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BJP-MNS में बढ़ रही नजदीकियां, राज ठाकरे और पाटिल की मुलाकात के मायने

Maharashtra में नगर निगम चुनावों से ठीक पहले बीजेपी और राज ठाकरे की पार्टी में गठबंधन?

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एमएनएस चीफ राज ठाकरे और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल के बीच शुक्रवार 6 अगस्त को एक बैठक हुई. पिछले कुछ दिनों में दो नेताओं के बीच ये दूसरी बैठक है. इससे पहले दोनों के बीच नासिक में अनौपचारिक मुलाकात हुई थी. जिसके बाद अब राज ठाकरे के आवास कृष्णकुंज पर दोनों नेताओं के बीच हुई ये पहली आधिकारिक बैठक हुई.

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जाहिर है बीजेपी और एमएनएस की बढ़ती नजदीकियों ने महाराष्ट्र की सियासत को एक नया ट्विस्ट दे दिया है. जिससे महाराष्ट्र में एक नया समीकरण बनने के आसार नजर आ रहे हैं. लेकिन प्रवासियों के मुद्दे पर एमएनएस की भूमिका इसमें सबसे बड़ी बाधा है. जिसे लेकर अब चंद्रकांत पाटिल ने खुलकर चर्चा की.

बैठक में क्या हुआ?

करीब 40 मिनट चली इस बैठक के बाद चंद्रकांत पाटिल ने मीडिया को बताया कि, "आज बीजेपी-एमएनएस गठबंधन के विषय पर कोई चर्चा नहीं हुई. लेकिन प्रवासियों के विरोध पर एमएनएस के बारे में लोगों में गलत परसेप्शन जाता रहा है, ये बताने की मैंने कोशिश की. इस पर राज ठाकरे ने साफ किया कि उत्तर भारतीयों के प्रति उनके मन मे कोई द्वेष या कटुता नहीं है. लेकिन भूमिपुत्रों को न्याय के मुद्दे पर वो कायम हैं. इस संदर्भ में उन्होंने मुझे उत्तर भारतीय मंच के कार्यक्रम में रखी अपनी भूमिका के कुछ वीडिओ क्लिप्स भी भेजे थे. जिसे देखकर मैंने उनसे आग्रह किया कि महाराष्ट्र को आप जैसे नेतृत्व की जरूरत है, जिसके लिए उन्हें व्यापक भूमिका लेनी होगी."

एमएनएस नेता बाला नांदगांवकर ने प्रतिक्रिया में कहा कि, "आज की बैठक में सकारात्मक चर्चा हुई. गठबंधन पर कोई चर्चा नहीं हुई, लेकिन राजनीति में कुछ भी हो सकता है."

बता दें कि इस बैठक के बाद चंद्रकांत पाटिल पूर्व नियोजित दौरे के तहत दिल्ली जाएंगे. जिसमे संघटनात्मक मुद्दों पर राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से भी मुलाकात करेंगे.

क्या एमएनएस बनेगा वोट कटर?

2019 विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस का हाथ थाम लिया. तब से एमएनएस और बीजेपी के गठबंधन की अटकलें लगाई जा रही थीं. लेकिन महाराष्ट्र में आगामी निकाय चुनाव में बीजेपी को एक नए साथी की खोज है जो एमवीए गठबंधन के वोट बैंक में सेंध लगा सके.

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2022 मार्च-अप्रैल तक 10 महानगर निगम और 25 जिला परिषदों का कार्यकाल खत्म होने जा रहा है. इनमें से मुंबई समेत नासिक, पुणे और ठाणे जैसे शहरों में आज भी राज ठाकरे का अच्छा खासा जनाधार है. लेकिन इस समर्थन को वोट में बदलने में एमएनएस को सफलता नहीं मिल पा रही. जिसके लिए बीजेपी ने रणनीति बनना शुरू कर दिया है.

क्या हैं एमएनएस-बीजेपी गठबंधन में रोड़े?

कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन के बाद शिवसेना के हिंदुत्व पर बीजेपी लगातार सवाल उठा रही है. ऐसे में बीजेपी की कोशिश एमएनएस को ताकत देकर शिवसेना की मराठी वोट बैंक को खींचने की है. लेकिन इसमें एमएनएस का उत्तर भारतीयों का विरोध सबसे बड़ी बाधा बन रहा है. क्योंकि भले ही बीजेपी एमएनएस के जरिये मराठी वोट बांटने में कुछ हद तक सफल हो जाए, लेकिन बीजेपी को उसके उत्तर भारतीय हिन्दू वोट खोने की चिंता लगी है.

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इसके अलावा राज ठाकरे ने 2019 के चुनाव प्रचार में मोदी का जमकर विरोध किया था. राज ठाकरे ने 'मोदी मुक्त' भारत की घोषणा करते हुए सभी विपक्षी पार्टियों को एक साथ आने की अपील की थी. इतना ही नहीं 'लाव रे तो वीडियो' मुहिम के चलते उन्होंने अपने भाषण में किए वादों की वीडियो क्लिप्स दिखाकर मोदी का मजाक उड़ाया था. ऐसे में दोनों दलों के कैडर एक दूसरे के कट्टर दुश्मन बन चुके हैं. इसीलिए दोनों को एक साथ आने के लिए एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बनाना जरूरी होगा.

क्या आज की मुलाकात गठबंधन का लिटमस टेस्ट है?

दरअसल, एमवीए सरकार की स्थापना के बाद से राज ठाकरे और बीजेपी नेताओं के बीच बैठकों का सिलिसिला जारी है. विपक्षी नेता देवेंद्र फड़नवीस ने पिछले साल भर में राज ठाकरे से दो बार गुप्त बैठक की हैं. साथ ही परदे के पीछे बीजेपी की शिवसेना और एनसीपी से बातचीत की खबरें आती रहती हैं. लेकिन एमवीए सरकार गिराने की कोशिशें सफल ना होने के कारण अब एमएनएस - बीजेपी खुलकर मेलजोल बढ़ाती दिख रही है.

इससे दोनों दलों के कार्यकर्ता, विपक्षी दल और आम लोगों से किस तरह की प्रतिक्रिया आती है ये टटोलने की कोशिश भी हो सकती है. जिससे आने वाले दिनों में दोनों पार्टियां किसी एक मुद्दे पर साथ आने की घोषणा कर सके.
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एमएनएस के यू-टर्न

शुरुआती दौर में राज ठाकरे नरेंद्र मोदी के बतौर गुजरात के मुख्यमंत्री प्रशंसक रहे हैं. लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी के लिए गए नोटबंदी जैसे फैसलों की राज ठाकरे ने जमकर आलोचना भी की थी. लेकिन सेना-बीजेपी गठबंधन टूटने के बाद फिर से राज ठाकरे ने मोदी के प्रति नरम रुख अख्तियार किया. जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाना और राम मंदिर निर्माण पर राज ने मोदी को बधाई भी दी.

इतना ही नहीं राज ने अपने पार्टी के झंडे से हरा और नीला रंग हटाते हुए व्यापक हिंदुत्व की भूमिका अपना ली. लेकिन परप्रांतीय और मोदी विरोध की वजह से अब तक एमएनएस को चुनावी राजनीति में अपना दायरा बढाने का मौका नही मिल पाया. इसीलिए भविष्य में बीजेपी से हाथ मिलाना मतलब एमएनएस का आखरी दाव समझा जा सकता है.

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