दिल्ली में एमसीडी इलेक्शन (Delhi MCD Election) के लिए आज वोटिंग खत्म हो चुकी है. शाम साढ़े पांच बजे तक 250 सीटों पर हुए मतदान में वोटिंग परसेंटेज उम्मीद से कम महज 50 फीसदी ही रहा. हालांकि इस आंकड़े के थोड़े ऊपर जाने की संभावना है.
विवादों से भरा रहा चुनाव- कहीं बॉयकॉट, तो कहीं गड़बड़ी के आरोप
बता दें दिल्ली में तीन नगर निगमों के एकीकरण के चलते हुए परिसीमन के बाद यह पहला चुनाव है. लेकिन इस बार का चुनाव कई विवादों और आरोपों से भी भरा रहा.
कटेवारा में वोटिंग का बॉयकॉट
उत्तर-पश्चिम दिल्ली में स्थित कटेवारा गांव के लोगों ने बुनियादी सुविधाओं का आभाव होने के चलते इस बार के चुनाव का बॉयकॉट किया है. लोगों का कहना है कि गांव में सड़कों की हालत बेहद खराब है, साथ ही कचरे के ठिकाने लगाने की व्यवस्था भी बेहद खराब है, ऐसे में विरोध प्रदर्शन और ध्यानाकर्षण के लिए गांव वालों को यह कदम उठाने को मजबूर होना पड़ा.
अनिल चौधरी और मनोज तिवारी ने लगाए गड़बड़ी के आरोप
दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अनिल चौधरी ने वोटर लिस्ट में गड़बड़ी का आरोप लगाए. उन्होंने कहा कि "मेरा नाम वोटर लिस्ट में नहीं है, मेरी पत्नी ने वोट डाला है. अभी तक न मुझे लिस्ट के बारे में बताया जा रहा है, न मेरा नाम दिख रहा है."
जवाब में प्रदेश चुनाव आयोग ने कहा कि उन्होंने उन्हीं इलेक्टोरल रोल का उपयोग किया है, जिन्हें भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) ने बनाया है. इस इलेक्टोरल रोल में नाम जोड़ने या हटाने का अधिकार उनके पास नहीं है.
सुभाष मोहल्ला मतदान सूची में मनोज तिवारी ने लगाए गड़बड़ी के आरोप
बीजेपी नेता और सांसद मनोज तिवारी ने भी एक जगह मतदाता सूची में गड़बड़ी का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा है कि सुभाष मोहल्ला वार्ड में बीजेपी को सपोर्ट करने वाले 450 लोगों का नाम वोटर लिस्ट से हटा दिया गया है. उन्होंने मांग की है कि इस वार्ड में चुनाव रद्द करके फिर से चुनाव कराए जाएं.
महज 50 फीसदी रहा मतदान
मतदान सुबह 8 बजे शुरू हो गया था, लेकिन शुरुआत ही काफी धीमी रही. सुबह साढ़े दस बजे, मतलब ढाई घंटे में महज 9 फीसदी मतदान रहा. जबकि 18 फीसदी तक पहुंचते-पहुंचते 12 बज गए. उम्मीद लगाई गई कि दोपहर के बाद वोटिंग में तेज बढ़ोत्तरी आएगी. लेकिन ऐसा भी ना हो सका. दोपहर 2 बजे तक सिर्फ 30 फीसदी वोटिंग हुई, जबकि शाम 4 बजे तक महज 45 फीसदी लोगों ने वोट डाला.
कुल मिलाकर साढ़े पांच बजे मतदान खत्म होने तक मतदान प्रतिशत 50 ही रहा.
क्या वाकई हुई है कम वोटिंग, क्या हैं मायने?
आमतौर पर किसी चुनाव में अगर अप्रत्याशित ढंग से मतदान प्रतिशत में बढ़ोत्तरी हो जाती है, तो माना जाता है कि सत्ता पक्ष के खिलाफ मजबूत लहर या एंटी इंकमबेंसी है. औसत वोटिंग या पहले से कम वोटिंग में अनुमान लगाया जाता है कि लोगों की सत्ता परिवर्तन की इच्छा कम है.
बता दें 2017 में दिल्ली में तीन नगर निगमों के लिए 270 सीटों पर मतदान हुआ था. इनमें 180 वार्ड में बीजेपी की एकतरफा जीत हुई थी. जबकि आम आदमी पार्टी महज 48 सीटें हासिल कर पाई थी. जबकि कांग्रेस 30 सीटों पर सिमट गई थी.
बीजेपी बीते तीन चुनावों से एमसीडी चुनावों में जीतती आ रही थी. इस बार पार्टी की कोशिश चौथी बार सत्ता पाने की है. जबकि विधानसभा चुनावों में एकतरफा जीतने वाली आम आदमी पार्टी एमसीडी जीतने के लिए बेहद उतावली है.
लेकिन यहां एक पेंच है. लोकसभा और विधानसभा चुनावों में पहले भी एमसीडी की तुलना में दिल्ली में ज्यादा वोटिंग होती आई है. 2017 के नगर निगम चुनावों में वोटिंग परसेंटेज 54 फीसदी रहा था. जबकि इसके तीन साल बाद हुए विधानसभा चुनावों में 62 फीसदी मतदाताओं ने वोट डाला था. मतलब साफ है कि इस बार वोटिंग परसेंटेज पिछली बार से कम जरूर है, लेकिन इसकी गिरावट उतनी ज्यादा नहीं है. या यूं कहें कि दिल्ली की जनता के लिए यही सामान्य है.
ओवरऑल एमसीडी चुनाव में कम वोटिंग परसेंटेज से यह भी समझ आता है कि दिल्ली में वोटर्स लोकसभा और विधानसभा चुनाव को ज्यादा अहमियत देते हैं, जबकि एमसीडी चुनाव को कम.
2017 के वोटिंग परसेंटेज में वार्ड एनालिसिस करने से यह भी पता चलता है कि पॉश कॉलोनियों में एमसीडी चुनाव में कम वोटिंग होती है, जबकि घनी या झुग्गी-झोपड़ियों वाले स्लम एरिया में ज्यादा वोटिंग होती है. मतलब कम आय वर्ग के लोगों के लिए एमसीडी चुनाव ज्यादा अहमियत रखते हैं.
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक बीते चुनाव में सबसे कम वोटिंग ग्रेटर कैलाश, वसंत कुंज और डिफेंस कॉलोनी जैसे पॉश इलाकों में रही थी. ग्रेटर कैलाश में 2017 में 42.44 फीसदी, जबकि 2012 में 37.30 फीसदी वोटिंग हुई थी. इसी तरह वसंत कुंज में 2012 में 39.43 फीसदी और 2017 में 45.18 फीसदी लोगों ने मतदान किया था.
जबकि बख्तावरपुर जैसे दिल्ली के बाहरी इलाकों और दूसरे घनी बसाहटों में 60 फीसदी से ज्यादा लोगों ने मतदान किया था.
वैसे कुछ लोगों का यह भी मानना है कि एमसीडी में कम वोटिंग की वजह दिल्ली का पावर स्ट्रक्चर भी है, जहां अक्सर लोगों के एक बड़े वर्ग को यह समझ में नहीं आता कि कौन सा काम किस संस्थान (जैसे नगर निगम, प्रदेश सरकार, केंद्र सरकार) के पास है, ऐसे में अक्सर उलझन में रहने वाला यह वर्ग अपनी पसंद खुलकर तय नहीं कर पाता.
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