देश के सबसे प्रगतीशील राज्य कहे जाने वाले महाराष्ट्र (Maharashtra) में इन दिनों सियासी लड़ाई बेहद खतरनाक अंदाज में लड़ी जा रही है. खतरनाक इसलिए क्योंकि सियासी दलों और उसके नेताओं ने इस लड़ाई में जांच एजेंसियों ने ऊंचे पदों पर बैठे अधिकारियों को भी टारगेट करना शुरू किया है. हालांकि जो भी नेता और अधिकारी इस पूरे प्रकरण में कोई न कोई भूमिका अदा कर रहे हैं उन सभी के दामन पूरी तरह से साफ हैं ऐसा भी नहीं है.
देशमुख की तलाश में सीबीआई
महाराष्ट्र में क्या चल रहा है इस बात की कल्पना इसी से की जा सकती है कि कुछ महीनों पहले तक गृह मंत्री रहे एनसीपी के वरिष्ठ नेता अनिल देशमुख को केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई के अधिकारी खोज रहे हैं. दूसरी ओर मुंबई पुलिस के आयुक्त रहे वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी परमबीर सिंह को राज्य की जांच एजेंसी सीआईडी के अधिकारी बड़ी शिद्दत से तलाश रहे हैं.
यहां तस्वीर पूरी तरह से साफ है. कुछ कुछ पश्चिम बंगाल की तरह आरोप लग रहे हैं कि केंद्र सरकार के दबाव में सीबीआई तीन दलों की महाराष्ट्र की महाविकास आघाड़ी सरकार को हिलाने की कोशिश कर रही है, तो राज्य सरकार भी जवाब में परमबीर सिंह का गिरेबान पकड़ कर केंद्र को जस का तस जवाब देने की कोशिश में लगी है.
क्या ममता दीदी की तरह आक्रामक हो पाएंगे उद्धव ठाकरे ?
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले वहां सीबीआई और राज्य सरकार के बीच चले घमासान को पूरे देश ने अपनी आंखों से देखा और अनुभव किया है. महाराष्ट्र में भी कुछ-कुछ मामला वैसा ही होने की वजह से लाख टके का सवाल जनता की जुबान पर यह है कि क्या मुख्यमंत्री ममता दीदी की तरह मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भी आक्रामक तेवर दिखाएंगे? इसका जवाब फिलहाल हां में मिलता नजर नहीं आ रहा है, क्योंकि पश्चिम बंगाल में ममता बैनर्जी की पूरी साख दांव पर थी और वह प्रमुख प्रतिद्वंदी दल बीजेपी से अकेले आर-पार की लड़ाई लड़ रही थीं. महाराष्ट्र में मामला उल्टा है.
इसकी वजह यह है कि महाराष्ट्र में एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने अगुवाई करके शिवसेना और कांग्रेस को साथ लाकर महाविकास आघाडी सरकार बनवा तो दी है, लेकिन तीन दलों की इस सरकार में शामिल मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और कई मौकों पर खुद शरद पवार का रुख केंद्र सरकार के प्रति बेहद नरम दिखाई पड़ता है. इसलिए पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख और पूर्व मुंबई पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह के मसले को लेकर जो कुछ भी मुंबई और महाराष्ट्र की सियासत में चल रहा है, वह सिर्फ और सिर्फ हिसाब-किताब चुकता करने तक सीमित नजर आता है.
सीबीआई के जरिए केंद्र की मंशा ये हो सकती है कि एक बार अनिल देशमुख उसके हाथ लग जाए तो मुंबई पुलिस की पोस्टिंग में किसने किसने मलाई खाई और कौन कौन शामिल था, इसका खुलासा कर राज्य सरकार को अस्थिर किया जाए. चूंकि गृह मंत्रालय एनसीपी के पास है और इस पार्टी के सर्वेसर्वा शरद पवार हैं. लिहाजा सीबीआई की कोशिश सीधे पवार का नाम भी किसी न किसी ढंग से देशमुख प्रकरण के खुलासे में लाने की हो सकती है.
पूर्व मुंबई पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह राजनेताओं के सियासी खेल में ऐसे बुरे फंसे हैं कि वे किस करवट बैठेंगे, यह सही सही कहना मुश्किल हैं. उनके लिए थोड़ी राहत की बात यह है कि केंद्रीय जांच एजेंसी एनआईए ने उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर एंटीलिया के पास विस्फोटक रखने और मनसुख हिरेन मामले में उन्हें मास्टर माइंड अपनी चार्जशीट में नहीं बनाया है. इसके बावजूद वे भारी मुसीबत में हैं. क्योंकि उनके खिलाफ लुक आउट नोटिस जारी है. एनआईए, सीआईडी और ठाणे पुलिस के करीब पांच मामलों में उनकी तलाश जारी है.
राज्य सरकार ने उनके खिलाफ जांच के लिए चांदीवल आयोग का गठन कर रखा है. सिंह को अच्छी तरह से पता है कि यह आयोग उन्हें हर हाल में झूठा व गलत साबित करने वाला है. लिहाजा उन्होंने आयोग द्वारा सुनवाई के जारी एक भी समन को स्वीकार नहीं किया है. और अब तो उनके विदेश फरार हो जाने की चर्चा भी शुरू हो गई है.
इस पूरे प्रकरण का महाराष्ट्र की राजनीति पर असर ?
अनिल देशमुख और परमबीर सिंह के प्रकरण से सीधे तौर पर महाराष्ट्र की राजनीति पर असर पड़ रहा है. राजनीति में यदि किसी नेता या दल की छवि खराब हो जाए तो उसका बहुत ही दूरगामी परिणाम होता है. चूंकि पूर्व मुंबई पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह ने राज्य सरकार विशेषकर तत्कालीन गृह मंत्री अनिल देशमुख पर 100 करोड़ रुपए की वसूली करने का गंभीर आरोप लगाया है. इसलिए महाविकास आघाडी सरकार में शामिल एनसीपी के खिलाफ प्रमुख विपक्षी पार्टी बीजेपी जनता के बीच जाकर एनसीपी को भ्रष्टाचारियों की पार्टी साबित करने की कोशिश में जुटी है.
ध्यान रहे कि गिरफ्तारी से पूर्व पुलिस अधिकारी सचिन वझे ने परिवहन मंत्री अनिल परब पर मुंबई BMC के ठेकेदारों से वसूली करना का ऐसा ही आरोप लगाया है. इस पूरे प्रकरण की वजह से केंद्र सरकार को सीबीआई और एनआईए के माध्यम से सत्तारूढ़ दलों के नेताओं की गर्दन पकड़ने का मौका मिला है. ईडी की जांच शिवसेना सहित सत्तारूढ़ दल के कई नेताओं के खिलाफ चल रही है. यह सबसे अधिक गंभीर बात है.
इस बात को बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष देवेंद्र फडणवीस और बीजेपी विधायक आशिष शेलार अच्छी तरह से समझ रहे हैं. इसी कारण शेलार ने भी केंद्रीय मंत्री नारायण राणे की तरह महाराष्ट्र में कभी मध्यावधि चुनाव होने की बात सार्वजनिक मंचों से कहना शुरू किया है.
हालांकि जब तक अनिल देशमुख सीबीआई और परमबीर सिंह सीआईडी के हाथ नहीं लगते तब तक ठाकरे सरकार सेफ जोन में नजर आ रही है. बहुत संभव है कि अंदरूनी साठगांठ होने पर जस्टिस चांदीवाल कमीशन की ओर से सिंह को राहत मिले और बदले में केंद्रीय जांच एजेंसी एनआईए के समक्ष ठंडे पड़ जाएं तो बाजी पलट जाएगी. पर भविष्य में इन दोनों मामलों का महाराष्ट्र की सियासत पर कितना और क्या असर पड़ा? इस बात को देखना और समझना बहुत ही दिलचस्प रहने वाला है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)