यूपी की मैनपुरी लोकसभा सीट पर विरासत की लड़ाई में फिलहाल डिंपल यादव आगे दिख रही हैं. यादव परिवार ने एकजुटता दिखाने की कोशिश की है, लेकिन डिंपल यादव के नामांकन दाखिल के समय शिवपाल कहीं नजर नहीं आए. समाजवादी पार्टी के महासचिव रामगोपाल यादव ने कहा कि शिवपाल यादव की सहमति के बाद ही डिंपल यादव को मैनपुरी से समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार बनाया गया है. अगर डिंपल यादव के खिलाफ बीजेपी अपना उम्मीदवार उतारती है तो फिर मुलायम के नाम और सहानुभूति वोट पर सवार एसपी के लिए मैनपुरी की राह आसान नहीं रहने वाली है. ऐसे में आइए समझते हैं कि मैनपुरी की राह में डिंपल के पक्ष और विपक्ष में क्या-क्या फैक्ट हैं और उनकी राजनीति कैसी रही है?
बता दें, मैनपुरी लोकसभा सीट मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद खाली हुई है. इस सीट पर 5 दिसंबर को चुनाव होंगे और 8 दिसंबर को वोटों की गिनती होगी और उसी दिन नतीजे घोषित किए जाएंगे.
डिंपल यादव की राजनीति
फिरोजाबाद उपचुनाव में हार
डिंपल यादव की राजनीति में एंट्री साल 2009 में होती है. दरअसल, साल 2009 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव दो जगहों (फिरोजाबाद, कन्नौज) से चुनाव लड़ते हैं. अखिलेश दोनों जगहों से चुनाव जीत जाते हैं, लेकिन इसमें से उन्हें एक सीट छोड़नी थी. अखिलेश ने कन्नौज सीट को चुना और फिरोजाबाद सीट पर साल 2009 में चुनाव हुए. समाजवादी पार्टी ने इस सीट पर अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को चुनाव मैदान में उतारा. अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव के साथ-साथ शिवपाल और रामगोपाल यादव ने भी डिंपल यादव के लिए जमकर प्रचार किया लेकिन उनकी मेनत काम नहीं आई और डिंपल यादव चुनाव हार गईं. डिंपल यादव का ये पहला ही चुनाव थी जिसमें उन्हें शिकस्त मिली.
डिंपल यादव को कांग्रेस उम्मीदवार और अभिनेता राज बब्बर ने हराया था. इस चुनाव में डिंपल यादव को 227781 वोट मिले थे, जबिक राज बब्बर को 312728 वोट हासिल हुआ. डिंपल यादव 84947 वोटों के बड़े अंतर से हार गईं.
साल 2019 लोकसभा चुनाव में हार
समाजवादी पार्टी का गढ़ माने जाने वाले कन्नौज से डिंपल यादव चुनाव हार गईं थी. इस हार के साथ ही कन्नौज में समाजवादी का किला ढह गया था. हालांकि, इस चुनाव में एसपी-बीएसपी दोनों ने चुनाव मिलकर लड़ा था बावजूद डिंपल को हार का सामना करना पड़ा था. डिंपल को बीजेपी के सुब्रत पाठक ने 12086 वोटों के अंतर से हराया था. तब 21 साल बाद इस सीट पर कमल खिला था.
हालांकि, इसी सुब्रत पाठक को डिंपल ने साल 2014 के लोकसभा चुनाव में शिकस्त दी थी. और 19907 वोटों के अंतर से हराया था. लेकिन, बीजेपी ने साल 2019 में पासा पलट दिया और एसपी-बीएसपी का गठबंधन भी डिंपल की जीत को सुनिश्चित नहीं कर पाया.
दरअसल, साल 2012 में जब अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने कन्नौज लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया. इस सीट पर हुए उपचुनाव में डिंपल निर्विरोध जीतीं थीं. डिंपल यादव के खिलाफ बीजेपी-बीएसपी समेत किसी भी दल ने अपना उम्मीदवार नहीं खड़ा किया था.
क्या है अखिलेश और डिंपल की लव स्टोरी?
अखिलेश यादव और उनकी पत्नी डिंपल यादव पहली बार तब मिले थे, जब अखिलेश 21 साल के थे और डिंपल महज 17 साल की थीं. दोनों की मुलाकात एक कॉमन फ्रेंड के घर पर हुई थी. फिर बाद में दोनों एक अच्छे दोस्त बन गए और बाद में ये दोस्ती प्यार में बदल गई.
‘अखिलेश यादव-बदलाव की लहर’ में सुनीता एरॉन लिखती हैं कि अखिलेश और डिंपल दोस्त से मिलने का बहाना बनाकर एक-दूसरे से छुप-छुपकर मिलते थे. सिडनी जाने के बाद भी अखिलेश और डिंपल लगातार संपर्क में रहे. अखिलेश डिंपल को लव लेटर्स भी लिखते थे और ग्रीटिंग कार्ड्स भी भेजते थे. यह सिलसिला करीब चार सालों तक चला. जब अखिलेश अपनी पढ़ाई पूरी कर वापस उत्तर प्रदेश लौटे तो उन्होंने डिंपल से शादी करने का मन बना लिया था.
कहा जाता है कि मुलायम सिंह यादव अखिलेश और डिंपल की शादी के लिए तैयार नहीं थे. लेकिन, अखिलेश भी डिंपल से शादी करने के लिए अड़ गए थे. आखिरकार बहुत सोच-विचार के बाद मुलायम सिंह यादव उनकी शादी को मान गए, जिसके बाद 24 नवंबर 1999 को दोनों शादी के बंधन में बंध गए. डिंपल उत्तराखंड के निवासी रहे लेफ्टिनेंट कर्नल एससी रावत की बेटी हैं. अखिलेश यादव और डिंपल के तीन बच्चे हैं, जिनके नाम अदिति, टीना और अर्जुन हैं. इसमें टीना और अर्जुन जुड़वा हैं.
मैनपुरी लोकसभा में कितनी हैं विधानसभा की सीटें?
मैनपुरी लोकसभा सीट में विधानसभा की पांच सीटें आती हैं. इनमें चार सीटें मैनपुरी, भोगांव, किशनी और करहल मैनपुरी जिले की हैं, जबकि एक सीट इटावा जिले की जसवंतनगर विधानसभा सीट है जो इस लोकसभा सीट का हिस्सा है. इस साल हुए विधानसभा चुनाव में मैनपुरी जिले की दो सीटों पर बीजेपी, जबकि दो पर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी ने जीत हासिल की थी. इसमें मैनपुरी और भोगांव बीजेपी के खाते में गई थी, जबकि किशनी और करहल एसपी के पास. करहल से खुद अखिलेश यादव विधायक हैं. जबकि, इटावा की जसवंतनगर सीट से शिवपाल सिंह यादव विधायक हैं.
मैनपुरी लोकसभा में कैसा रहा था पिछला चुनाव?
साल, 2019 के लोकसभा चुनाव में जब एसपी-बसपा के संयुक्त उम्मीदवार के तौर पर मुलायम सिंह यादव चुनाव लड़े थे, तो भोगांव में वह करीब 26 हजार वोटों से बीजेपी उम्मीदवार से पिछड़ गए थे. मैनपुरी विधानसभा से मुलायम की लीड 7 हजार वोटों से भी कम थी. करहल और जसवंतनगर से मिली बड़ी लीड ने मुलायम को 94 हजार वोटों से जीत दिलाई थी. मुलायम सिंह यादव को सबसे अधिक 62 हजार की लीड शिवपाल यादव की जसवंतनगर विधानसभा से मिली थी.
मुलायम सिंह यादव को कुल 5,24,926 वोट मिले थे, जबकि दूसरे नंबर पर रहे भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी प्रेम सिंह शाक्य के खाते में 4,30,537 वोट पड़े थे. मुलायम को 94,389 मतों के अंतर से जीत मिली थी.
मैनपुरी लोकसभा में क्या है जातीय समीकरण?
मैनपुरी में जातीय समीकरण की बात करें तो ये सीट पिछड़े वर्ग के मतदाताओं की बहुलता वाली सीट है. यहां सबसे ज्यादा यादव मतदाता हैं. इनकी संख्या करीब 3.5 लाख है. शाक्य, ठाकुर और जाटव मतदाता भी अच्छी संख्या में हैं. इनमें करीब 1.60 लाख शाक्य, 1.50 लाख ठाकुर, 1.40 लाख जाटव, 1.20 लाख ब्राह्मण और एक लाख के करीब लोधी और राजपूतों के वोट हैं. वहीं, वैश्य और मुस्लिम मतदाता भी एक लाख के करीब हैं, जबकि कुर्मी मतदाता की संख्या एक लाख से ज्यादा है. मैनपुरी में अभी करीब 17 लाख वोटर्स हैं. इनमें 9.70 लाख पुरुष और 7.80 लाख महिलाएं हैं. 2019 में इस सीट पर 58.5% लोगों ने वोट डाला था.
मैनपुरी लोकसभा का क्या रहा है रिकॉर्ड?
मैनपुरी लोकसभा सीट पर 1996 से समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार जीतता आ रहा है. 1998 और 1999 में जब मुलायम ने वहां से चुनाव नहीं लड़ा तो पार्टी के उम्मीदवार बलराम सिंह यादव चुने गए. साल 2014 में मुलायम सिंह यादव आजमगढ़ और मैनपुरी दोनों जगहों से जीते थे. बाद में उन्होंने मैनपुरी लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया. तब उपचुनाव में मुलायम सिंह यादव के पोते तेज प्रताप यादव एसपी के टिकट पर सांसद चुने गए. तेजप्रताप ने 64.46 प्रतिशत वोट शेयर के साथ जीत हासिल की थी.
एसपी के लिए आसान नहीं रहने वाली मैनपुरी की राह?
मुलायम सिंह यादन ने भले ही 1996, 2004, 2009, 2014 और 2019 में पांच बार मैनपुरी सीट जीती हो, लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में उनकी जीत का अंतर एसपी के लिए चिंता का विषय है. 2004 के लोकसभा चुनावों में 64 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन हासिल करने वाली समाजवादी पार्टी के लिए साल 2019 लोकसभा चुनाव में जीत का अंतर घटकर 94,389 रह गया, जबकि एसपी ने ये चुनाव बीएसपी के साथ मिलकर लड़ा था, जिसे दलितों का बड़ा समर्थक माना जाता है.
पिछले 3 उपचुनावों में एसपी को खानी पड़ी है शिकस्त?
समाजवादी पार्टी के लिए पिछले तीन उपचुनाव खतरे की घंटी बजा रहे हैं. पार्टी ने मुलायम सिंह यादव के रहते हुए भी आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव हारा, जबकि उसी आजमगढ़ की सभी 10 विधानसभा सीटों पर समाजवादी पार्टी के विधायक हैं. वहीं, रामपुर को आजम खान का गढ़ माना जाता है. मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद लखीमपुरी खीरी की गोला गोकर्णनाथ विधानसभा उपचुनाव में भी समाजवादी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा और बीजेपी ने जीत दर्ज की
शिवपाल यादव की नारजगी डिंपल पर पड़ सकती है भारी
अखिलेश और डिंपल यादव के सामने सबसे बड़ी चुनौती परिवार को एकजुट करने की होगी. मैनपुरी लोकसभा के तहत इटावा नगर की जसवंतनगर विधानसभा सीट भी आती है. इस सीट से शिवपाल सिंह यादव विधायक हैं. शिवपाल सिंह और अखिलेश के बीच की तल्खी भी जगजाहिर है. वहीं, जसवंतनगर में शिवपाल यादव की पकड़ सबसे मजबूत मानी जाती है. साल 2019 के लोकसभा में मुलायम सिंह की जीत जसवंतनगर से ही सुनिश्चित हुई थी. इस सीट से मुलायम सिंह यादव ने 65 हजार से ज्यादा वोटों के लीड ली थी. ऐसे में शिवपाल यादव की नाराजगी डिंपल पर भारी पड़ सकती है. हालांकि, रामगोपाल यादव ने कहा कि शिवपाल की सहमति से ही मौनपूरी से डिंपल को प्रत्याशी बनाया गया.
डिंपल के पक्ष में मुलायम का नाम और सहानुभूति
समाजवादी पार्टी को उम्मीद है कि मुलायम सिंह यादव के निधन की सहानुभूति डिंपल को मिल सकती है. डिंपल मुलायम के नाम पर ही ये चुनाव लड़ने वाली हैं. इसकी शुरुआत उन्होंने नामांकन दाखिल करने से पहले ही कर दी. नामांकन करने के लिए जाते समय डिंपल और अखिलेश यादव पहले अपने मुलायम सिंह यादव की समाधि पर पुष्पाजंलि अर्पित करने पहुंचे थे.
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