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महाराष्ट्र में मात: क्या मोदी-शाह को इलजाम से बचा रहे फडणवीस?

जिस अंदाज में फडणवीस ने शपथ ली, उसमें भी केंद्र की भूमिका और बड़ी रही

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वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता

कैमरा पर्सन: सुमित बडोला

कोई भी फैसला जो राज्य में होता है, केंद्र में हम बताते हैं, तो ये राज्य का ही फैसला है.और मुझे ऐसा नहीं लगता कि इससे मेरी इमेज खराब होगी. मैं जैसा हूं वैसा हूं महाराष्ट्र की जनता मुझे जानती है. जनता ने मुझे स्वीकार किया है...
देवेंद्र फडणवीस, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री
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फडणवीस की फजीहत हुई. पब्लिक के बीच ही नहीं, पार्टी में भी उनकी किरकिरी हुई. फ्लोर टेस्ट से पहले ही महाराष्ट्र के सीएम पद से इस्तीफा देते वक्त पब्लिक से सहानुभूति पाने के लिए फडणवीस ने खुद की बेगुनाही और शिवसेना की बेवफाई की पूरी कहानी सुनाई. पार्टी के गलियारों में किनारे न पड़ जाएं, इसलिए सारी जिम्मेदारी खुद लेनी की कोशिश की, लेकिन यहीं वो गलती कर गए.

दरअसल, केंद्रीय लीडरशिप महाराष्ट्र में कथित जीत का जश्न मनाने में चुनाव नतीजों के बाद से ही शामिल था. उन्हें पूरी उम्मीद थी कि महाराष्ट्र में सरकार बीजेपी की ही बनेगी और अपनी तरफ से राष्ट्रीय नेताओं ने पूरी कोशिश भी की.

सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद, शिवसेना से कलह के कारण बीजेपी सत्ता में नहीं आ पाई, लेकिन फिर चंद दिनों बाद अचानक इमरजेंसी वाले मोड में फडणवीस ने अगली सुबह मुख्यमंत्री पद की शपथ ले  ली.
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जिस अंदाज में फडणवीस ने शपथ ली, उसमें भी केंद्र की भूमिका और बड़ी रही. ये टाइम लाइन देखिए:

22 नवंबर की रात 2 बजे के बाद राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने राष्ट्रपति शासन हटाने की सिफारिश भेजी. आधी रात बाद आई इस सिफारिश को राष्ट्रपति ने तुरंत पीएम को बढ़ाया. रात दो बजे और सुबह 6 बजे के बीच पीएम ने इसपर अपनी सहमति जताई और राष्ट्रपति को अपने मंजूरी दे दी. रात दो बजे के बाद तक जगे रहे राष्ट्रपति सुबह छह बजे के पहले फिर जगे और राज्यपाल को मंजूरी भेज दी.

ध्यान दीजिए कि पीएम ने राष्ट्रपति शासन हटाने की सिफारिश पर कैबिनेट से मंजूरी लेना भी जरूरी नहीं समझा. ये सही है कि उन्होंने ट्रांजैक्शन ऑफ बिजनेस रूल के रूल नंबर 12 के तहत ऐसा किया, लेकिन इसी ट्रांजैक्शन ऑफ बिजनेस रूल में ये भी लिखा है कि इस प्रावधान का इस्तेमाल बेहद अरजेंसी वाले हालात में किया जाएगा.

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अब ऐसी भी क्या अरजेंसी थी? जिस राज्य में चुनावों के एक महीने बाद भी सरकार नहीं बनी थी, वहां चंद घंटे और लग जाते, सूरज निकल जाता, दुनिया जग जाती और फिर फैसला हो जाता तो ऐसी क्या विपदा आ जाती? क्या ये डर था कि कहीं शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस सरकार बनाने का दावा न पेश कर दे और बीजेपी के हाथ से सरकार बनाने का मौका न निकल जाए?

जिस एनसीपी की मदद से बीजेपी महाराष्ट्र में सरकार बनाना चाह रही थी, उसी एनसीपी के अध्यक्ष से पीएम मोदी इस सियासी उठापठक के बीच मिले थे. पीएम मोदी ने इसी गहमागमी के बीच एनसीपी की संसद में तारीफ की थी. मीडिया रिपोर्ट्स में ये बात भी सामने आई कि आलाकमान ने 22 नवंबर की शाम 7 बजे राज्य प्रभारी भूपेंद्र यादव को मुंबई भेजा और उसके बाद चीजें बीजेपी के पक्ष में तेजी से शिफ्ट हुईं.

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सवाल ये भी है कि महाराष्ट्र में विरोधी पार्टी से समर्थन लेने की नौबत ही क्यों आई? ये किसी से छिपा नहीं है कि आज की तारीख में चुनाव चाहे राज्य के हों या फिर केंद्र के, बीजेपी, पीएम मोदी के चेहरे पर ही लड़ती है. अगर राज्य में बीजेपी को अपने बूते बहुमत नहीं मिला तो सवाल आलाकमान को लेकर भी उठेगा ही.

इन तमाम बातों के बाद फडणवीस भले ये कहें कि इस 'शर्मनाक' सरेंडर से केंद्र का कोई लेना देना नहीं है, लेकिन पब्लिक सब देख रही है, सब समझ रही है. हकीकत ये है कि 'मोदी है तो मुमकिन है' को शरद पवार और उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र में नामुमकिन कर दिया है. मोदी युग में बीजेपी की ये सबसे करारी हार है. और जिम्मेदारी राज्य से लेकर केंद्र तक के नेताओं की है.

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