मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) की राजनीति इस समय काफी दिलचस्प बनी हुई है. एक तरफ सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने चुनाव मोड में काम करना शुरू कर दिया है, आला नेताओं जैसे प्रधानमंत्री मोदी (Narendra Modi) और गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) के दौरे हो रहे हैं, तो वहीं कांग्रेस (Congress) भी धीरे धीरे गुपचुप ही सही लेकिन चुनाव प्रबंधन में लगी हुई है लेकिन इन सबके बीच जो हल्ला मचाकर चुनावी बिगुल बजा रहे हैं, उनमें सबसे प्रमुख जय युवा आदिवासी शक्ति है.
इस बार अजब गजब मध्यप्रदेश के सियासी किस्सों में बात करेंगे इसी संगठन की और कैसे इसकी बढ़ती लोकप्रियता बीजेपी के लिए चिंता और कांग्रेस के लिए चुनाव प्रबंधन में कठिनाई बन सकती है.
धार जिले की मनावर विधानसभा से कांग्रेसी विधायक हीरालाल अलावा की अगुवाई में बना संगठन जयस (JAYS) राजनीतिक बिसात में कुछ ऐसे मोहरों का मालिक है, जिनकी मदद से कांग्रेस ने 2018 में विधानसभा चुनाव जीता था और भाजपा को हार मिली थी.
आखिर क्यों है जयस का इतना दबदबा?
बीते कुछ वर्षों में मध्यप्रदेश की राजनीति में नए चेहरों का वर्चस्व बढ़ा है और उस से भी ज्यादा बढ़ा है लोगों में युवाओं के प्रति विश्वास. आदिवासी और दलित वर्ग के क्षीण हो चुके प्रतिनिधित्व की बागडोर नए युवा संगठन जैसे कि भीम आर्मी और जयस (JAYS) ने संभाल ली है.
इन संगठनों ने युवाओं के साथ समाज के बड़े बूढ़ों में भी अपनी लोकप्रियता बढ़ाई है. हर मौके पर उपस्थित रहना, गांव-गांव में प्रतिनिधत्व, जरूरत पर मदद के लिए खड़ी युवाओं की एक टोली ने इन संगठनों को बल दिया है.
इनके अलावा युवाओं में तेजी से बढ़ी राजनीतिक जागरूकता और प्रतिनिधत्व की मंशा ने भी इन संगठनों को आज निर्णायक की कुर्सी पर बैठाने में खासा मदद की है.
जैसे जैसे इन संगठनों की ताकत बढ़ रही है सत्ताधारी दल बीजेपी के माथे पर शिकन भी बढ़ रही है. इसके अलावा आदिवासी और दलित समाज को लुभाने का प्रयास भी बढ़ रहा है.
मध्य प्रदेश में आदिवासी और दलित वोट बनाते हैं किस्मत! कौन जीतेगा इनका विश्वास?
2011 की जनगणना के मुताबिक मध्य प्रदेश में सबसे अधिक आदिवासी हैं, जिनमें अनुसूचित जनजाति राज्य की जनसंख्या का 21.5 प्रतिशत और अनुसूचित जाति 15.6 प्रतिशत है. राज्य में अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए 47 और अनुसूचित जाति (SC) के लिए 35 सीटें आरक्षित हैं.
2018 में, बीजेपी अपने पिछले आंकड़े यानी कि 31 से घटकर मात्र 16 एसटी सीटें जीतने में कामयाब हो पाई थी. वहीं कांग्रेस ने अपने एक दशक में सबसे बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए 24 सीटें जीती थी.
पिछले विधानसभा चुनावों में आदिवासी और दलित वोटरों का विश्वास काफी हद तक खो चुकी बीजेपी ने इस बार अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए लगभग 2 साल पहले से ही आदिवासी और दलित समाज के बीच खोया हुआ विश्वास पाने की कोशिशें शुरू कर दी है.
लेकिन अब जबकि दोनो ही वर्गों के लोगों को अपने प्रतिनिधित्व के लिए सुदृढ़ संगठन जमीन पर मौजूद मिल रहे हैं, तब प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के लिए मुसीबतें बढ़ रही हैं.
मध्यप्रदेश की लगभग 80 विधानसभा सीटों में आदिवासी निर्णायक वोटरों की भूमिका निभाते हैं. इन पूरे 80 सीटों पर जयस के फाउंडर हीरालाल अलावा ने हाल ही में धार के कुक्षी तहसील में 20 अक्टूबर को आयोजित महापंचायत में चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है.
हालांकि इस घोषणा से कांग्रेस में भी थोड़ी चिंता की लकीरें बढ़ी हैं क्योंकि जयस ने इन सीटों पर स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने की घोषणा की है, यानी कि बगावत हो सकती है.
अगर हीरालाल अलावा कांग्रेस से बगावत करते हैं तो ये तय मानना चाहिए की कांग्रेस को भरपाई न कर पाने वाला नुकसान होगा.
वहीं दूसरी ओर बीजेपी के लिए भी JAYS की स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने की बात नुकसान करती हुई नजर आ रही है. अगर विधायक उम्मीदवारों के चयन में JAYS ने दिमाग से काम लिया तो बीजेपी के लिए मुश्किलें कई गुना बढ़ जाएंगी.
जयस के पास मजबूत संगठन है लेकिन नेतृत्व अभी कमजोर
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो प्रदेश भर में जयस (JYAS) के साथ इस समय लगभग 6 लाख आदिवासी युवा जुड़कर काम कर रहे हैं और 80 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही जयस ने इस संख्या बल को बढ़ाने के लिए भी काम करना चालू कर दिया है. बूथ स्तर पर नेतृत्व ढूंढ़ रहे जयस के लिए युवाओं के बीच में बढ़ती लोकप्रियता बहुत मददगार है.
अब तक ज्यादातर सामाजिक मुद्दों पर काम करने वाले इस संगठन के पास जमीनी कार्यकर्ताओं की ताकत तो बढ़ रही है लेकिन हर विधानसभा में इन कार्यकर्ताओं का नेतृत्व करने वाले लोगों की अभी कमी खल रही है.
मध्यप्रदेश के जयस प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष रविराज बघेल ने कहा कि
अभी तक हमारे जयस ने 50 से अधिक विधानसभा क्षेत्रों में ग्राऊंड स्तर पर मजबूती के साथ बूथ स्तर की कमिटी बना ली है. आने वाले कुछ महीनों में हम 80 विधानसभा सीटों पर हर बूथ पर कमिटी बनाने का टारगेट लेकर चल रहे हैं. पांचवीं अनुसूची, पेसा कानून, बेरोजगारी, महंगाई, गरीबी, अत्याचार जैसे मुद्दों पर हम ग्राउंड लेवल पर काम कर रहे हैं.
संगठन के ही एक अन्य सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि संगठन से जुड़े युवाओं में जोश तो बहुत है और आदिवासी समाज में जागरूकता भी बढ़ी है लेकिन इस जोश और जागरूकता को नेतृत्व की कमी खल रही है, जिसे जल्द पूरा करने की कवायद भी चल रही है.
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