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महाराष्ट्र: उपचुनाव से पहले OBC आरक्षण के बहाली का आदेश,उल्टा न पड़ जाए फैसला

राज्यभर में ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर बीजेपी के नेता आंदोलन कर रहे हैं,

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अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) का आरक्षण (Reservation) खत्म होने का मुद्दा महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार के आड़े आ रहा है. अब अपनी साख बचाने के लिए राज्य सरकार ने ओबीसी आरक्षण बहाली के लिए अध्यादेश जारी करने का फैसला लिया है. हालांकि राज्य सरकार का यह फैसला उल्टा भी पड़ सकता है.

राज्य निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर महाराष्ट्र के पांच जिलों की 85 जिला पंचायत सीटों और पंचायत समितियों की 144 सीटों के लिए 5 अक्टूबर को उपचुनाव कराने का फैसला किया है. चूंकि महाराष्ट्र की राजनीति में यह पहला मौका है, जब स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी समुदाय की एक भी सीट आरक्षित नहीं है. लिहाजा राज्य सरकार में शामिल शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी को ओबीसी समुदाय के नाराज होने का डर है. इसीलिए अध्यादेश जारी करने की घोेषणा की गई है. हालांकि इसके बावजूद 5 अक्टूबर को 229 सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव के आगे खिसकने की संभावना बहुत ही कम नजर आ रही है.

महाराष्ट्र में ग्राम पंचायत और पंचायत समितियों में कुल 53,945 सीटें ओबीसी समुदाय के लिए आरक्षित थीं. जिला परिषद में ऐसी 4,404 सीटें आरक्षित थीं. ठाकरे सरकार द्वारा अध्यादेश जारी करने पर ओबीसी आरक्षित सीटों की संख्या घटने वाली हैं.

कैबिनेट मंत्री छगन भुजबल ने खुद माना है कि अध्यादेश जारी होने पर 10-12 फीसदी सीटें घटेंगी, लेकिन 90 फीसदी ओबीसी आरक्षित सीटों को बचाने में महाविकास आघाड़ी सरकार सफल होगी.

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बीजेपी की इस मसले पर क्या रणनीति है?

इसे लेकर बीजेपी सीधे आंदोलन कर सरकार को घेरने की कोशिश करेगी. लेकिन जहां राज्यभर में ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर बीजेपी के नेता आंदोलन कर रहे हैं, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री देवेेंद्र फड़णवीस ठाकरे सरकार द्वारा अध्यादेश जारी करने के निर्णय का स्वागत कर रहे हैं.

अगर राज्य सरकार यह निर्णय 13 दिसंबर 2019 को लेती, तो सुप्रीम कोर्ट ओबीसी आरक्षण को रद्द नहीं करती. सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल टेस्ट करने को कहा था. जिसमें से ठाकरे सरकार ने दो टेस्ट पूरे कर लिए हैं. उन्होंने कहा कि यदि राज्य सरकार दो महीने के भीतर ओबीसी आयोग से इम्पीरिकल रिपोर्ट हासिल करने में सफल होती है, तो इस संकट का समाधान होने की संभावना है.
देवेंद्र फणनवीस, पूर्व मुख्यमंत्री, महाराष्ट्र

विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष देवेंद्र फडणवीस का यह बयान राज्य सरकार को राहत देने वाला है क्योंकि उनके इस बयान से ओबीसी समुदाय में संदेश गया है कि ठाकरे सरकार ओबीसी आरक्षण बचाने के लिए अपनी ओर से कुछ न कुछ प्रयास कर रही है.

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सुप्रीम कोर्ट ने इस ओबीसी आरक्षण को लेकर क्या कहा?

ओबीसी समाज को 27 फीसदी राजनीतिक आरक्षण देने के मसले पर अभी ठाकरे सरकार को सुप्रीम कोर्ट की कसौटी पर खरा उतरना बाकी है. क्योंकि महाराष्ट्र सरकार जब तक ओबीसी समुदाय की जनगणना कर अधिकृत रूप से ओबीसी समाज की जनसंख्या घोषित नहीं करती, तब तक अध्यादेश जारी करने जैसे फैसले स्थायी समाधान नहीं माने जा सकते. इसी प्रकार की शंका बीजेपी की ओबीसी नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री पंकजा मुंडे उपस्थित करती हैं. उन्होंने सरकार से पूछा है कि क्या आगामी सभी स्थानीय निकाय चुनावों में यह अध्यादेश लागू होगा? क्या इसकी गारंटी ठाकरे सरकार दे सकती है?

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ओबीसी आरक्षण पर सरकार का अध्यादेश टिक पाएगा?

यह सवाल काफी महत्वपूर्ण है, चूंकि अध्यादेश किसी समस्या का स्थायी समाधान नहीं होता. लिहाजा राज्य सरकार का यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बायपास कर पाएगा? इसकी संभावना बहुत ही कम दिख रही है. इससे पहले मराठा समाज और मुस्लिम समाज को अध्यादेश जारी कर आरक्षण दिए जाने और सरकार बदलने पर उसके परिणामों की घटना ताजी है. ओबीसी आरक्षण मामलों के जानकार प्रोफेसर हरी नरके का कहना है कि "यदि सच में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास विकास आघाडी सरकार ओबीसी समाज को राजनीतिक आरक्षण देना चाहती है, तो उसे अनुसूचित जाति (एससी) अनुसूचित जनजाति (एसटी) व अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के आरक्षण को 50 फीसदी की मर्यादा में रखना होगा".

इसके साथ ही ज्यादा से ज्यादा तीन महीने के भीतर ओबीसी जनगणना पूरी कर राज्य ओबीसी आयोग से इम्पीरिकल रिपोर्ट हासिल करनी होगी और ओबीसी समुदाय के पिछड़ेपन की बात को भी कानून के दायरे में साबित करना होगा ताकि भविष्य में कोई कोर्ट में सरकार के निर्णय को चुनौती न दे. लेकिन नरके का मानना है कि ठाकरे सरकार में मौजूद असमन्वय और लिखापोति की वजह से ओबीसी समाज को बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है.

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