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Mallikarjun Kharge कांग्रेस के 'बॉस',70 के दशक में छोड़ी पार्टी, 2 साल में वापसी

Mallikarjun Kharge New Congress President 50 साल में पहला दलित कांग्रेस अध्यक्ष

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कांग्रेस (Congress) को नया अध्यक्ष मिल गया है- मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) कांग्रेस के नए कप्तान बन गए हैं, करीब 24 सालों के बाद गांधी परिवार से बाहर कोई कांग्रेस का अध्यक्ष बना है. कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव में कुल 9,385 वोट पड़े. मल्लिकार्जुन खड़गे ने 7,897 वोट (84%) हासिल किए हैं. वहीं शशि थरूर को 1,072 (11%) वोट मिले. वहीं चुनाव में 416 (5%) वोट रद्द हुए हैं.

मल्लिकार्जुन खड़गे की अध्यक्ष पद के उम्मीदवार के तौर एंट्री अंतिम वक्त पर हुई और वो चुनाव जीत भी गए. यहां तक कि उनकी एंट्री के बाद कांग्रेस के 75 साल के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह को भी अपना नाम वापस लेना पड़ा. अपना फॉर्म वापस लेकर उन्होंने खड़गे का प्रस्तावक बनने का फैसला किया.

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मल्लिकार्जुन खड़गे की कांग्रेस में एंट्री 70 दशक में हुई. वो दौर था जब कांग्रेस बुरे वक्त से गुजर रही थी, उस वक्त कांग्रेस दो हिस्सों में बंट गई थी, एक पुराने नेताओं का गुट था तो दूसरा युवाओं का. इंदिरा गांधी युवाओं का नेतृत्व कर रही थीं. कर्नाटक के रहने वाले 27 साल के नौजवान मल्लिकार्जुन इंदिरा गांधी के गुट में शामिल हुए.

कैसे हुई खड़गे की राजनीति में एंट्री

मल्लिकार्जुन खड़गे की उम्र कम थी, लेकिन हौसले काफी बड़े थे, खड़गे की प्रतिभा को पहचानते हुए कर्नाटक के सबसे बड़े स्थानीय नेता देवराज उर्स ने उनको विधानसभा का टिकट दिलवाया. टिकट मिलने के बाद उन्होंने घर-घर जाकर पर्चे बांटे, खुद दिवारों पर स्लोगन लिखे, जब चुनाव के नतीजे आए तो खड़गे ने शानदार जीत हासिल की. ये जीत शुरुआत थी आने वाले वक्त में एक कद्दावर नेता के उदय की, उस दौर में उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि देश के सबसेो पुरानी पार्टी का कमान कभी उनके हाथों में होगी.

1972 में खड़गे राज्य की गुरमितकल सीट से पहली बार विधायक चुने गए. खड़गे के लिए ये महज शुरुआत थी. 1972 के बाद खड़गे लगातार 9 बार इसी सीट से विधायक चुने गए पहली बार विधायक बनने पर ही खड़गे को तब के सीएम देवराज उर्स ने मंत्री बना दिया था. 1976 में खड़गे पहली बार प्राथमिक शिक्षा विभाग में राज्य मंत्री बनाए गए. इसके बाद खड़गे लगातार कर्नाटक सरकार के अलग-अलग विभागों का जिम्मा संभालते रहे.  

कर्नाटक के तीन बार मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए थे खड़गे

2004 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस की वापसी हुई. कांग्रेस और JDS ने मिलकर सरकार बनाई. इस बार ये लगभग तय माना जा रहा था कि मल्लिकार्जुन खड़गे के मुख्यमंत्री बनेंगे. लेकिन ऐन वक्त पर बाजी पलट गई. निजी तौर पर खड़गे के दोस्त और सियासी प्रतिद्वंदी धरम सिंह को आलाकमान ने मुख्यमंत्री बनने का आदेश दे दिया.

2009 में कांग्रेस ने खड़गे को गुलबर्ग से टिकट दिया. खड़गे लोकसभा पहुंचे और मनमोहन सिंह की यूपी-2 में मंत्री बने. 2013 में जब कांग्रेस कर्नाटक की सत्ता में दोबारा आई तो ये कयास लगाए जा रहे थे कि इस बार तो पक्का खड़गे को राज्य की कमान सौंपी जाएगी, लेकिन खड़गे के हाथ फिर खाली रह गए.

2013 के बाद से कांग्रेस का प्रदर्शन लगातार खराब होता गया. लेकिन, खड़गे की राजनीति चमकती गई. 2014 लोकसभा चुनावों में जब कांग्रेस 44 सीटों पर सिमट कर रह गई यहां तक कि ज्यादातर कैबिनेट मंत्रियों की जमानत तक जब्त हो गई. तब खड़गे, इस मोदी लहर में भी जीतकर लोकसभा पहुंचे थे. और कांग्रेस ने उन्हें संसद के निचले सदन में पार्टी का नेता चुना था.  
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2019 में पहली बार चुनाव हारे मल्लिकार्जुन खड़गे

2019 में लोकसभा चुनाव में खड़गे चुनाव हार गए. ये उनके राजनीतिक करियर में पहली हार थी. हार के बावजूद कांग्रेस आलाकमान की मेहरबानी खड़गे पर बरसी और उन्हें 2020 में राज्यसभा भेज दिया गया. खड़गे सिर्फ राज्यसभा ही नहीं भेज गए, बल्कि उन्हें 2021 में सदन में विपक्ष का नेता भी बनाया गया.

जब मल्लिकार्जुन की मां-बहन की हत्या उनके ही सामने कर दी गई

मल्लिकार्जुन खड़गे का जन्म 1942 में हुआ था. कहा जाता है कि खड़गे ने अपनी मां और बहन को अपनी आंखों के सामने मरते हुए देखा था. कर्नाटक के जिस वर्वट्टी गांव में खड़गे का जन्म हुआ था वो हैदराबाद के निजाम के अधीन आता था.

1945 और की बात है जब हैदराबाद निजाम के कुछ सैनिक खड़गे के गांव वर्वट्टी पहुंचे. उस समय वो अपने घर के बाहर खेल रहे थे. घर में मां-बहन थीं और पिता काम पर गए थे.  निजाम के सैनिकों ने मां और बहन दोनों को जिंदा जलाकर मार डाला था.

खड़गे की उम्र उस समय तकरीबन 3 साल की थी, जब वो सिर्फ खड़े-खड़े देखते रहे.. मां की मौत के बाद खड़गे, पिता के साथ गुलबर्ग शहर चले गए. पिता एक मिल में काम करते थे. गुलबर्ग में ही खड़गे की शुरुआती पढ़ाई हुई और उसके बाद वहीं के सरकारी कॉलेज में दाखिला ले लिया. कॉलेज में पढ़ाई के साथ-साथ राजनीति की शुरुआती शिक्षा भी उन्हें यहीं से मिली. खड़गे ने अपना पहला चुनाव कॉलेज में ही लड़ा था. तब उन्हें छात्रसंघ का महासचिव चुना गया था. कॉलेज की राजनीति के दौरान खड़गे मजदूरों के अधिकारों की लड़ाई में हिस्सा लेने लगे थे.  

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