राज्यसभा चुनाव (Rajyasabha Election) के बाद सोमवार, 20 जून को महाराष्ट्र विधान परिषद (MLC) चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच एक और मुकाबला देखने को मिला. जिसमें कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा और बीजेपी ने अपने पांचवे एमएलसी को भी जिता लिया. दरअसल महाराष्ट्र में 10 विधानपरिषद की सीटों के लिए मतदान हुआ, जिसके लिए 11 उम्मीदवार थे. बीजेपी के 5, एनसीपी के 2, शिव सेना के 2 और कांग्रेस के एक एमएलसी को जीत मिली.
मुख्य मुकाबला 10 वीं सीट के लिए कांग्रेस के मुंबई अध्यक्ष भाई जगताप और बीजेपी के प्रसाद लाड के बीच हुआ.
सुबह नौ बजे शुरू हुआ मतदान शाम चार बजे खत्म हुआ और रात करीब 10 बजेतक नतीजे आये. इससे पहले भी MVA को राज्यसभा चुनाव में बीजेपी ने मात दी थी. 10 जून को 6 सीटों के लिए हुए राज्यसभा चुनाव में शिवसेना के दूसरे उम्मीदवार संजय पवार बीजेपी के धनंजय महादिक से हार गए थे. देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली बीजेपी ने छोटे दलों और निर्दलीय विधायकों को लुभाकर और चतुर वोट आवंटन के जरिए तीन सीटों पर कब्जा किया.
इस बार कांग्रेस और एनसीपी नेताओं ने पिछले हफ्ते राज्य विधान परिषद के चुनाव की रणनीति पर चर्चा करने के लिए मुख्यमंत्री और शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के साथ मीटिंग की थी. जिसके बाद तीनों पार्टियों ने अपने विधायकों को मुंबई के अलग-अलग होटलों में रखा था.
तीन विधायक वोट से बाहर
288 सदस्यीय महाराष्ट्र सदन की प्रभावी ताकत घटकर 285 हो गई. क्योंकि तीन विधायकों ने आज वोट नहीं दिया. क्योंकि शिवसेना के एक विधायक रमेश लटके की हाल ही में मृत्यु हो गई, दो एनसीपी विधायक अनिल देशमुख और नवाब मलिक को सुप्रीम कोर्ट ने एमएलसी चुनावों के लिए मतदान करने की अनुमति से वंचित कर दिया.
बता दें कि हर उम्मीदवार को जीतने के लिए कम से कम 26 विधायकों के समर्थन की जरूरत होती थी, और छोटे दलों या निर्दलीय उम्मीदवारों के 29 विधायक चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका थे.
106 विधायकों के साथ बीजेपी आराम से चार सीटें जीती, लेकिन जिस पांचवीं सीट से प्रसाद लाड चुनाव लड़ रहे थे, उसके लिए पार्टी को दलबदलुओं और निर्दलीय उम्मीदवारों के समर्थन की जरूरत थी. जिसमें वो सफल भी हुए.
इसके अलावा 55 विधायकों वाली शिवसेना और 51 विधायकों वाली एनसीपी क्रमश: अपनी दो सीटें आसानी से जीत गई, जबकि केवल 44 विधायकों वाली कांग्रेस को अपने दूसरे उम्मीदवार भाई जगताप के निर्वाचित होने के लिए निर्दलीय और अन्य छोटी पार्टियों से कम से कम आठ वोटों की जरूरत थी. लेकिन कांग्रेस 8 वोट जुगाड़ने में भी नाकाम रही.
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