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"हमारे हिस्से से नहीं": महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण पर OBC ने बीजेपी का फंदा कसा?

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने 29 सितंबर को OBC समुदाय के 47 प्रतिनिधियों को मिलने के लिए बुलाया है.

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राष्ट्रीय OBC महासंघ के अध्यक्ष बबनराव तायवाड़े कहते हैं, "ये कदम पूरे राज्य को गुस्से से भर देगा. अन्य पिछड़ी जातियों के अंदर 400 से ज्यादा जातियां आती हैं. 400 जातियां इस अन्याय को कैसे बर्दाश्त करेंगी. एक को खुश करने के लिए क्या आप 400 जातियों को ताक पर रखने जा रहे हैं?"

29 सितंबर को OBC समुदाय के 47 प्रतिनिधियों को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) ने मिलने के लिए बुलाया है. इनमें से एक बबनराव भी हैं. उन्होंने द क्विंट से बात करते हुए कहा कि उनकी सिर्फ एक मुख्य मांग है. सभी मराठों को कुनबी के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता.

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महाराष्ट्र में एक महीने से ज्यादा समय से जातिगत राजनीति अपने चरम पर है, लेकिन क्यों?

  • सितंबर की शुरुआत में, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार, भूख हड़ताल पर बैठे मराठा कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल की मांगों के सामने झुकती हुई दिखाई दी. मनोज जरांगे की मांग थी कि सभी मराठों की पहचान कुनबी के रूप में की जाए.

  • मराठा समुदाय की एक उपजाति कुनबी, ओबीसी वर्ग के अंतर्गत आती है, जिसे स्थानीय निकायों, शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 27% आरक्षण मिला हुआ है.

  • राज्य की आबादी में मराठों की हिस्सेदारी करीब 32% है. इसलिए, यदि सभी मराठों को कुनबी और बाद में ओबीसी के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, तो समुदाय भी आरक्षण के लिए पात्र होगा.

"ठमराठों को आरक्षण मिल सकता है, लेकिन हमारे हिस्से से नहीं"

द क्विंट से बात करते हुए बबनराव तायवाड़े ने कहा कि OBC मराठों के आरक्षण का विरोध नहीं करता है, लेकिन पूरा समुदाय OBC में नहीं आ सकता.

तायवाड़े ने कहा, "हम सिर्फ यह चाहते हैं कि सरकार सभी मराठों को कुनबी जाति का एकमुश्त प्रमाण पत्र न दे. हमें यह आश्वासन लिखित में चाहिए." उन्होंने कहा,

"राज्य सरकार के लिए एकमात्र समाधान ये है कि आरक्षण के लिए 50% की सीमा को खारिज कर दिया जाए और मराठों को स्वतंत्र रूप से कोटा दिया जाए. हमें इससे कोई समस्या नहीं है, लेकिन ओबीसी के हिस्से को नहीं छुआ जाना चाहिए."

इससे राज्य सरकार असमंजस में पड़ गई है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट पहले ही मई 2021 में 50% की सीमा पार करने के कारण मराठों को आरक्षण देने से इनकार कर चुका है.

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विदर्भ बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चिंता

महाराष्ट्र में राज्य सरकार के लिए चिंता का सबसे बड़ा कारण विदर्भ क्षेत्र है, जहां बीजेपी को राजनीतिक प्रभुत्व हासिल है. राज्य की 48 में से लोकसभा की 11 सीटें इसी क्षेत्र से आती हैं. बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में पांच सीटों पर जीत हासिल की थी और उस समय इनकी सहयोगी शिवसेना ने 3 सीटें जीती थीं.

विधानसभा की 288 में से 62 सीटें इसी क्षेत्र से आती हैं. बीजेपी ने 2019 में इस इलाके से 28 सीटें जीती थीं.

यहां तक ​​कि विदर्भ के कुनबी भी सभी मराठों को कुनबी के रूप में वर्गीकृत करने की जारंगे की मांग का विरोध कर रहे हैं, सितंबर की शुरुआत में मराठा आंदोलन के जोर पकड़ने के बाद इन इलाकों में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं.

पिछले कई हफ्तों से, राष्ट्रीय ओबीसी महासंघ और ऑल-यूनियन ओबीसी कुनबी फेडरेशन के सदस्य डिप्टी सीएम देवेंद्र फड़नवीस के गृह क्षेत्र नागपुर में जारांगे की मांगों का विरोध करते हुए बड़ी हड़ताल पर हैं.

फड़णवीस ने 17 सितंबर को प्रदर्शनकारियों से मुलाकात भी की और उन्हें आश्वासन दिया कि मराठा समुदाय के लिए आरक्षण से ओबीसी के आरक्षण पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

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"सरकार को अपना रुख स्पष्ट करने की जरूरत"

हालांकि, ओबीसी सरकार से अधिक स्पष्टता की मांग कर रहे हैं.

तायवाड़े ने कहा, "फडणवीस ने हमें सिर्फ आश्वासन दिया कि मराठों को ओबीसी के लिए आरक्षित कोटा नहीं मिलेगा, लेकिन अगर सभी मराठों को कुनबी प्रमाण पत्र मिल जाता है, तो क्या इससे वे ओबीसी आरक्षण के लिए पात्र नहीं हो जाएंगे? उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि क्या कुनबी प्रमाण पत्र सभी मराठों को दिया जाएगा, उन्होंने आगे कहा कि अगर सभी मराठों को कुनबी प्रमाण पत्र दिया गया तो राज्य में और ज्यादा अशांति हो जाएगी."

इतिहास में जाएं तो ओबीसी समुदाय भी ओबीसी को दिए जाने वाले आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाने की मांग करता रहा है, क्योंकि वर्तमान में दिया जा रहा कोटा 1931 की जनगणना के आधार पर है.

तायवाड़े ने कहा, "हमें चाहिए कि सरकार अपना रुख स्पष्ट करे. यहां सबसे महत्वपूर्ण शब्द 'पूर्ण आरक्षण'है. कुछ मराठा ऐसे हैं जिनके पास दशकों से अन्य उप-जातियों से होने के प्रमाण हैं. आप रातों-रात उनकी जाति कैसे बदल सकते हैं?"

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