू-टर्न ले लिया. सियासी हलचल तेज होने के बाद उन्होंने बयान से पलटते हुए कहा, ‘मैंने ये बयान लोकल बॉडी (निकाय) इलेक्शन के लिए दिया था न कि विधानसभा चुनाव के लिए. जैसा एचडी कुमारस्वामी ने कहा है सरकार अगले 5 साल तक चलेगी. जेडीएस और कांग्रेस के बीच ये समझौता हुआ है.’
लोकसभा चुनाव के बाद मंडराए खतरे के बादल
कर्नाटक सरकार पर लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद खतरे के बादल मंडराने लगे. लोकसभा में बीजेपी ने देशभर में कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया. कई राज्य ऐसे थे जहां बीजेपी 90 प्रतिशत सीटें जीतने में कामयाब रही. कर्नाटक का हाल भी कुछ ऐसा ही रहा. नतीजों ने कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के पांव तले से जमीन खिसका दी.
बीजेपी को मौके की तलाश
कर्नाटक में कांग्रेस विधायकों के टूटने का सबसे ज्यादा डर है. कई बार कांग्रेस के कई विधायकों के पार्टी छोड़ने की खबरें सामने आईं. जिससे खतरे की तलवार कांग्रेस-जेडीएस सरकार की तरफ झुकती चली गई. बीजेपी परदे के पीछे से डोर को खींचने के लिए तैयार बैठी है. जैसे ही सरकार कमजोर पड़ी तो उसकी डोर खींच ली जाएगी और ऑपरेशन कमल को कामयाबी मिल जाएगी. कर्नाटक में हालात कुछ ऐसे हो चुके थे कि कांग्रेस को डैमेज कंट्रोल के लिए दिल्ली से अपने नेताओं को वहां भेजना पड़ा.
बीजेपी के सीनियर नेता सदानंद गौड़ा ने कहा था,
‘हम इस सरकार को गिराने के लिए कोई प्रयास नहीं करेंगे. लेकिन अगर सरकार अपने आप गिरती है तो हम जिम्मेदार नहीं हैं. सरकार गिरती है तो एक पार्टी के रूप में, सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर यह हमारी जिम्मेदारी है कि विकल्प की तलाश करें. उसी राजनीतिक विचार से हम काम करते हैं.’
कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस-जेडीएस ने गठबंधन तो कर लिया, लेकिन एक दूसरे के विरोध में चुनाव लड़ने वाली दोनों पार्टियों के रिश्तों में खटास बनी रही. दोनों का गठबंधन सिर्फ एक आपसी समझौते पर टिका हुआ है. जिसे टूटने में भी देर नहीं लगेगी.
क्या हैं कर्नाटक के सियासी समीकरण?
कर्नाटक में बीजेपी को सबसे ज्यादा 104 सीटें मिली थीं. लेकिन पार्टी सरकार बनाने में कामयाब नहीं रही. जिसका फायदा कांग्रेस और जेडीएस ने उठा लिया. सत्ता का सुख पाने के लिए दोनों पार्टियों ने हाथ मिलाया और बहुमत के आंकड़े को पार कर कुर्सी पर कब्जा कर लिया. लेकिन सरकार बनने के बाद से ही यहां ऑपरेशन कमल का डर सताने लगा. कांग्रेस के कुछ विधायक गायब हुए तो खलबली मच गई. हालांकि इसके बाद सरकार पर किसी तरह का कोई खतरा नहीं आया.
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