शिवसेना (Shivsena) का बॉस कौन? क्या बागी विधायक आयोग्य घोषित होंगे? इन सवालों के जवाब के लिए मामला सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में हैं. शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) ने कथित दलबदल और बागी विधायकों को डिप्टी स्पीकर द्वारा जारी अयोग्यता नोटिस को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसपर आज यानी 27 जून को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई हुई है.
सुप्रीम कोर्ट ने डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवाल द्वारा एकनाथ शिंदे और 15 बागी विधायकों के खिलाफ जारी अयोग्यता नोटिस के खिलाफ बागी विधायकों द्वारा दायर याचिका पर डिप्टी स्पीकर, महाराष्ट्र राज्य विधानसभा के सचिव, केंद्र और अन्य को नोटिस जारी किया है.
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने शिवसेना नेता अजय चौधरी, सुनील प्रभु को भी नोटिस जारी कर पांच दिनों के अंदर जवाब दाखिल करने को कहा है.
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की अवकाशकालीन पीठ इस मामले पर सुनवाई की. अब इस मामले पर 11 जुलाई को अगली सुनवाई होगी.
बता दें कि एकनाथ शिंदे की याचिका में डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवाल के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की अस्वीकृति को चुनौती दी गई है. याचिका में कहा गया है कि डिप्टी स्पीकर द्वारा अजय चौधरी को शिवसेना विधायक दल के नेता के रूप में मान्यता देना अवैध है. यही नहीं याचिका में शिंदे ने शिवसेना के 2/3 से ज्यादा विधायकों के समर्थन का दावा किया है और कहा है कि जब तक डिप्टी स्पीकर को हटाने से जुड़े मुद्दे पर फैसला नहीं हो जाता, तब तक अयोग्यता नोटिस पर कार्यवाही रोक दी जानी चाहिए.
इसके अलावा शिवसेना के बागी विधायक भरत गोगावले (Bharat Gogavale) ने भी याचिका दाखिल की है.
याचिका की अहम बातें
याचिका में यह भी कहा गया है कि शिंदे गुट के विधायकों पर पार्टी विरोधी काम करने का आरोप लगाना गलत है.
साथ ही ये भी कहा गया है कि विधायकों के बहुमत ने भरत गोगावले को चीफ व्हिप नियुक्त किया है. वहीं अल्पमत (उद्धव ठाकरे कैंप) की तरफ से प्रस्ताव पारित कर सुनील प्रभु को चीफ व्हिप बनाया गया है. यह अवैध है. इस चीफ व्हिप की तरफ से जारी आदेश का कोई मतलब नहीं है.
उपसभापति किसी भी सदस्य को हटाने की मांग करने वाले प्रस्ताव के लंबित रहने के दौरान संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत किसी भी सदस्य को अयोग्य नहीं ठहरा सकते.
नरहरि जिरवाल एनसीपी से इस्तीफा दिए बिना डिप्टी स्पीकर के रूप में कार्य कर रहे हैं और एनसीपी की गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं. शिवसेना के विचारक एनसीपी के विरोधी हैं. इसलिए जिरवाल राजनीतिक रूप से पक्षपाती हैं और उनसे निष्पक्ष और निष्पक्ष निर्णय लेने की उम्मीद नहीं की जा सकती है.
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