उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के एक दैनिक समाचार पत्र में 16 सितंबर 2013 को जौनपुर (Jaunpur) गणेश उत्सव का पूरे पन्ने का एक विज्ञापन आया. इस विज्ञापन में दाहिनी तरफ IAS अफसर अभिषेक सिंह की फोटो लगी हुई थी. तीन दिवसीय महोत्सव में आने वाले कलाकारों की लिस्ट भी थी, जिसमें हनी सिंह, सुनील शेट्टी और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की पत्नी अमृता फडणवीस के नाम शामिल थे.
इस विज्ञापन के निकलने के बाद कयास लगने शुरू हो गए कि अभिषेक सिंह नौकरशाही छोड़कर राजनीति में कदम रख सकते हैं. इन कयासों को और बल तब मिला जब हाल ही में अभिषेक सिंह ने सिविल सेवा से इस्तीफा दे दिया. उनका इस्तीफा मंजूर हुआ या नहीं इसकी आधिकारिक पुष्टि अभी नहीं हो पाई है लेकिन चर्चाओं का बाजार गर्म है कि 2024 लोकसभा चुनाव में अभिषेक सिंह जौनपुर से अपनी दावेदारी ठोक सकते हैं.
अभिषेक सिंह के अलावा एक और पूर्व नौकरशाह दिनेश सिंह भी अपनी सियासी जमीन तलाशते-तलाशते जौनपुर पहुंच चुके हैं. मंडल आयुक्त चित्रकूट के पद से रिटायर होने के बाद दिनेश सिंह ने भी राजनीतिक पारी खेलने के संकेत दे दिए हैं.
कोरोना काल में बतौर जिलाधिकारी दिनेश सिंह अपने कार्यकाल के दौरान जौनपुर में किए गए विकास कार्यों के बल पर लोगों के बीच पहुंच रहे हैं.
जौनपुर में BJP पूर्व नौकरशाह पर खेलेगी दाव?
2022 विधानसभा चुनाव से पहले कानपुर पुलिस कमिश्नर असीम अरुण ने इस्तीफा देकर सबको चौंका दिया था. बाद में वह बीजेपी में शामिल हो गए और उन्हें टिकट भी मिला.
उन्होंने चुनाव में जीत हासिल की और मंत्री भी बने. असीम अरुण के अलावा राजेश्वर सिंह और एके शर्मा जैसे नाम भी हैं, जिन्होंने कार्यकाल के दौरान इस्तीफा या VRS लेकर बीजेपी का दामन थामा. राजेश्वर सिंह इस समय विधायक हैं, तो वहीं एके शर्मा उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री पद पर हैं.
बड़ा सवाल यह है कि 2024 के अहम लोकसभा चुनाव में पार्टी जौनपुर में किसी पूर्व नौकरशाह पर दांव लगाएगी या किसी परिपक्व राजनीतिक चेहरे को ही वरीयता मिलेगी.
अभिनय में रुचि रखने वाले पूर्व IAS अफसर अभिषेक सिंह, जौनपुर के केराकत में टिसौरी गांव के रहने वाले हैं. इस लिहाज से वो स्थानीय तो हैं लेकिन जौनपुर जैसी मुश्किल लोकसभा सीट पर लोकप्रिय और मजबूत पकड़ वाले नेता बन पाना उनके लिए अभी दूर की कौड़ी है.
हाल ही में उन्होंने गणेश महोत्सव का आयोजन किया था, जिसमें प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने भी शिरकत की थी. इसके बाद से अभिषेक सिंह की राजनीतिक पारी की चर्चाओं और जौनपुर से दावेदारी को और बल मिला था.
वहीं पूर्व IAS दिनेश सिंह की जड़ें जौनपुर से नहीं हैं. दिनेश सिंह कोरोना महामारी के दौरान जौनपुर में बतौर जिलाधिकारी तैनात रहे. साल 2020 में लॉकडाउन की घोषणा के बाद तत्कालीन जिलाधिकारी दिनेश सिंह के निर्देश पर जिले के 12 हजार गरीब परिवारों की लिस्ट तैयार की गई थी. आम जनता से अपील के बाद राशन सामग्री इकट्ठा करके इन परिवारों के घर तक पहुंचाया गया था. अपने कार्यकाल के दौरान जनहित के विकास कार्यों और गरीब लोगों की मदद कर आम लोगों के बीच में अपनी जगह बनाने वाले दिनेश सिंह एक बार फिर लोगों के बीच हैं.
कई जातियों का है दबदबा
चुनावी समीकरण की बात करें तो, यहां पर ब्राह्मण, क्षत्रिय, मुस्लिम, यादव और अनुसूचित जाति के लोगों का दबदबा है. इस वजह से जौनपुर में कई चुनावी मुकाबला त्रिकोणीय रहा.
2019 में बीजेपी की हार की बड़ी वजह एसपी और बीएसपी का गठबंधन था. मुस्लिम, यादव और अनुसूचित जाति के वोटरों ने चुनाव के नतीजे गठबंधन के पक्ष में मोड़ दिए.
2019 में गठबंधन की तरफ से बीएसपी के प्रत्याशी श्याम सिंह यादव को मैदान में उतारा गया था, तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी की तरफ से केपी सिंह मोर्चा संभाल रहे थे. श्याम सिंह यादव को 5,21,128 और केपी सिंह को 4,40,192 वोट मिले थे. 2014 में अगर INDIA गठबंधन में बीएसपी शामिल नहीं हुई, तो इस बार बीजेपी के लिए राह आसान हो जाएगी.
पारस नाथ यादव ने बनाए रखा था SP का दबदबा
पहली बार 1962 में जौनपुर लोकसभा सीट पर ठाकुर बिरादरी के नेता ब्रह्मजीत सिंह जनसंघ के टिकट पर जीते थे. इसके बाद BJP के टिकट पर 1989 में पहली बार राजा यादवेंद्र दत्त दुबे चुनाव जीते थे. जौनपुर लोकसभा सीट पर BJP की ये पहली जीत थी. 1999 में स्वामी चिन्मयानंद ने दूसरी बार यह सीट बीजेपी की झोली में डाली थी. 16 साल बाद 2014 में एक बार फिर मोदी लहर में यह सीट बीजेपी के खाते में गई थी. जौनपुर के राजनीतिक इतिहास में 7 बार ठाकुर, चार बार यादव, 2 बार ब्राह्मण और एक बार मुस्लिम लीडर को जनता ने अपना सांसद चुना है.
जौनपुर की राजनीति में तीन दशक से ज्यादा वक्त तक पारसनाथ यादव ने अपना दबदबा बनाए रखा. 1989 से 2020 तक पारसनाथ ने कुल 9 चुनाव जीते.
मल्हनी, मड़ियाहू और बरसठी तीनों विधानसभा से कुल 7 बार विधानसभा पहुंचे. जौनपुर लोकसभा सीट 2 बार जीती. सरल स्वभाव और जमीन से जुड़े नेताओं में गिने जाने वाले पारसनाथ यादव, तीन बार मंत्री भी रहे. जौनपुर में पारसनाथ यादव एसपी के लिए जीत की गारंटी माने जाते थे. उनके सामने BJP ने काफी कोशिशें की, लेकिन 1999 के बाद से लगातार चार लोकसभा चुनाव में पार्टी सिर्फ एक बार 2014 में जीत दर्ज कर सकी है. 2020 में पारसनाथ यादव का निधन हो गया.
माफिया धनंजय सिंह का अलग राजनीतिक खेमा
योगी सरकार जहां माफिया की कमर तोड़ने का दावा करती है, वहीं दूसरी तरफ धनंजय सिंह जैसे माफिया राजनेता भी है, जिनके खिलाफ सरकार ने आंख टेढ़ी नहीं की है. हत्या अपहरण जैसे तीन दर्जन से ज्यादा मुकदमे धनंजय सिंह पर दर्ज हैं. बाहुबली छवि के धनंजय सिंह का सियासी पिच जौनपुर है.
27 साल की उम्र में धनंजय सिंह ने 2002 में रारी (अब मल्हनी) विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव जीतकर सबको चौंका दिया था. वह दोबारा इस सीट से JDU के टिकट पर जीते थे. 2009 में वो बीएसपी के टिकट पर जौनपुर से सांसद चुने गए.
माफियाओं के खिलाफ कार्यवाही करने का दावा करने वाली बीजेपी धनंजय सिंह से दूरी बनाए रखना चाहेगी. INDIA गठबंधन का भी धनंजय सिंह की तरफ झुकाव होना कठिन माना जा रहा है. अगर ऐसा होता है, तो गठबंधन को यादव और मुस्लिम बिरादरी की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है. ऐसे में चर्चा है कि धनंजय सिंह फिर से किसी क्षेत्रीय पार्टी या फिर निर्दल ही अपना दावा ठोक सकते हैं.
(इनपुट: दीपक सिंह)
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