जब भारतीय जनता पार्टी (BJP List of Candidates) ने पिछले हफ्ते लोकसभा चुनाव के लिए 195 उम्मीदवारों की अपनी पहली सूची जारी की. इसमें केरल (Kerala) की एक सीट - मलप्पुरम (Malappuram) सबसे अलग थी. वजह थी कि यहां पार्टी ने 71 वर्षीय डॉ अब्दुल सलाम (Abdul Salam) को टिकट दिया है, जो पार्टी के एकमात्र मुस्लिम उम्मीदवार हैं.
पहले अकादमी में रहे और अब राजनीति में आ चुके सलाम ने द क्विंट को बताया कि, ''राजनीति में उनकी जरा भी रुचि नहीं होने के बावजूद, वह 2019 में बीजेपी में शामिल हो गए, क्योंकि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर आकर्षित हैं."
बता दें कि, जुलाई 2022 के बाद से, बीजेपी के पास लोकसभा या राज्यसभा में एक भी मुस्लिम सांसद नहीं है.
उन्होंने आगे कहा कि, "पार्टी ने अभी तक 300 से अधिक सीटों पर अपने उम्मीदवार जारी नहीं किए हैं. नेतृत्व को ऐसे लोगों की तलाश हैं जिसके पाल गुणवत्ता हो... मैं यह नहीं कह रहा हूं कि ऐसा ही होगा, लेकिन इसमें (अन्य मुस्लिम उम्मीदवार भी शामिल हो सकते हैं)."
सलाम इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) के ईटी मोहम्मद बशीर और सीपीआई (एम) के वी वसीफ के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे. परिसीमन से पहले मलप्पुरम निर्वाचन क्षेत्र मंजेरी कहलाता था और तब से लेकर अब तक ऐतिहासिक रूप से ये IUML का गढ़ रहा है, जो केरल में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) का हिस्सा है.
कौन हैं डॉ अब्दुल सलाम?
पीएचडी होल्डर अब्दुल सलाम मलप्पुरम में जन्मे और 2011 से 2015 तक जिले में कालीकट विश्वविद्यालय के कुलपति थे.
कथित तौर पर उन्हें आईयूएमएल द्वारा इस पद के लिए चुना गया था जब यूडीएफ केरल में सत्ता में थी. 2021 में - बीजेपी में शामिल होने के दो साल बाद - सलाम ने तिरुर सीट से केरल विधानसभा चुनाव लड़ा और आईयूएमएल के कुरुक्कोली मोइदीन से 70,000 से अधिक वोटों के अंतर से हार गए थे.
सलाम बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं. पार्टी को "मुस्लिम मतदाताओं की जरूरत नहीं है"... जब उनसे असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा सहित कुछ बीजेपी नेताओं के ऐसे विवादास्पद बयानों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा
"भारत एक बड़ा देश है और दुनिया में सबसे बड़ी आबादी वाला देश है. यहां 115 करोड़ हिंदू हैं. लेकिन आपको ये समझना होगा कि ये सभी हिंदू एक जैसे नहीं है. वे सभी वैसे नहीं है जो मोदी की सोच है."
उन्होंने आगे कहा कि, "यहां कई कट्टर हिंदू भी हैं, कम समझ के कारण, या असाक्षरता या संकीर्ण सोच की वजह से ऐसा है. ऐसे लोग होते हैं और वे वैसे ही हरकते करते हैं लेकिन ऐसे लोगों की सोच से बीजेपी पूरी तरह अलग है."
उन्होंने यह भी कहा कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण केरल में मुसलमानों के बीच "कोई मुद्दा नहीं" है. यह एक मुद्दा था, लेकिन अब यह मुद्दा नहीं बचा. इसे कानूनी रूप से सुलझा लिया गया है. यहां तक कि मुस्लिम नेतृत्व ने भी कहा है कि यह कानूनी रूप से सुलझा हुआ मुद्दा है. उन्हें राम मंदिर मुद्दे के नजरिये से न देखें और उन्हें मुश्किल स्थिति में न डालें." उन्होंने दावा किया, ''यह एक मनगढ़ंत मुद्दा है."
बीजेपी मलप्पुरम क्यों नहीं जीत सकती?
हालांकि, सलाम यह स्वीकार करते हैं कि मुस्लिम बहुल मलप्पुरम बीजेपी के लिए एक "मुश्किल सीट" है. उन्होंने द क्विंट को बताया कि, "केरल की सभी 20 सीटें [बीजेपी के लिए] मुश्किल सीटें हैं, लेकिन मलप्पुरम सीट सबसे कठिन है."
मलप्पुरम में कम से कम 70 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है. लेकिन यह केवल दूसरी बार है जब बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में उतारा है. 2009 में, इसने एन अरविंदन को मैदान में उतारा था, 2014 और 2017 के उपचुनाव में, एन श्रीप्रकाश ने बीजेपी के लिए चुनाव लड़ा था, और 2019 में, पार्टी ने उन्नीकृष्णन को मैदान में उतारा था.
2021 के उपचुनाव में पार्टी ने एपी अब्दुल्लाकुट्टी को चुनाव लड़वाया लेकिन निराशा हाथ लगी थी. पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अब्दुल्लाकुट्टी, 68,935 वोट हासिल करके तीसरे स्थान पर रहे. मलप्पुरम सीट वरिष्ठ IUML नेता अब्दुस्समद समदानी को मिली.
इन सभी चुनावों में, बीजेपी तीसरे स्थान पर रही थी, IUML और CPI (M) पहले और दूसरे स्थान पर थे.
द क्विंट से बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार एमपी बशीर ने कहा:
"बीजेपी ने मलप्पुरम में एक मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में उतारा है, इससे ज्यादा कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. इससे पहले, कुछ स्थानीय चुनावों में, उन्होंने मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा और हार गए. अब्दुल्लाकुट्टी 2021 के उपचुनाव में भी हार गए. राष्ट्रीय स्तर पर स्तर पर, केरल में एक मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में उतारना केवल अच्छा संदेश दे सकता है लेकिन इससे मलप्पुरम में चुनावी तौर पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा."
वह बताते हैं कि इसके दो कारण हैं. "सबसे पहले, मलप्पुरम आईयूएमएल का गढ़ है. दूसरा, केरल में मुसलमान संगठित हैं. वे या तो मुस्लिम राजनीतिक संगठनों या समुदाय/धार्मिक संगठनों से प्रभावित हैं. इन संगठनों की उपस्थिति केरल में बहुत मजबूत है और वे मुसलमानों के वोट देने के तरीके को प्रभावित करते हैं. कुछ वर्ग सीपीआई (एम) और कांग्रेस जैसी धर्मनिरपेक्ष पार्टियों के अंतर्गत भी आते हैं."
वास्तव में, राजनीतिक विशेषज्ञों के बीच यह धारणा है कि मुस्लिम, जो केरल में बड़े पैमाने पर यूडीएफ को वोट देते रहे हैं, वे कुछ कांग्रेसी नेताओं के बीजेपी में शामिल होने से UDF से दूर जा सकते हैं. पद्मजा वेणुगोपाल और अनिल एंटनी, ये वे कांग्रेसी हैं जो बीजेपी में शामिल हुए हैं.
न्यूज वेबसाइट ऑनमनोरमा ने एक सर्वे के हवाले से बताया कि, 2021 के विधानसभा चुनावों में लगभग 50 प्रतिशत मुसलमानों ने सेंट्रल ट्रानवनकोर (पठानमथिट्टा, कोल्लम और अलाप्पुझा) में सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) को वोट दिया. 2016 में इस क्षेत्र में उनका वोट शेयर 25 फीसदी था. हालांकि, यूडीएफ लोकसभा स्तर पर बढ़त बनाए रख सकता है जैसा कि 2014 से पैटर्न रहा है.
इस बीच, IUML ने इस चुनाव में अपने पोन्नानी और मलप्पुरम के मौजूदा सांसदों को बदल दिया है. 2009 से तीन बार पोन्नानी के सांसद रहे मोहम्मद बशीर ने कथित तौर पर मलप्पुरम सीट की मांग की थी. समदानी, जो मलप्पुरम के मौजूदा सांसद हैं, इस बार पोन्नानी से चुनाव लड़ेंगे.
यह याद किया जा सकता है कि 2004 में - जब आईयूएमएल ने दिवंगत ई अहमद को मंजेरी (जो परिसीमन के बाद मलप्पुरम बन गया) से पोन्नानी भेज दिया - पार्टी पहली बार निर्वाचन क्षेत्र में संसदीय चुनाव हार गई. तब सीपीआई (एम) के टीके हमजा ने आईयूएमएल के केपीए मजीद को हराया था.
दूसरी ओर, सीपीआई (एम) के वासिफ, जो डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया (डीवाईएफआई) के राज्य अध्यक्ष हैं - ये मलप्पुरम से अपना पहला चुनाव लड़ रहे हैं. द हिंदू के साथ एक इंटरव्यू में, वासिफ ने दावा किया कि लेफ्ट की सरकार ने राज्य में कांग्रेस और आईयूएमएल की तुलना में हिंदुत्व राजनीति के खिलाफ "मजबूत रुख अपनाया" है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)