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मायावती के चुनाव न लड़ने से गठबंधन को फायदा होगा या नुकसान?

लोकसभा चुनाव न लड़ने के पीछे मायावती ने तर्क दिया है कि बीजेपी को उखाड़ फेंकने के लिए जरूरी है

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बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने इस लोकसभा चुनाव में किसी भी सीट से चुनाव न लड़ने का ऐलान कर दिया है. लोकसभा चुनाव न लड़ने के पीछे मायावती ने तर्क दिया है कि बीजेपी को उखाड़ फेंकने के लिए जरूरी है कि गठबंधन की एक एक सीट पर प्रत्याशियों को मजबूती से लड़ाया जा सके.

मायावती ने बयान जारी कर कहा कि मेरे खुद के जीतने से अधिक महत्वपूर्ण यह है कि प्रदेश में लोकसभा की एक एक सीट जीतना.

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बीएसपी प्रमुख इस तरह संदेश देना चाहती हैं कि बीजेपी या मोदी को अगर कोई रोक सकता है तो वह गठबंधन ही है. अपने वोटरों तक ऐसा संदेश देकर मायावती बताना चाहती हैं कि लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी से सीधी लड़ाई गठबंधन की है, न कि कांग्रेस की.

मायावती भले ही गठबंधन के प्रत्याशियों को जिताने और बीजेपी को हराने के लिए चुनाव न लड़ने की बात कर रही हैं, लेकिन उनके इस फैसले से बीएसपी के कई नेता भी अंदरखाने खुश नहीं हैं.

बहुजन समाज पार्टी के एक नेता कहते हैं कि पार्टी के बड़े नेताओं के चुनाव लड़ने से कार्यकर्ताओं में जोश तो आता ही है, साथ ही उस पूरे क्षेत्र में एक माहौल भी बनता है, जिसका सीधा फायदा पार्टी के दूसरे प्रत्याशियों को मिलता है.

उक्त बीएसपी नेता का तर्क है कि नरेंद्र मोदी ने भी गुजरात से आकर बनारस से पिछला चुनाव लड़ा था, जिसके पीछे मंशा यही थी कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में बीजेपी के पक्ष में माहौल तैयार हो सके और हुआ भी ऐसा.

मेरठ के रहने वाले दलित चिंतक डाक्टर सुशील गौतम कहते हैं कि हमें इस बात का अंदाजा था कि बहन जी शायद नगीना सीट से चुनाव लड़ें. इस सीट से बीएसपी पहले भी जीत चुकी है. इस लोकसभा चुनाव में यदि बहन जी नगीना से चुनाव लड़तीं तो समूचे पश्चिमी यूपी में बीएसपी का वोट बैंक बढ़ता. वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश का कहना है कि शायद चुनाव लड़ के मायावती गठबंधन और अपने संगठन के प्रत्याशियों पर अधिक ध्यान न दे पाएं.

इस बात को ध्यान में रख कर ही उन्होंने चुनाव न लड़ने का मन बनाया हो, लेकिन इसके साथ ही उर्मिश का मानना है कि गठबंधन के साथी अखिलेश यादव हों चाहे मायावती, दोनों को चुनाव लड़ना चाहिए. मध्य या पश्चिमी यूपी से मायावती और पूर्वी यूपी से अखिलेश यादव चुनाव लड़ के गठबंधन के पक्ष में प्रभाव डालने का काम कर सकते हैं.

बीएसपी के लिए स्थितियां पहले जैसी नहीं

मायावती भले ही खुद के चुनाव न लड़ने के पीछे अपनी व्यस्तता को कारण बता रही हैं, लेकिन पार्टी के जानकारों का मानना है कि बीएसपी के लिए स्थितियां अब पहले जैसी नहीं है. जानकार बताते हैं कि बीएसपी में कांशीराम के समय जो संगठन तैयार हुआ था, उसी पर आज भी काम हो रहा है.

पार्टी के शीर्ष नेताओं ने संगठन को और मजबूत करने की दिशा में कोई ठोस काम नहीं किया है. संगठन पर पार्टी की कमजोर पकड़ का ही नतीजा है कि मायावती लोकसभा चुनाव लड़ने से कतरा रही हैं, जबकि 2004 से पहले तक ऐसा नहीं था.

पहले बीएसपी प्रमुख जिस भी सीट से चुनाव लड़ना चाहती थीं, वहां से नामांकन कर वे दूसरे प्रत्याशियों के प्रचार में व्यस्त हो जाती थीं. बावजूद इसके मायावती की सीट आराम से निकल जाती थी. संगठन पर पार्टी की कमजोर पकड का नतीजा है कि पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान बीएसपी को एक भी सीट नहीं मिली थी. जबकि पिछला लोकसभा चुनाव भी मायावती नहीं लड़ी थीं.

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पार्टी के पुराने और बड़े चेहरे अलग हो चुके हैं

बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ चुके एक पूर्व प्रत्याशी कहते हैं कि मायावती के खुद चुनाव न लड़ने के पीछे एक बड़ा कारण ये भी है कि पार्टी के बड़े व पुराने चेहरे अब संगठन से अलग राह चुन चुके हैं. नसीमुदृदीन सिदृीकी, स्वामी प्रसाद मौर्य, बाबू सिंह कुशवाहा जैसे कैडर पुराने नेता इस चुनाव में दूसरे दलों का दामन थाम चुके हैं, जिसके चलते काडर के वोट बैंक को पार्टी के लिए सहेज के रखना बीएसपी प्रमुख मायावती के लिए एक बड़ी चुनौती है.

पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान बीएसपी यूपी में आरक्षित सीटों पर भी खाता नहीं खोल पाई थी, जिससे मायावती को इस बात का अभास हो गया था कि पार्टी का कैडर वोट बैंक छिटक के बीजेपी में चला गया है.

यही कारण है कि मायावती पिछले लोकसभा चुनाव के बाद अपनी हर प्रेस कांफ्रेंस में दलितों को बीजेपी से आगाह करने का प्रयास करती रही हैं. इस चुनाव में बीएसपी को स्थितियां और भी बदली नजर आ रही हैं. यही कारण है कि इस चुनाव में मायावती बीजेपी के साथ कांग्रेस को भी बार बार निशाने पर ले रही हैं. कांग्रेस को बार-बार निशाने पर लेकर मायावती अपने कैडर को ये संदेश देना चाहती हैं कि बीजेपी से मुकाबला करने की ताकत बीएसपी में ही है.

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