ADVERTISEMENTREMOVE AD

Telangana: आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और BRS का बहुत कुछ दांव पर क्यों है?

Telangana Politics: क्या कांग्रेस अपना विधानसभा चुनाव का प्रदर्शन दोहरा पाएगी, क्या BRS वापसी करेगी?

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

तेलंगाना के मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता रेवंत रेड्डी (Telangana CM Revanth Reddy ) ने शुक्रवार, 2 फरवरी को आदिलाबाद के इंदरवेल्ली गांव से लोकसभा चुनाव के अभियान की शुरुआत की. दिसंबर 2023 में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की चौंका देने वाली वापसी के बाद भी पार्टी के लिए बहुत कुछ दांव पर है:

ADVERTISEMENTREMOVE AD
  • विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 64 सीटों पर जीत हासिल की और भारत राष्ट्र समिति (के चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली) को 39 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर धकेल दिया. हालांकि, संख्या के हिसाब से सरकार बहुत मजबूत बहुमत पर नहीं के साथ नहीं चल रही है और अस्थिरता की स्थिती बनी हुई है.

  • न सिर्फ उत्तरी राज्यों में बल्कि तेलंगाना में भी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लगातार बढ़त हासिल कर रही है. तेलंगाना में बीजेपी ने आठ विधानसभा सीटें जीती हैं. कांग्रेस को संसद में अपनी सीटें बढ़ाने की अब पहले से कहीं अधिक आवश्यकता है.

  • बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बाहर निकलने के बाद विपक्षी दल इंडिया गुट के भीतर अस्थिरता है और ये अब तेलंगाना में भी कांग्रेस के लिए एक चुनौती बन रही है.

संसदीय चुनाव BRS के लिए भी अग्निपरीक्षा साबित होगी. देश भर में चुनावी बीजेपी और कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष के बीच बाइपोलर मुकाबले में बदल रही है. BRS सरीखे क्षेत्रीय पार्टी को खुद को बचाए रखने के लिए एक बड़ी जीत की दरकार होगी, खासकर उन अटकलों के बीच कि कांग्रेस अपने पाले में लाने के लिए 'दलबदल की योजना' बना रही है.

तो फिर किसका पलड़ा भारी है? क्या कांग्रेस अपना विधानसभा चुनाव प्रदर्शन दोहरा पाएगी? क्या BRS वापसी करेगी? और बीजेपी कहां खड़ी है?

अटकलों से पर्दा हटाना

23 जनवरी को राज्य के पूर्ववर्ती मेडक जिले के चार बीआरएस विधायक - सुनीता लक्ष्मा रेड्डी (नरसापुर), के प्रभाकर रेड्डी (दुब्बाका), जी महिपाल रेड्डी (पटनचेरु), और माणिक राव (जहीराबाद) - ने सीएम रेवंत रेड्डी से "शिष्टाचार मुलाकात" की.

इससे यह अटकलें तेज हो गई हैं कि कांग्रेस BRS के विधायकों को पार्टी में शामिल करने के लिए उनसे "बातचीत" कर रही है. यह महत्वपूर्ण है क्योंकि मेडक क्षेत्र को BRS का गढ़ माना जाता है.

हाल ही में 28 जनवरी को राजेंद्रनगर के BRS विधायक प्रकाश गौड़ ने रेवंत रेड्डी से मुलाकात की, इस दौरान उन्हें कंडुवा (शॉल) पहनाया गया जिस पर कांग्रेस का 'रंग' था. उन्होंने कंडुवा पहने हुए फोटो भी खिंचवाई थी.

इसके बाद BRS के विधायकों ने साफ किया कि वे अपने संबंधित निर्वाचन क्षेत्रों से जुड़े फंड और मुद्दों के लिए सीएम से मिले थे. द क्विंट से बात करते हुए एक वरिष्ठ BRS नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा:

"सभी विधायक अपने क्षेत्र के लोगों के कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए कर्तव्यबद्ध हैं. और इसके लिए, उन्हें मंत्रियों और सरकारी अधिकारियों से मिलना होगा. कांग्रेस सिर्फ कुछ कार्यों से लोगों को भ्रमित करने की कोशिश कर रही है, जैसे बीआरएस नेता को कांग्रेसी कंडुवा पहनाना."
0

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक आर पृथ्वी राज ने द क्विंट को बताया कि इस तरह की बैठकों से यह धारणा बनती है कि BRS विधायक कांग्रेस में शामिल होना चाह रहे हैं, लेकिन व्यवहारिक रूप से कहें तो, दलबदल विरोधी कानून उन्हें ऐसा करने से रोकेगा.

कानून के मुताबिक, अगर किसी पार्टी के दो-तिहाई विधायक दूसरी पार्टी में शामिल होते हैं तो इसे विलय माना जाएगा. दूसरे शब्दों में कहें तो कानूनी तौर पर विलय के लिए कम से कम 26 BRS विधायकों (39 में से) को सामूहिक रूप से कांग्रेस में शामिल होना होगा.

मुलाकात के क्या है संकेत?

राजनीतिक विशेषज्ञों का सुझाव है कि इसका ज्यादा लेना-देना 27 फरवरी को होने वाले आगामी राज्यसभा चुनावों से हो सकता है. तेलंगाना में तीन राज्यसभा सीटें खाली हो रही हैं, इन सभी सीटों पर BRS का कब्जा था.

पृथ्वी राज बताते हैं, "अब चूंकि विधानसभा की संरचना बदल गई है, कांग्रेस दो सीटें जीत सकती है और BRS एक सीट जीत सकती है. लेकिन अगर कांग्रेस के पास पर्याप्त BRS विधायकों का समर्थन है, तो पार्टी तीसरा उम्मीदवार भी उतार सकती है. क्योंकि यह एक गुप्त मतदान है तो क्रॉस वोटिंग हो सकता है."

दूसरा, उन्होंने कहा, "कांग्रेस के पास विधानसभा में केवल 64 सीटें हैं, लेकिन अगर कुछ विधायक BRS में शामिल हो जाते हैं तो सरकार गिर सकती है. और रेवंत रेड्डी इसे हर कीमत पर बचाना चाहेंगे और इसलिए वह विपक्षी विधायकों का समर्थन हासिल करने की कोशिश कर सकते हैं."

2014 में जब BRS प्रमुख के. चंद्रशेखर राव मुख्यमंत्री बने थे तब उनके पास केवल 63 विधायक थे. जीत के तुरंत बाद कई कांग्रेस और तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के विधायक BRS (तब तेलंगाना राष्ट्र समिति) में शामिल हुए थे जिससे सरकार की स्थिरता सुनिश्चित हुई.

भले ही BRS के पास भारी बहुमत थी, फिर भी 2019 में भी BRS ने विधायकों को दलबदल कराया था और 19 में से 12 कांग्रेस विधायक पार्टी में शामिल हो गए थे. दरअसल, पिछले हफ्ते रेवंत रेड्डी से मिलने वाले चार BRS विधायकों में से एक पूर्व कांग्रेसी विधायक - सुनीता लक्ष्मा रेड्डी थीं.

द क्विंट से बात करते हुए, वरिष्ठ पत्रकार रोशन अली ने कहा,

"BRS से बड़े पैमाने पर दलबदल की स्थिति में कांग्रेस एक कहानी बनाएगी कि यह उसके नेताओं की 'घर वापसी' है, जिन्हें बीआरएस ने 'चोरी' कर लिया था." जहां तक ​​धारणाओं का सवाल है, यही उनका बचाव होगा."

उन्होंने कहा कि "भले ही वे 26 विधायकों को दलबदल करने के लिए नहीं कहें, लेकिन अविश्वास प्रस्ताव आने पर वे उन्हें अनौपचारिक रूप से कांग्रेस का समर्थन करने के लिए मजबूर कर सकते हैं."

ADVERTISEMENTREMOVE AD

बदलते नैरेटिव

30 जनवरी को एक बैठक में आगामी संसदीय चुनावों के लिए तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस कमेटी (टीपीसीसी) ने अपने उम्मीदवारों को चुनने का फैसला कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे पर छोड़ दिया. बैठक में यह भी प्रस्ताव रखा गया कि अगर AICC नेता सोनिया गांधी ने कभी भी राज्यसभा के लिए तेलंगाना से चुनाव लड़ने का फैसला किया, तो पार्टी इसे सर्वसम्मति से जीत दिलाएगी.

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस ने तर्क दिया था कि तेलंगाना राज्य के गठन का श्रेय सोनिया गांधी को दिया जाना चाहिए, न कि बीआरएस को.

पृथ्वी राज कहते हैं, "कांग्रेस यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रही है कि केसीआर या बीआरएस का तेलंगाना आंदोलन या तेलंगाना भावना पर कोई अधिकार नहीं है. यह दोनों तरह से स्पष्ट है."

"पार्टी ने हाल ही में प्रोफेसर कोदंडराम [तेलंगाना जन समिति के संस्थापक] को एमएलसी का पद दिया था जो तेलंगाना आंदोलन के दौरान एक घरेलू नाम थे. उन्हें पूरे राज्य में आंदोलन के चैंपियन के रूप में जाना जाता है. ऐसी अफवाहें हैं कि उन्हें कैबिनेट पद भी मिल सकता है."
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक आर पृथ्वी राज

उन्होंने आगे कहा, "कोदंडराम को बढ़ावा देकर और सोनिया गांधी की उम्मीदवारी पर अटकलें लगाकर कांग्रेस तेलंगाना की भावना को भुनाना चाहती है."

बीजेपी फैक्टर

रेवंत रेड्डी ने इंद्रवेल्ली से अपने चुनावी अभियान का शुरू करने का फैसला किया है, जहां 1981 में भूमि अधिकार आंदोलन के दौरान आदिवासियों के एक समूह पर पुलिस ने गोली चलाई थी. ये राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि आदिलाबाद उन पूर्ववर्ती जिलों में से एक है जहां बीजेपी की मजबूत उपस्थिति है.

जब गोलीबारी हुई तब कांग्रेस सत्ता में थी. शुक्रवार को घटना के बारे में बोलते हुए, सीएम ने कहा: "पिछली गलतियों के लिए माफी पहले ही मांगी जा चुकी है. सोनिया गांधी ने संयुक्त आंध्र प्रदेश में सीमांध्र शासकों के शासन के दौरान की गई ऐतिहासिक गलतियों को दूर करने के उद्देश्य से तेलंगाना को राज्य का दर्जा दिया है." 

पृथ्वी राज का मानना ​​है, "इंडिया गुट के अंदर कलह और पूरे देश में अयोध्या के नाम पर बीजेपी केंद्र में एक और जीत हासिल कर सकती है. लेकिन क्योंकि कांग्रेस तेलंगाना में सत्तारूढ़ पार्टी है, इसलिए यहां चुनावों में इसका कुछ प्रभाव पड़ेगा."

कांग्रेस को 17 लोकसभा सीटों में से 12 सीटें जीतने का भरोसा है, जो पिछले चुनाव में जीते हुए तीन सीटों से काफी ज्यादा है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

रोशन अली कहते हैं, "कांग्रेस की नजर 8-12 सीटों पर है, खासकर दक्षिण और मध्य तेलंगाना में. इनमें खम्मम, नलगोंडा, वारंगल और महबूबनगर शामिल हैं, जहां उनके विधायकों ने अच्छे अंतर से जीत हासिल की थी. मेडक में बीआरएस बहुत मजबूत है, तो उसे छोड़कर इन क्षेत्रों में पार्टी के सामने ज्यादा चुनौतियां नही होंगी''

बीजेपी के लिए स्थिति भी बहुत अनुकूल है क्योंकि उन्हें विधानसभा चुनावों में अहम फायदा हुआ है. आदिलाबाद, निजामाबाद, सिकंदराबाद और जहीराबाद में बीजेपी की अच्छी मौजूदगी है.
वरिष्ठ पत्रकार रोशन अली

दूसरे शब्दों में, विशेषज्ञों की राय है कि लोकसभा चुनाव से कांग्रेस और बीजेपी के बीच बाइपोलर मुकाबला शुरू हो सकता है - यानी, BRS, जिसके पास वर्तमान में नौ संसदीय सीटें हैं वो हार सकती है.

रोशन अली ने कहा, "कांग्रेस तेलंगाना में BRS को खत्म करना चाहती है. बीजेपी भी BRS को खत्म करना चाहती है और मुख्य विपक्षी पार्टी बनना चाहती है."

रोशन आगे कहते हैं, "किसी को ध्यान देना चाहिए कि 2018 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी की 118 सीटों पर जमानत जब्त हुई थी. लेकिन सिर्फ पांच महीने बाद, 2019 में, उसने 4 लोकसभा सीटें जीतीं. कांग्रेस ने भी 2018 में 19 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी उसे 2019 में 3 लोकसभा सीटें मिली थीं. इससे पता चलता है कि लोकसभा चुनाव एक अलग तरह का खेल है."

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×