मध्य प्रदेश में फ्लोर टेस्ट करवाने की मांग वाली बीजेपी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में जमकर बहस हुई. कांग्रेस ने कोर्ट में बीजेपी पर राज्य सरकार को अस्थिर करने का आरोप लगाया और खाली पड़ी सीटों पर उपचुनाव होने तक फ्लोर टेस्ट रोकने की मांग की. वहीं बागी विधायकों ने कोर्ट से कहा कि उन्होंने अपनी मर्जी से इस्तीफा दिया और वो कांग्रेस नेताओं से नहीं मिलना चाहते.
इस बीच बेंगलुरु में बागी विधायकों से मिलने पहुंचे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह को पुलिस ने रामादा होटल के बाहर रोक लिया, जिसके बाद दिग्विजय वहीं धरने पर बैठ गए थे. बाद में दिग्विजय ने कर्नाटक हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की और बागी विधायकों से मिलने की इजाजत मांगी. हालांकि हाई कोर्ट ने उनकी याचिका को ठुकरा दिया.
सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस की दलील
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ओर से दाखिल याचिका पर बुधवार 18 मार्च को कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई. सबसे पहले कोर्ट ने बागी विधायक मनोज चौधरी के भाई की ओर से दाखिर बंदी प्रत्यक्षीकरण (हेबियस कोर्पस) याचिका को खारिज कर दिया. कोर्ट ने याचिकाकर्ता को हाई कोर्ट में अपील करने को कहा.
कांग्रेस की ओर से इस मामले की सुनवाई के लिए वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे मौजूद थे. दवे ने अपनी दलीलों में कहा-
- 18 महीनों से राज्य में स्थिर सरकार चल रही थी. बीजेपी ने अपनी ताकत का इस्तेमाल कर लोकतांत्रिक सिद्धांतों को नुकसान पहुंचाया है.
- “बीजेपी की ओर से स्पीकर को सौंपे गए बागी विधायकों के इस्तीफे की जांच होनी चाहिए. विधायकों के इस्तीफे डरा-धमका कर लिए गए हैं. उन्होंने अपनी मर्जी से ये नहीं किया है.
- स्पीकर सबसे बड़ी ताकत हैं. राज्यपाल उनको लांघने की कोशिश कर रहे हैं.
- ऐसी कोई आफत नहीं आ रही है कि कांग्रेस सरकार को चला जाना चाहिए और शिवराज सिंह चौहान की सरकार को जनता पर थोपा जाना चाहिए.
इसी दौरान दवे ने जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हेमंत गुप्ता की बेंच से कहा कि बागी विधायकों को फिर से चुनाव का सामना करना चाहिए और जीत कर विधानसभा में आना चाहिए. इस पर जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि बागी विधायक यही तो कर रहे हैं और अपनी सदस्यता त्याग रहे हैं.
इसी दौरान कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि जब तक खाली पड़ी सीटों पर उपचुनाव नहीं हो जाते, तब तक फ्लोर टेस्ट टाल दिया जाना चाहिए.
शिवराज सिंह चौहान-बीजेपी की दलील
शिवराज सिंह चौहान और बीजेपी की ओर से इस मामले में वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी पेश हुए. रोहतगी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस हॉर्स ट्रेडिंग करना चाहती है. अपनी दलीलों में रोहतगी ने कहा-
- हम बेंच के चेंबर में 16 बागी विधायकों को पेश कर सकते हैं.
- कर्नाटक हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जाकर बागी विधायकों से मिल सकते हैं और पूरी वीडियो रिकॉर्डिंग कर सकते हैं.
- कांग्रेस बागी विधायकों को भोपाल बुलाना चाहती है ताकि उन्हें लालच देकर हॉर्स ट्रेडिंग की जा सके
- कोई राजनीतिक दल बागी विधायकों से मिलने के लिए कोर्ट में याचिका कैसे दाखिल कर सकता है?
- कमलनाथ सरकार बहुमत खो चुकी है और एक भी दिन सत्ता में नहीं रह सकती.
बागी विधायकों की दलीलें
कांग्रेस के बागी विधायकों ने कोर्ट से कहा कि उन्हें किसी ने भी बंधक नहीं बनाया और उन्होंने अपनी मर्जी से इस्तीफे का फैसला किया. इन विधायकों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह ने कहा-
- हम कांग्रेस नेताओं से नहीं मिलना चाहते. कोई ऐसा कानून नहीं है, जो हमें मजबूर करे.
- हमने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर साफ कहा था कि हमने अपनी मर्जी से फैसला लिया है.
- इस्तीफा देने का अधिकार संवैधानिक है, लेकिन स्पीकर का भी जिम्मेदारी है कि इस्तीफों को स्वीकार करे. स्पीकर इस्तीफों को अटकाकर नहीं रख सकता.
- हम संविधान के मुताबिक परिणाम भुगतने को तैयार हैं, लेकिन कांग्रेस नेताओं से नहीं मिलेंगे.
- हमने विचारधारा के आधार पर इस्तीफा दिया. कोर्ट इसकी बारीकियों पर नहीं जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट और स्पीकर ने क्या कहा?
जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस गुप्ता की बेंच के सामने बागी विधायकों ने भी खुद को प्रस्तुत करने की पेशकश की, लेकिन कोर्ट ने इसे ठुकरा दिया. ऐसी ही पेशकश मुकुल रोहतगी ने भी की थी और कोर्ट ने उसे भी ठुकरा दिया था. कोर्ट ने इस मामले में मध्य प्रदेश विधानसभा के स्पीकर की ओर से पेश अभिषेक मनु सिंघवी से भी सवाल जवाब किए.
कोर्ट ने विधायकों के इस्तीफे पर स्पीकर से सवाल किया कि क्या वो इस्तीफे तुरंत स्वीकार करेंगे. इस पर स्पीकर की ओर से सिंघवी ने जवाब दिया कि स्थिति सामान्य होने के 1-2 दिन बाद स्पीकर फैसला ले पाएंगे.
इस पर बागी विधायकों के वकील मनिंदर सिंह ने कहा कि वो स्पीकर के सामने पेश नहीं होना चाहते क्योंकि ये उनकी सुरक्षा का मामला भी है.
वहीं सीएम कमलनाथ की ओर से पेश हुए वकील और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने कोर्ट से कहा कि वो उन विधायकों से मिलना चाहते हैं, तो कोर्ट ने कहा कि आपकी अपील में समस्या है कि ये ‘बच्चे की कस्टडी’ जैसा मामला नहीं है.
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले को गुरुवार 19 मार्च सुबह 10.30 बजे तक के लिए टाल दिया.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)