2024 के लोकसभा चुनावों (2024 Lok Sabha elections) के साथ-साथ दक्षिण भारत के दो राज्यों में अहम चुनाव होने हैं - 2023 में तेलंगाना और 2024 में आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव. सवाल है कि जब राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी खेमा एक बड़े मंथन से गुजर रहा है तब तेलंगाना और आंध्र प्रदेश, दोनों में राज्य पार्टियों का स्टैंड क्या है? क्या वे कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त विपक्ष का समर्थन करेंगी या बीजेपी का, जो 2014 से देश पर शासन कर रही है.
संक्षेप में कहें तो, तेलंगाना की भारत राष्ट्र समिति (BRS), आंध्र प्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (YSRCP) और तेलुगु देशम पार्टी (TDP) ने कुछ संकेत भरी चेतावनियों के साथ अपने विकल्प खुले रखे हैं. जहां के.चंद्रशेखर राव की BRS द्वारा बीजेपी विरोधी मोर्चे का समर्थन करने की संभावना है, वहीं जगन मोहन रेड्डी की YSRCP द्वारा उस गुट का समर्थन करने की संभावना है जिसे लोकसभा चुनावों में बहुमत मिलेगा.
BRS विपक्ष का पक्षधर क्यों है?
बीआरएस 2022 तक तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) के नाम से जानी जाती थी. उसने 2014 और 2018 के बीच पहली बार सत्ता में आने पर बीजेपी की कुछ नीतियों का समर्थन किया था. बीआरएस के सूत्रों के अनुसार, यह परिदृश्य दोहराने की संभावना नहीं है, भले ही 2024 में बीजेपी सत्ता में वापस आएगी.
बीआरएस के एक नेता ने द क्विंट को बताया, “बीआरएस जानती है कि बीजेपी क्षेत्रीय दलों से दोस्ती करती है और अंततः उन्हें मार देती है. केसीआर (तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव) के बीजेपी का विरोध करने की सबसे अधिक संभावना है, भले ही वह सत्ता में आए.''
उन्होंने आगे बताया कि इसके बावजूद पार्टी किसी भी चुनाव पूर्व गठबंधन पर सहमत नहीं हुई है क्योंकि उसके नेताओं को लगता है कि इससे तेलंगाना विधानसभा चुनाव 2023 में उनकी संभावनाएं कमजोर हो सकती हैं.
“हम कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं कर सकते क्योंकि अगर हम ऐसा करते हैं तो कांग्रेस विरोधी और बीआरएस- विरोधी वोट दोनों एकजुट हो जाएंगे तथा बीजेपी के पक्ष में वोट करेंगे"बीआरएस के एक नेता
हालांकि, 2022 में राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखने वाले केसीआर से बीजेपी के प्रति अपनी नाराजगी का संकेत देने के लिए गैर-कांग्रेसी विपक्षी नेताओं के साथ मजबूत संबंधों का प्रदर्शन करने की उम्मीद है.
एक बीआरएस नेता ने समझाया, “कांग्रेस का अकेले ही विपक्षी खेमे के सभी दलों पर कमान नहीं है. हमारे तटस्थ दलों के साथ गठबंधन करने की संभावना है जो न तो कांग्रेस के बहुत करीब हैं और न ही बीजेपी के.''
इस मोर्चे पर, बीआरएस के दिमाग में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (AAP) और अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी है. हाल के दिनों में AAP और SP, दोनों के नेताओं ने केसीआर के निमंत्रण पर तेलंगाना का दौरा किया है.
बीआरएस भी जल्द ही एक राष्ट्रीय पार्टी बनने के लिए उत्सुक है, जैसा कि केसीआर की महाराष्ट्र यात्राओं से संकेत मिलता है, जहां बीआरएस नेताओं का कुछ हिस्सों में जोरदार स्वागत हुआ. इससे बीजेपी के देवेंद्र फड़नवीस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के शरद पवार को बयान देने के लिए मजबूर होना पड़ा.
एक बीआरएस नेता ने कहा, "अन्य राज्यों के दौरे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा पाने की दीर्घकालिक योजना के तहत हैं." उन्होंने कहा, "ये दौरे लोकसभा चुनावों के लिए नहीं किए जा रहे हैं."
यदि बीजेपी 2024 में बहुमत के आंकड़े तक पहुंचने के लिए संघर्ष करती है, तो बीआरएस के विपक्षी खेमे में शामिल होने की संभावना है, भले ही इसका नेतृत्व कांग्रेस ही क्यों न करे. यदि ऐसा नहीं होता है तो बीआरएस कांग्रेस के बजाय AAP और SP जैसी 'तटस्थ पार्टियों' के करीब रह सकती है.
दूसरी तरफ, पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश में राजनीतिक समीकरण कहीं अधिक जटिल हैं.वाईएसआरसीपी के भाजपा की मूक सहयोगी बनने की संभावना क्यों है और टीडीपी कहां जाएगी?
YSRCP के बीजेपी की मूक सहयोगी बनने की संभावना क्यों है और TDP कहां जाएगी?
2019 में आंध्र प्रदेश में प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आने से पहले, YSRCP सुप्रीमो जगन मोहन रेड्डी ने कहा कि वह किसी भी ऐसी पार्टी का समर्थन करेंगे जो आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करेगी. ऐसा नहीं हुआ क्योंकि बीजेपी प्रचंड बहुमत के साथ केंद्र में सत्ता में आई और जगन रेड्डी बीजेपी के करीब होते हुए भी चुप रहे.
इस बीच, उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी, एन चंद्रबाबू नायडू बीजेपी विरोधी खेमे में शामिल हो गए और उन्हें अपने गृह राज्य में हार का सामना करना पड़ा.
2023 में आंध्र प्रदेश में कुछ समीकरण बदल गए हैं. पहला, जगन मोहन रेड्डी की बहन वाईएस शर्मिला हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुईं. जगन रेड्डी के पूर्व करीबी सहयोगी पी श्रीनिवास रेड्डी भी कांग्रेस में शामिल हो गए हैं. कांग्रेस तेलंगाना में बीआरएस और बीजेपी दोनों के साथ त्रिकोणीय मुकाबले में है.
क्या इसका मतलब यह है कि जगन रेड्डी ने बीजेपी के प्रति अपना रुख बदल लिया है? YSRCP के एक करीबी सूत्र ने कहा:
“जगन का स्पष्ट रुख रहा है कि वह न तो टिप्पणी करेंगे और न ही उस राष्ट्रीय राजनीति में शामिल होंगे जिसका आंध्र में सीधा प्रभाव नहीं पड़ता है. बीजेपी के 'रेवड़ी संस्कृति' वाले तंज को छोड़कर (जिसका उन्होंने विरोध किया था) जगन ने वास्तव में विपक्षी दलों के एक साथ आने सहित किसी भी राष्ट्रीय राजनीतिक घटनाक्रम पर कोई टिप्पणी नहीं की है.'
इस बीच, आंध्र प्रदेश में हार के बाद चंद्रबाबू नायडू को मिल रही कम अहमियत से टीडीपी खुश नहीं है. वह 2019 के बाद न तो राज्य या देश में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति रहे हैं, क्योंकि टीडीपी के बैनर तले जीतने वाले कुछ विधायक भी बाद में बीजेपी में शामिल हो गए. एक तरफ तो टीडीपी जून में नीतीश कुमार द्वारा बुलाई गई विपक्ष की बैठक से स्पष्ट रूप से अनुपस्थित रही है, दूसरी तरफ इसने सार्वजनिक रूप से बीजेपी के खिलाफ अपना रुख नरम नहीं किया है.
टीडीपी के एक करीबी सूत्र ने कहा, ''चंद्रबाबू ज्यादातर ध्यान आंध्र प्रदेश पर केंद्रित कर रहे हैं, दिल्ली पर नहीं.'' हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि क्या नायडू 2024 के विधानसभा चुनावों में जगन मोहन रेड्डी को हराने के लिए पाला बदलेंगे और बीजेपी से हाथ मिलाएंगे?
वाईएसआरसीपी के एक सूत्र ने कहा, अगर आंध्र प्रदेश में फिर से जीत हासिल होती है तो जगन के साथ आने की संभावना उसी सूरत में होगी, जब बीजेपी चुनावी तौर पर परेशान हो. आंध्र प्रदेश के पास 25 लोकसभा सीटें हैं और बीजेपी के लिए यह अहम हो सकती है.
जगन रेड्डी के पास विपक्षी मोर्चे की जगह बीजेपी का समर्थन करने के कई कारण हैं. एक, रेड्डी राज्य में अपने द्वारा शुरू किए गए कल्याणकारी उपायों के लिए समर्थन पाने के लिए केंद्र के करीब रहना चाहते हैं. इसके अलावा, वह आय से अधिक संपत्ति के मामलों और विवादों में उलझे हुए हैं, जिससे उन्हें केंद्रीय एजेंसियों की जांच में आगे आने का खतरा है.
पूरी संभावना है कि जगन रेड्डी अपने करीबी विश्वासपात्रों को विपक्षी खेमे का हिस्सा बनाकर अपना केक बनाने और खुद भी खाने की कोशिश करेंगे, भले ही वह खुद बीजेपी के करीब बने हुए हैं. जब तक 2024 के चुनावों में कांग्रेस को भारी बहुमत नहीं मिलता, रेड्डी के विपक्षी खेमे में शामिल होने की संभावना बहुत कम है.
संक्षेप में कहें तो, न तो बीआरएस और न ही वाईएसआरसीपी स्थानीय समीकरणों की कीमत पर राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लेगी. जबकि दूसरी तरफ टीडीपी उस खेमे का पक्ष ले सकती है जो उसे आंध्र प्रदेश में सत्ता में वापस आने में मदद कर सकता है.
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