पिछले साल अक्टूबर महीने में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आए. नतीजों से साफ था कि महाराष्ट्र की जनता ने बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के पक्ष में वोट दिया और दोनों की फिर सत्ता में वापसी होगी. फडणवीस फिर सीएम बनेंगे. वो बने भी लेकिन केवल 3 दिनों के लिए. महाराष्ट्र की राजनीति में ऐसा उलटफेर हुआ जिसकी उस वक्त किसी राजनीतिक पंडित ने कल्पना भी नहीं की थी. 35 दिनों तक जो कुछ हुआ उसने सभी को चौंकाया और टीवी कैमरों के जरिए सब दिखता रहा. लेकिन पर्दे के पीछे भी बहुत कुछ हुआ इसका खुलासा एबीपी न्यूज के पश्चिम भारत के संपादक जितेंद्र दीक्षित ने अपनी किताब “35 DAY: How the Maharashtra politics has changed forever in 2019” में किया है.
महाराष्ट्र की राजनीति में हुए सबसे बड़े उलटफेर में से एक अजित पवार का फडणवीस से मिलना था. लेकिन इस मुलाकात से एक दिन पहले क्या-क्या हुआ ? उस रोज अजित पवार को किसका मैसेज और कॉल आया जिसके बाद वो असहज हो गए. सीनियर पवार ने कैसे शिवसेना के साथ गठबंधन के लिए सोनिया गांधी को राजी किया? इस किताब में इन सभी घटनाओं का विस्तार से ब्योरा लिखा गया है.
शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस की बैठक में क्या हुआ?
लगभग 4 बजे तीनों दलों (कांग्रेस, शिवसेना-एनसीपी) के प्रमुख नेता, नेहरू केंद्र में पहुंचने लगे. कांग्रेस की ओर से अहमद पटेल, केसी वेणुगोपाल, मल्लिकार्जुन खड़गे, बालासाहब थोराट, पृथ्वीराज चव्हाण आए जबकि एनसीपी से शरद पवार, प्रफुल पटेल, अजित पवार, जयंत पाटिल और शिवसेना से उद्धव ठाकरे, आदित्य ठाकरे, संजय राउत, एकनाथ शिंदे और मिलिंद नारवेकर नेहरू सेंटर पहुंचे.
बैठक शुरू हुई. एनसीपी प्रमुख शरद पवार बीच की कुर्सी में बैठे थे और उनके बाजू में अजित पवार थे. शरद पवार के पास एक मोटा फाइल फोल्डर भी था. बैठक में शुरुआत में इस बात पर फैसला हो गया कि गठबंधन की इस सरकार में सीएम पद शिवसेना के पास होगा. क्यूंकि 56 सीटों के साथ वो सबसे बड़ा दल है. लेकिन एनसीपी के कुछ नेताओं का कहना था कि सीएम पद शिवसेना और एनसीपी के बीच रोटेट होना चाहिए. हालांकि शरद पवार ने तुरंत ही इस बात को खारिज कर दिया. पवार इस बात को अच्छी तरह जानते थे कि उनकी पार्टी में कई लोगों की उच्च महत्वकांक्षा है इससे पार्टी को नुकसान हो सकता है .
इसके बाद शरद पवार ने कहा कि गठबंधन की सरकार का नेतृत्व उद्धव ठाकरे करेंगे. उद्धव ठाकरे ने भी पवार के इस प्रस्ताव पर सिर हिलाकर सहमति दी. इससे पहले उद्धव ठाकरे ने कभी खुद को सीएम पद के लिए प्रोजेक्ट नहीं किया था. यहां तक सब कुछ ठीक था लेकिन बैठक में जैसे-जैसे कुछ और मुद्दे सामने आने लगे नेताओं के बीच नोक-झोंक तेज हो गई.
विधानसभा का अध्यक्ष पद किसके पास रहेगा? कांग्रेस ने कहा कि एनसीपी ने उन्हें विधानसभा अध्यक्ष पद देने का वादा किया था. इस पर पृथ्वीराज चव्हाण ने अहमद पटेल के कान में कुछ कहा, जिसके बाद बाला साहब थोराट, पृथ्वीराज चव्हाण और अजित पवार की भी तीखी नोकझोंक हो गई. एनसीपी विधानसभा अध्यक्ष पद कांग्रेस को देने को तैयार नहीं थी. शरद पवार ने भी कांग्रेस की मांग को खारिज कर दिया.
अजित पवार ने की फोन पर बात
कांग्रेस ने एक और मांग सामने रखी और कहा कि वो उपमुख्यमंत्री पद भी सरकार में चाहती है. जिसने आग में घी डालने का काम किया. हालांकि उद्धव को कांग्रेस के प्रस्ताव पर कोई आपत्ति नहीं थी, लेकिन एनसीपी नेताओं ने इसका विरोध किया. शरद पवार ने भी कांग्रेस के प्रस्ताव को खारिज कर दिया. शिवसेना नेताओ ने फिलहाल चुप रहना ठीक समझा उन्हें लगा कि सरकार बनाने की बात बिगड़ सकती है. जोरदार नोंकझोंक के बाद अजित पवार पूरी तरह से शांत हो गए. उन्होंने खुद को लगभग मौन कर लिया. वो लगातार अपने मोबाइल की तरफ देख रहे थे. शायद किसी के मैसेज का इंतजार था और मैसेज आ गया. वो मीटिंग से उठकर वॉशरूम की और गए.
जैसे ही कॉन्फ्रेंस रूम से बाहर निकले तो एक विधायक उनके पीछे गए. अजित पवार ने उन्हें वॉशरूम के बाहर रुकने को कहा. करीब 12 मिनट तक फोन पर बात करने के बाद अजित पवार वापस बैठक में आए.
फोन पर हुई बातचीत के बाद अजित पवार की बॉडी लैंग्वेज पूरी तरह बदली हुई थी. वो बैठक से असंतुष्ट दिखाई दे रहे थे और चाह रहे थे कि बैठक जल्द खत्म हो. थोड़ी देर बाद शरद पवार ने भी अपना धैर्य खो दिया और ये कहते हुए बैठक छोड़ दी कि वो कल बात करेंगे. पवार के जाने के बाद भी कांग्रेस एनसीपी के बीच अनबन चलती रही. कुछ देर बाद अजित पवार भी ये कहते हुए बैठक से उठ गए की उनकी वकील के साथ बैठक है.
जैसे ही शरद पवार बैठक से बाहर निकले तो नीचे पत्रकारों से उन्हें घेर लिया, बैठक में हुई नोकझोंक की कहानी अपनी बॉडी लैंग्वेज के जरिए पता ना चले इसलिए पवार ने अपनी गाड़ी में बैठते वक्त पत्रकारों से कहा कि, "इस बात में कोई दो राय नहीं है कि सरकार का नेतृत्व उद्धव ठाकरे करेंगे और शिवसेना के नेतृत्व वाली सरकार होगी. सरकार चलाने के विस्तृत प्रोग्राम पर चर्चा चल रही है कल शाम तक आपको इसकी जानकारी प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए दी जाएगी."
पवार ने सोनिया को कैसे किया राजी
शरद पवार इस बात को अच्छी तरह जानते थे कि सत्ता बनाने की चाबी कांग्रेस के पास है. बिना कांग्रेस की मदद के सरकार नहीं बन सकती है. इसीलिए 18 नवंबर को पवार दिल्ली पहुंचे और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की. उन्होंने लगभग पचास मिनट तक महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य पर चर्चा की. पवार ने प्रस्ताव दिया कि कांग्रेस और एनसीपी को शिवसेना के नेतृत्व वाली सरकार का समर्थन करना चाहिए. हालांकि सोनिया गांधी इस तरह के गठबंधन के लिए उत्सुक नहीं थीं. उन्होंने सवाल किया कि कांग्रेस नफरत की राजनीति में विश्वास रखने वाली पार्टी के साथ सरकार बनाने को उत्सुक नहीं है. सांप्रदायिक और क्षेत्रीय हिंसा का इतिहास शिवसेना का रही है और उसने कई मौके पर कांग्रेस नेताओं का अपमान किया.
शरद पवार ने धैर्य से सोनिया गांधी की बात सुनी और फिर बीते सालों के उदाहरणों का हवाला देकर उनकी आशंकाओं को कम करने का प्रयास किया. उन्होंने सोनिया गांधी से कहा कि दोनों दलों के बीच इतने मतभेदों के बावजूद, कई मौके आए जब शिवसेना ने कांग्रेस की मदद की. जब पीएम के रूप में इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई थी, तो इसका समर्थन करने वाले पहले राजनीतिक नेताओं में शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे थे. शिवसेना ने 1977 में हुए लोकसभा चुनावों में भी कांग्रेस का समर्थन किया था और किसी भी उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारा था.
चलता रहा बैठकों का दौर
सोनिया गांधी और शरद पवार के बीच कुछ और बैठकें हुईं, जिसकी चर्चा मीडिया में नहीं हो सकी. इन गुप्त बैठकों में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जैसे अहमद पटेल, मल्लिकार्जुन खड़गे, केसी वेणुगोपाल, अशोक चव्हाण, पृथ्वीराज चव्हाण, बालासाहेब थोराट और नसीम खान मौजूद थे. एनसीपी से अजित पवार और प्रफुल्ल पटेल थे. इस तरह की एक बैठक में, सोनिया गांधी ने अहमद पटेल को बैठक में उपस्थित सभी लोगों को कुछ कागजात सौंपने के लिए कहा.
यह गठबंधन के लिए एक प्रस्तावित प्रस्तावना थी जिसमें धर्मनिरपेक्षता और अन्य संवैधानिक मूल्यों का पालन करने का आग्रह किया गया था. सबके पढ़ने के बाद सोनिया गांधी ने कहा कि अगर शिवसेना इसे स्वीकार करने को तैयार है तो हम आगे बढ़ेंगे, नहीं तो ये विषय हमारी तरफ से बंद है.
शरद पवार ने तब उद्धव ठाकरे को फोन किया और उन्हें प्रस्तावित प्रस्तावना और बैठक की जानकारी दी. उद्धव ठाकरे ने पवार की ओर से दी गई जानकारी के बाद हामी भर दी. जिसके बाद सोनिया गांधी ने एक और बात कही जो गठबंधन के प्रस्तावित नाम पर उनकी आपत्ति थी. प्रस्तावित नाम 'महा शिव अघाड़ी' था उन्होंने 'शिव' शब्द हटाने को कहा. इस मांग पर भी उद्धव ठाकरे की तरफ से सहमति जताई गई और गठबंधन का नाम महा विकास अघाड़ी होगा ये तय किया गया.''
230 पन्नों की जितेंद्र दीक्षित की इस किताब में 17 चैप्टर हैं. जिसमें सरकार गठन को लेकर हुए रोमांचित करने वाले हर पहलू को कवर किया गया है. ये किताब Amazon के अलावा सभी प्रमुख बुक स्टॉल पर आपको मिल जाएगी. इसकी कीमत 399 रुपए है. अगर आप किताब पढ़ने और राजनीति के शौकीन हैं तो लॉकडाउन के दौरान ये आपके लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है.
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