लोकतंत्र लोगों को विरोध प्रदर्शन की आजादी देता है और लोग विरोध के नए-नए तरीके खोज लाते हैं. कभी विरोध में अंडे, टमाटर फेंके जाते हैं, तो कभी जूते-चप्पल.
पर बेइज्जती करने के इस बढ़ते क्रम में ‘मुंह काला करना’ करना शायद सबसे बड़ा तरीका बनता जा रहा है. विरोध प्रदर्शन का विरोध प्रदर्शन, मीडिया अटेंशन अलग मिल जाता है.
और फिर धरना देना या चिट्ठी लिखना तो विरोध के पुराने तरीके हो चुके हैं. हैं न?
तो अब स्याही, विरोध की नई आवाज बनकर सामने आ रही है. रविवार को एक रैली के दौरान दिल्ली के मुख्यमंत्री स्याही के हमले का सबसे ताजा शिकार बने. आखिरी जानकारी तक कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल पर स्याही फेंकने वाली महिला की जमानत अर्जी को खारिज करते हुए उसे एक दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया.
केजरीवाल इससे पहले भी लोकसभा चुनावों के दौरान मार्च 2014 में वाराणसी में स्याही का हमला झेल चुके हैं.
परेशानी में फंसे बड़े उद्योगपतियों को भी स्याही का स्वाद चखना पड़ा है. चर्चित व्यक्तियों पर चीजें फेंकने में माहिर मनोज शर्मा (वह कलमाड़ी के ऊपर भी जूता फेंक चुके हैं) ने सुप्रीम कोर्ट परिसर में सुब्रत रॉय पर स्याही फेंकी थी.
पुलिस ने शर्मा को आईपीसी की धारा 107 और 151 के तहत गिरफ्तार किया था. मजिस्ट्रेट ने उसे जमानत दे दी थी, पर कोई जमानतदार न मिलने के कारण उसे न्यायिक हिरासत में रहना पड़ा.
अक्टूबर, 2015 में सुधींद्र कुलकर्णी ने स्याही रंगे चेहरे के साथ ही प्रेस कॉन्फ्रेंस कर एक साहसिक कदम उठाया. पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद कसूरी की किताब को भारत में लॉन्च कराने के विरोध में शिवसेना के किसी सदस्य ने कुलकर्णी पर स्याही से हमला किया था.
कुछ दिनों बाद जम्मू व कश्मीर के निर्दलीय विधायक ‘इंजीनियर राशिद’ पर भी स्याही फेंकी गई, जब वे श्रीनगर में आयोजित बीफ पार्टी के बारे में दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे.
‘मुंह काला करवा के आना’ किसी भी व्यक्ति की बेइज्जती करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले जुमलों में शुमार होता है. कई लोगों का मानना है कि इस जुमले का इस्तेमाल टीवी न्यूज चैनल बहुत अच्छी तरह कर सकते हैं. ऐसे में वे कई दिनों तक कुछ और दिखाने की चिंता करने से बच जाएंगे.
पर काली स्याही में ऐसा क्या है, जो इतने लोगों का ध्यान खींच रहा है?
क्यों न शिवसेना के मुंह से ही सुना जाए?
सुधींद्र पर स्याही फेंकने के बाद शिवसेना के युवा अध्यक्ष आदित्य ठाकरे ने इस हमले को जायज ठहराते हुए इसे ‘अहिंसक’ बताया था. पार्टी के विधायक संजय राउत ने इसे ‘लोकतांत्रिक विरोध का बहुत ही नर्म तरीका’ कहा था.
बकवास! वकीलों का कहना है कि किसी भी व्यक्ति पर कुछ भी फेंकना ‘हमला’ है. पर स्याही के हमले पर कितना दंड मिलना चाहिए, इस पर सभी वकील एकमत नहीं हैं.
क्या कहते हैं वकील?
दिल्ली हाईकोर्ट के वकील अभिषेक कौल का कहना है कि हमले के लिए आईपीसी की धारा 503 (किसी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने की धमकी देना), 504 (शांति भंग करने के लिए इरादतन किसी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाना). इन दोनों अपराधों की सजा दो साल की कैद या जुर्माना या दोनों हो सकते है.
अभिषेक कौल, अधिवक्ता, दिल्ली हाईकोर्टऐसे बहुत ही कम मामलों में सजा दी जाती है. आमतौर पर मजिस्ट्रेट आरोपी को या तो बेल के लिए कह देता है या फिर जुर्माना लगाता है.
दूसरी ओर वरिष्ठ अधिवक्ता प्रिया हिंगोरानी का कहना है कि इस पर अच्छी-खासी बहस की गुंजाइश है कि सिर्फ स्याही फेंकना अपराध नहीं हो सकता, जब तक कि यह साबित न हो जाए कि इसके पीछे कोई बड़ा नुकसान पहुंचाने की मंशा थी.
एक और अधिवक्ता शंख सेनगुप्ता कहते हैं कि स्याही फेंकने वाले पर धारा 355 लगाकर उसे दो साल की कैद या जुर्माना या दोनों सजाएं दी जा सकती हैं. पर कोर्ट ऐसे मामलों को अधिक गंभीरता से नहीं लेता. ऐसे में सजा देने की बात तभी आती है, जब आरोपी ने ऐसा कई बार किया हो.
यानी ये सब मजिस्ट्रेट पर निर्भर करता है और अधिवक्ता पर भी. पर एक बात तो तय है कि स्याही का हमला है तो हमला ही, इसे यूं ही माफ नहीं किया जा सकता.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)